
अजीत मिश्रा (खोजी)
।।“माननीयों” की चहेती सिडको के भ्रष्टाचार पर बड़ा बवाल — अब होगी हाई-लेवल जांच।।
💫 न पहले से किसी काम की मंजूरी, और न ही कार्यकाल बढ़ाया गया—इसके बावजूद संस्था ने गांवों में जाकर 65 लाख का काम कर दिया
15 नवंबर 25। उत्तर प्रदेश
बस्ती। जिले में भ्रष्टाचार के कॉकटेल का सबसे ताजा और बड़ा मामला सामने आया है, जिसमें “माननीयों” की खास-पसंदीदा सिडको संस्था के जरिए करोड़ों रुपये के कामों को बंदरबांट कर दिए जाने का आरोप है। भाजपा नेता राजेंद्रनाथ तिवारी ने इस पूरे खेल का पर्दाफाश करते हुए समाज कल्याण मंत्री को पत्र भेजकर एक करोड़ 30 लाख रुपये के संदिग्ध कामों की तत्काल जांच की मांग कर दी है।तिवारी ने खुलकर कहा कि—“आखिर किस आधार पर, किसके निर्देश पर और किन ‘माननीयों’ की कृपा से सिडको को समाज कल्याण के करोड़ों के टेंडर थमा दिए गए?”
टेंडर नहीं मिला, एक्सटेंशन नहीं मिला, फिर भी करवाए काम!,इस पूरे मामले का सबसे चौंकाने वाला पहलू यह है कि न तो सिडको को कोई टेंडर मिला, न पहले से किसी काम की मंजूरी, और न ही कार्यकाल बढ़ाया गया—इसके बावजूद संस्था ने गांवों में जाकर 65 लाख का काम कर दिया।इतना ही नहीं, ग्रामीण क्षेत्रों में एक और 65 लाख के निर्माण कार्य भी सिडको ने अपने मन से शुरू कर दिए, जबकि किसी विभाग ने आदेश तक नहीं दिए थे। सवाल यह उठता है—जब अनुमति ही नहीं थी तो ठेकेदारों को पेमेंट किस आधार पर किया गया?माननीयों की ‘विशेष कृपा’?जांच की मांग करने वाले भाजपा नेता ने साफ कहा है कि सिडको “माननीयों” की सबसे चहेती संस्था मानी जाती रही है। यही कारण है कि विभाग के अनुभवी इंजीनियरों को भी यह नहीं पता चलता कि कौन-कौन सा काम सिडको को कब और कैसे दे दिया गया।स्थानीय प्रशासन ने भी अब तक सिडको के किसी काम पर सवाल उठाने की हिम्मत नहीं की। इससे यह संदेह और गहरा हो जाता है कि कहीं पूरा सिस्टम ही किसी अदृश्य दबाव में तो नहीं?कौन हैं ये माननीय जिनके आदेश पर काम होते हैं?यह बड़ा सवाल जनता पूछ रही है—विभाग आदेश नहीं देता, इंजीनियर निर्देश नहीं देते, टेंडर पास नहीं होते… फिर भी सिडको को काम कौन दिलवाता है?तिवारी ने अपने शिकायती पत्र में यह भी लिखा है कि यदि 40 करोड़ से अधिक के विकास कार्यों की निष्पक्ष जांच हो जाए तो “माननीयों की दलाली और टेंडर-बाजारी की परतें” खुलकर सामने आ जाएंगी।
गांव से लेकर नगर पंचायत तक जांच का दायरा,बताया जा रहा है कि जांच केवल समाज कल्याण विभाग तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि पंचायत, क्षेत्र पंचायत, जिला पंचायत, नगर निकायों और विधायकों की अनुशंसा पर हुए कार्यों तक फैल सकती है।यदि ऐसा हुआ तो कई बड़े चेहरे कटघरे में खड़े होंगे।बस्ती जिले में सिडको मॉडल सवालों के घेरे में,तिवारी का आरोप है कि बस्ती में सिडको को “सुपर विधायकी” दे दी गई है—मानो वही निर्णय लेने वाली सर्वोच्च संस्था हो।स्थानीय लोगों का कहना है कि—जो काम विधायकों की सिफारिश पर होना चाहिए, वह सीधे सिडको को दे दिया जाता है… यह कौन-सा लोकतांत्रिक मॉडल है?”
जमकर हुए सवाल — जवाब कौन देगा?,किस अधिकारी ने बिना टेंडर के काम की अनुमति दी?किस माननीय ने सिडको को बैकडोर से करोड़ों का लाभ दिलाया?विभाग को अंधेरे में रखकर किए गए इन कामों का भुगतान किसने मंजूर किया?अब जब मामला खुल चुका है, तो समाज कल्याण मंत्री ने जांच का आदेश देने के संकेत दे दिए हैं। यदि जांच शुरू हुई तो बस्ती जिले की अब तक की सबसे बड़ी “टेंडर मंडली” का खुलासा होना तय है।























