
यह हैं विधानसभा अतरौली के वर्तमान विधायक श्री संदीप सिंह जी, जो उत्तर प्रदेश सरकार में बेसिक शिक्षा मंत्री का दायित्व भी निभा रहे हैं। यह हाल ही में चल रहे विधानसभा सत्र का फोटो है। श्री संदीप सिंह जी के गले में जो मफलर साफ दिखाई दे रहा है,
उस मफलर की कीमत ₹57,500 बताई जा रही है।
वैसे कई अन्य वेबसाइटों पर मफलरों के दाम बहुत अधिक हैं; कुछ साइटों पर यह कीमत एक-एक लाख रुपये तक भी पहुँच जाती है। लेकिन यह कंपनी के ऑफिशियल वेबसाइट के वर्तमान दाम हैं, जो अब पहले से और भी महंगे हो चुके हैं।
लेकिन जनता का सवाल सीधा और जायज़ है बेसिक शिक्षा के लिए ज़मीन पर काम कहाँ है?
उसकी जीवनशैली और जनता की हालत की तुलना होना लोकतंत्र में स्वाभाविक है।
➡️ सार्वजनिक रूप से उपलब्ध जानकारी और स्थानीय स्थिति के अनुसार, उनके कार्यकाल में न तो अतरौली में और न ही प्रदेश स्तर पर किसी नए सरकारी स्कूल के निर्माण की ठोस तस्वीर सामने आती है।
➡️ विधानसभा की कार्यवाही में कई बार यह स्पष्ट दिखता है कि हिंदी भाषा में प्रभावी ढंग से अपनी बात रखने में कठिनाई होती है, जबकि विभाग सीधे तौर पर शिक्षा से जुड़ा है।
➡️ विधायक निधि से जुड़े कार्य समय पर स्वीकृत व क्रियान्वित न होने के कारण राशि वापस जाने की शिकायतें स्थानीय स्तर पर सामने आती रही हैं, जिसका सीधा नुकसान अतरौली की जनता को होता है। आज अतरौली की वास्तविकता यह है कि
लोधी समाज सहित अनेक गरीब परिवार बुनियादी ज़रूरतों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। कुछ परिवार ऐसे हैं जिनको समय पर राशन न मिले तो भोजन तक की व्यवस्था प्रभावित होती है। यह स्थिति किसी भी संवेदनशील जनप्रतिनिधि के लिए आत्ममंथन का विषय होनी चाहिए। दशकों से सत्ता एक ही प्रभावशाली परिवार के इर्द-गिर्द घूमती रही है,
लेकिन विकास के सूचकांक पर अतरौली अन्य विधानसभाओं की तुलना में लगातार पीछे दिखाई देती है। यह केवल भावना नहीं, बल्कि ज़मीनी सच्चाई है जिसे जनता रोज़ जी रही है।
और अब प्रतीकों की बात— जनप्रतिनिधि द्वारा सार्वजनिक कार्यक्रमों में उपयोग की जाने वाली महंगी व्यक्तिगत वस्तुएँ (जिनकी कीमतों की चर्चा आमजन में होती है) तब सवाल खड़े करती हैं,
जब उसी क्षेत्र की जनता रोटी, शिक्षा और रोज़गार के लिए संघर्ष कर रही हो। यह पोस्ट किसी व्यक्ति विशेष के अपमान के लिए नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक जवाबदेही की माँग है। जनप्रतिनिधि का जीवन-स्तर और जनता की स्थिति जब एक-दूसरे से बिल्कुल उलट दिखे, तो सवाल पूछना अपराध नहीं, नागरिक का अधिकार है। पारदर्शिक राजनीति और जवाबदेह प्रतिनिधि आज की सबसे बड़ी ज़रूरत है। लोकतंत्र तभी मजबूत होता है जब जनता को यह पता हो कि उसका प्रतिनिधि क्या कर रहा है, किसके लिए कर रहा है और जनता के संसाधनों का उपयोग कैसे हो रहा है। जो नेता सवालों से भागता है, वह जनता के भरोसे से भी भागता है। चुनाव के समय बड़े-बड़े वादे करना आसान होता है, लेकिन चुनाव के बाद उन्हीं वादों का हिसाब देना ही असली राजनीति है। जनता अब सिर्फ भाषण नहीं, ज़मीन पर काम देखना चाहती है। विकास वही है जो गांव, गरीब, किसान, मज़दूर और युवा की ज़िंदगी में बदलाव लाए। प्रतिनिधि का काम सत्ता का सुख भोगना नहीं, बल्कि जनता की समस्याओं को सुनना, समझना और उनका समाधान करना है। जब नेता जनता के बीच रहता है, उनकी भाषा बोलता है और हर सवाल का जवाब देता है, तभी विश्वास बनता है। आज जरूरत ऐसी राजनीति की है जिसमें डर नहीं हो, दबाव नहीं हो और सच बोलने वालों को कुचला न जाए। जनता मालिक है और नेता सेवक—जब यह भावना व्यवहार में आएगी, तभी सच्चा बदलाव होगा।




















