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।। डॉ. शीबा खान की ‘कमीशनखोरी’ के आगे बेबस सरकारी सिस्टम ।।

डॉक्टर की साफ शर्त है— "जांच मेरी बताई जगह से होगी, तभी पर्चा देखूंगी।"

अजीत मिश्रा (खोजी)

।। हरैया महिला अस्पताल या लूट का अड्डा? डॉ. शीबा खान की ‘कमीशनखोरी’ के आगे बेबस सरकारी सिस्टम ।।

27 दिसंबर 25, उत्तर प्रदेश।

बस्ती।। सरकारें दावा करती हैं कि गरीबों को मुफ्त इलाज मिलेगा, लेकिन बस्ती जिले के हर्रैया स्थित ‘सौ शैय्या संयुक्त चिकित्सालय’ ने इन दावों की धज्जियां उड़ा दी हैं। यहाँ तैनात डॉ. शीबा खान पर जो आरोप लग रहे हैं, वे न केवल मानवता को शर्मसार करने वाले हैं, बल्कि प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था के गाल पर एक जोरदार तमाचा भी हैं।

🔥 सरकारी पर्चा, निजी ‘धंधा’ और कमीशन का खेल:-

आरोप है कि अस्पताल में पैथोलॉजी और अल्ट्रासाउंड की मुफ्त सुविधा होने के बावजूद, डॉ. शीबा खान मरीजों को खुलेआम ‘हिंद अल्ट्रासाउंड सेंटर’ जैसे निजी ठिकानों पर भेज रही हैं। सूत्र बताते हैं कि यहाँ इलाज दवाओं से नहीं, बल्कि ‘सांठगांठ’ से होता है। डॉक्टर की साफ शर्त है— “जांच मेरी बताई जगह से होगी, तभी पर्चा देखूंगी।” यदि कोई गरीब मरीज दूसरी जगह से सस्ती जांच करा लाता है, तो उसकी रिपोर्ट को कचरे के डिब्बे की शोभा बना दिया जाता है।

🔥 मरीज धूपा की सिसकियां और डॉक्टर की तानाशाही:-

ताजा मामला धूपा नामक एक गरीब महिला का है, जिसे मदद की उम्मीद में अस्पताल लाया गया था। लेकिन डॉ. शीबा खान की कथित दबंगई के आगे उसकी गरीबी भारी पड़ गई। आरोप है कि जांच बाहर से न कराने पर महिला को फटकार कर अस्पताल से भगा दिया गया। क्या एक सरकारी डॉक्टर का काम जान बचाना है या निजी सेंटरों की तिजोरी भरना?

🔥 अधिकारी मौन, स्टाफ नदारद: आखिर जिम्मेदार कौन?

अस्पताल की हालत यह है कि स्टाफ अपनी मर्जी का मालिक है। आधे से ज्यादा कर्मचारी ड्यूटी से नदारद रहते हैं, और जो हैं, वे मरीजों की सेवा के बजाय ‘मौज-मस्ती’ में मशगूल हैं। सबसे बड़ा सवाल बस्ती के स्वास्थ्य महकमे के जिम्मेदार अफसरों पर उठता है— क्या उनकी नाक के नीचे चल रहे इस ‘लूट तंत्र’ में उनकी भी मूक सहमति है?

🔥 जनता पूछे सवाल: कब थमेगी यह खुली लूट?

हर्रैया का यह अस्पताल अब मरीजों की उम्मीद नहीं, बल्कि कमीशनखोरी का अड्डा बन चुका है। गरीबों के खून-पसीने की कमाई को निजी सेंटरों की भेंट चढ़ाने वाली इस व्यवस्था पर आखिर कब कार्रवाई होगी? क्या शासन-प्रशासन डॉ. शीबा खान और उनके सहयोगियों पर लगाम कसेगा, या फिर गरीब यूँ ही दर-दर की ठोकरें खाते रहेंगे?

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