

🔴 कट्टरपंथी सोच को करारा जवाब: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चर्च, पादरियों और ईसाई नेताओं से संवाद ने झूठे धर्मांतरण के आरोपों की पोल खोली
नई दिल्ली।
देश में जब-जब कुछ कट्टरपंथी ताकतें ईसाई समुदाय, चर्चों और मिशनरी संस्थानों पर धर्मांतरण जैसे गंभीर और निराधार आरोप लगाती हैं, तब-तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा स्वयं चर्च के पादरियों, बिशपों और ईसाई समुदाय के वरिष्ठ नेताओं से लगातार संवाद और मुलाकातें उन आरोपों पर करारा तमाचा साबित होती हैं। सवाल सीधा है—यदि ईसाई संस्थान और चर्च देश-विरोधी या जबरन धर्मांतरण में लिप्त होते, तो क्या देश के प्रधानमंत्री स्वयं उनसे संवाद करते, उनके साथ बैठकर सामाजिक मुद्दों पर चर्चा करते और सौहार्द का संदेश देते?
बीते कुछ वर्षों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सायरो-मालाबार चर्च, कैथोलिक बिशप्स कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडिया, केरल और देश के अन्य हिस्सों के चर्च प्रमुखों एवं पादरियों से कई बार मुलाकात की है। इन बैठकों में शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक सेवा, अल्पसंख्यक कल्याण और राष्ट्रीय एकता जैसे विषयों पर खुलकर चर्चा हुई। प्रधानमंत्री ने न केवल ईसाई समुदाय के योगदान की सराहना की, बल्कि यह भी स्पष्ट किया कि भारत की ताकत उसकी विविधता और आपसी सम्मान में निहित है।
क्रिसमस जैसे पवित्र अवसरों पर प्रधानमंत्री का ईसाई समुदाय के बीच जाना, चर्च नेताओं से संवाद करना और उनके सामाजिक योगदान को सार्वजनिक रूप से स्वीकार करना, उन लोगों के लिए सीधा जवाब है जो हर अवसर पर नफरत और भ्रम फैलाने का काम करते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संदेश हमेशा स्पष्ट रहा है—धर्म के नाम पर विभाजन नहीं, बल्कि सेवा और समरसता ही राष्ट्र निर्माण का आधार है।
यही नहीं, केरल दौरे के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने विभिन्न चर्चों के प्रमुखों से मुलाकात कर यह भी दिखा दिया कि सरकार और चर्च के बीच संवाद का रास्ता हमेशा खुला है। इन बैठकों में चर्च नेताओं ने समुदाय से जुड़े मुद्दे रखे और प्रधानमंत्री ने उन्हें गंभीरता से सुना। यह लोकतंत्र की वही परंपरा है, जिसमें सरकार हर वर्ग, हर समुदाय और हर धर्म के लोगों से संवाद करती है।
अब यहां यह सवाल उठना लाज़िमी है कि जो लोग रोज़ ईसाई स्कूलों, चर्चों और त्योहारों को निशाना बनाते हैं, वे प्रधानमंत्री के इन कदमों को कैसे देखते हैं? क्या वे प्रधानमंत्री को भी कटघरे में खड़ा करेंगे? या फिर यह मानेंगे कि उनकी पूरी राजनीति तथ्यों पर नहीं, बल्कि अफवाहों और नफरत पर आधारित है?
कट्टरपंथी ताकतें अक्सर ईसाई शिक्षण संस्थानों पर धर्मांतरण का आरोप लगाती हैं, जबकि सच्चाई यह है कि इन्हीं संस्थानों से पढ़कर देश को प्रधानमंत्री, मंत्री, IAS-IPS अधिकारी, वैज्ञानिक, डॉक्टर, सैनिक और कलाकार मिले हैं—और वे सभी आज भी अपनी मूल धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान के साथ देश की सेवा कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं जब चर्च के पादरियों और ईसाई नेताओं से संवाद करते हैं, तो यह इस बात की आधिकारिक पुष्टि भी है कि ईसाई समुदाय राष्ट्र-विरोधी नहीं, बल्कि राष्ट्र-निर्माण में सहभागी है।
सबसे बड़ा विरोधाभास यह है कि जो लोग ईसाई त्योहारों या स्कूलों का विरोध करते फिरते हैं, वे कभी बाजार में खुलेआम बिक रहे क्रिसमस के सामान, केक, लाइटिंग और सजावट पर सवाल नहीं उठाते। उन्हें बच्चों के स्कूल, शिक्षक और शिक्षा संस्थान आसान निशाना लगते हैं। जबकि सच्चाई यह है कि स्कूल की जिम्मेदारी उसके प्रबंधन की होती है, न कि सड़क पर नारे लगाने वाले स्वयंभू ठेकेदारों की।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चर्च नेताओं से मुलाकातें इस बात का प्रमाण हैं कि देश का शीर्ष नेतृत्व कट्टरता नहीं, संवाद और सद्भाव में विश्वास करता है। यह उन लोगों के लिए स्पष्ट संदेश है जो धर्म के नाम पर समाज को बांटने का सपना देखते हैं। भारत नफरत से नहीं, बल्कि संवाद, सेवा और आपसी सम्मान से आगे बढ़ेगा—और यही प्रधानमंत्री मोदी की नीति और नीयत दोनों में साफ झलकता है।
आज जब प्रधानमंत्री स्वयं ईसाई समुदाय के साथ खड़े दिखाई देते हैं, तब यह साफ हो जाता है कि धर्मांतरण का शोर केवल राजनीतिक एजेंडा है, सच्चाई नहीं। और यह सच्चाई अब सिर्फ शब्दों में नहीं, बल्कि प्रधानमंत्री के सार्वजनिक आचरण और संवाद में भी दर्ज हो चुकी है।
✍️ रिपोर्ट: एलिक सिंह
संपादक – Vande Bharat Live TV News
ब्यूरो चीफ – दैनिक आकांक्षा बुलेटिन, सहारनपुर
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