
17,नवंबर’25 उत्तर प्रदेश,
बस्ती।। बनकटी विकास खण्ड के हिनौता ग्राम पंचायत इन दिनों सवालों के घेरे में है। गाँव में विकास की चर्चा नहीं, बल्कि 76 मजदूरों के हक पर पड़े कथित डाके की गूंज सुनाई देती है। पंचायत में मजदूरों के नाम पर तैयार हुए मस्टरोल और कागजों का ढेर तो खूब दिख रहा है, लेकिन मजदूरों के हाथ अब भी खाली हैं। यही कारण है कि हिनौता आज पूछ रहा है कि आखिर प्रधान के सिर पर किसका हाथ है? कहीं इस पूरे खेल में बनकटी वीडियो भावनी प्रसाद शुक्ल की चुप्पी या कथित सह तो नहीं? क्योंकि शिकायतों का अंबार लंबे समय से झूलता रहा, मगर कार्रवाई का एक पत्ता तक नहीं हिला। मजदूरों का दर्द यही है कि काम उनका हुआ, मेहनत उनकी लगी, लेकिन मजदूरी किसी और की जेब में चली गई। गाँव के कई परिवारों में महीनों से चूल्हे ठंडे पड़े हैं, लोग बेबस होकर दफ्तरों के चक्कर लगा रहे हैं, लेकिन जवाब सिर्फ इतना मिलता है—देखेंगे, जांच करेंगे, समय लगेगा।
हिनौता की गलियों में चर्चा है कि मस्टरोल पर नाम चल रहे हैं, तारीखें दर्ज हैं, कागजों में तालाब भी खोद दिया गया, सड़क भी बन गई, नाली का काम भी पूरा दिखा दिया गया, लेकिन जमीन पर सच्चाई बिल्कुल उलट है। मजदूरों का आरोप है कि उन्हें एक दिन की मजदूरी तक नहीं मिली। उनका दर्द साफ शब्दों में यही है कि फाइलों में विकास हो रहा है, पर असल में सिर्फ फर्जीवाड़ा पनप रहा है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि इतना बड़ा खेल इतनी शांति से आखिर कैसे चल रहा है? कौन है जो कार्रवाई को रोककर बैठा है? कौन है जो शिकायतों को ठंडे बस्ते में डालकर पूरे मामले पर परदा डाल रहा है? क्या यह सब बिना किसी शक्तिशाली ‘हाथ’ के संभव है? गाँव वालों का कहना है कि यदि बनकटी वीडियो भावनी प्रसाद शुक्ल सख्ती से अपनी भूमिका निभाते, तो इतने बड़े स्तर पर मजदूरों के हक पर चोट नहीं पड़ती। उनका आरोप है कि बीडीयो की यही चुप्पी पूरे मामले को और ज्यादा संदिग्ध बनाती है।
हिनौता के मजदूरों की हालत दयनीय है। कई परिवार कर्ज में डूब चुके हैं, बच्चों की फीस रुक चुकी है, घरों में राशन तक की तंगी पड़ रही है। मजदूर बताते हैं कि उन्होंने पूरे मनरेगा सत्र में दिन–रात मिट्टी काटी, तालाब खोदा, सड़क बनाई, लेकिन भुगतान न जाने किसकी टेबल पर अटका पड़ा है। ऊपर से प्रधान और सचिव की तरफ से मिलने वाला जवाब इतना ठंडा होता है कि मजदूरों का खून खौल उठता है। गांव की एक महिला कहती है—“काम हमारा, कागज उनका, और पैसा किसी और का… हमारे हिस्से में तो बस भूख आई।” यह सिर्फ उसकी कहानी नहीं, पूरे हिनौता की सामूहिक पीड़ा है।
सबसे बड़ा प्रश्न प्रशासन की चुप्पी पर है। आखिर क्यों 76 मजदूरों का भुगतान महीनों तक अटका रहा? क्यों बार–बार शिकायत होने के बाद भी कोई जांच नहीं बैठाई गई? मजदूरों के पत्र जिलास्तर तक पहुंचे, लेकिन कार्रवाई अब तक कछुआ गति से भी नहीं चल सकी। ऐसा लगता है कि जैसे किसी ने अदृश्य हाथ से पूरी फाइल को पकड़कर रोक दिया हो। और यही वही ‘हाथ’ है जिस पर आज पूरा हिनौता सवाल उठा रहा है।
यदि प्रधान निर्दोष हैं, तो जांच उन्हें खुलकर सामने आने में मदद करेगी। यदि गांव में फर्जी मस्टरोल बना, यदि भुगतान गलत तरीके से दिखाया गया, यदि मजदूरों की मजदूरी के नाम पर भ्रष्टाचार हुआ, तो वह भी सामने आएगा। लेकिन जांच शुरू कौन कराए? यही वह बिंदु है जहां ग्रामीणों को लगता है कि किसी बड़े अधिकारी का मौन इस भ्रष्टाचार का ढाल बन रहा है। और यही कारण है कि गांव के लोग लगातार सवाल पूछ रहे हैं कि क्या बनकटी वीडियो भावनी प्रसाद शुक्ल की नरमी या कथित सह इस पूरे खेल को बचा रही है?
हिनौता का माहौल आज लोकतंत्र की असल तस्वीर दिखाता है। जहाँ गरीब मजदूर न्याय की तलाश में भटक रहा है, जहाँ शिकायतें दालान में टंगी फाइलों की तरह धूल खा रही हैं, जहाँ विकास का ढिंढोरा तो पीटा जा रहा है लेकिन असल में विकास का पैसा किसी और के घर जा रहा है। गाँव के लोग अब खुलकर कह रहे हैं कि 76 मजदूरों का हक छीनना सिर्फ भ्रष्टाचार नहीं, बल्कि उन हाथों पर वार है जिन्होंने खेतों में दिन–रात पसीना बहाया है। यह सिर्फ आर्थिक लूट नहीं, नैतिक दिवालियापन भी है।
हिनौता का आखिरी और सबसे बड़ा सवाल अब भी हवा में तैर रहा है—प्रधान के सिर पर किसका हाथ है? क्या यह हाथ किसी अधिकारी का है? क्या यह हाथ किसी दबंग सिस्टम का है? क्या यही हाथ मजदूरों के हिस्से पर कब्जा जमाए बैठा है?
गांव जवाब मांग रहा है, व्यवस्था चुप है, और 76 मजदूरों की भूख इस चुप्पी से लड़ रही है। हिनौता इंतजार में है—कब सच सामने आएगा, कब जिम्मेदार कटघरे में खड़े होंगे, और कब मजदूरों के हक का सूरज फिर से उगेगा।























