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बापू के रामराज्य के विचार और ‘विकसित भारत–जी राम जी’ पर सियासी बहस

सरकार इसे मूल्यों से जोड़कर देख रही, विपक्ष ने राजनीतिक नारेबाजी का आरोप लगाया

नईदिल्ली, महात्मा गांधी द्वारा प्रतिपादित रामराज्य की अवधारणा एक बार फिर राजनीतिक विमर्श के केंद्र में है। बापू रामराज्य को किसी धार्मिक शासन के रूप में नहीं, बल्कि सत्य, न्याय, समानता और सुशासन पर आधारित आदर्श व्यवस्था के रूप में देखते थे। उनका मानना था कि ऐसा समाज, जहां अंतिम व्यक्ति तक न्याय पहुंचे, वही सच्चा रामराज्य है।

हाल ही में सरकार द्वारा ‘विकसित भारत–जी राम जी’ जैसे नारों और अभियानों के संदर्भ में इसी अवधारणा का उल्लेख किया गया, जिसके बाद विपक्ष ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। विपक्षी दलों का कहना है कि धार्मिक और सांस्कृतिक प्रतीकों का उपयोग राजनीतिक लाभ के लिए किया जा रहा है, जबकि सरकार का पक्ष है कि यह भारत की सांस्कृतिक विरासत और नैतिक मूल्यों से प्रेरित सुशासन का प्रतीक है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि रामराज्य की अवधारणा अपने मूल स्वरूप में सर्वसमावेशी रही है, जिसे बापू ने आधुनिक लोकतंत्र के मूल्यों से जोड़ा था। मौजूदा बहस इसी बात पर केंद्रित है कि क्या इन प्रतीकों का प्रयोग नीति और विकास की दिशा तय करने के लिए हो रहा है या फिर यह केवल राजनीतिक ध्रुवीकरण का माध्यम बन रहा है।

फिलहाल ‘विकसित भारत–जी राम जी’ को लेकर सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच बयानबाजी तेज है। आने वाले दिनों में यह मुद्दा संसद से लेकर जनसभाओं तक और अधिक मुखर होने की संभावना जताई जा रही है।

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