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मुस्लिम-यादव वोट से जीते थे राजभर, अब मंत्री बनकर गाली दे रहे: सुभासपा महासचिव का इस्तीफा

इजहार अली के इस्तीफे से मुस्लिम वोट पूरी तरह सुभासपा से खिसका; भाजपा-सुभासपा गठबंधन पर संकट

वंदे भारत लाइव टीवी न्यूज रिपोर्ट

लखनऊ। यूपी की सियासत में बड़ा उलटफेर करते हुए सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के महासचिव इजहार अली ने गुरुवार को पार्टी और अपने पद से इस्तीफा दे दिया। इजहार अली का इस्तीफा पार्टी प्रमुख और राज्य सरकार के कैबिनेट मंत्री ओमप्रकाश राजभर के लिए करारा झटका माना जा रहा है।


इजहार अली ने इस्तीफे में राजभर पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि “मुस्लिम और यादव वोटों से जीतकर आज अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री बनने के बाद वे उन्हीं को गाली दे रहे हैं।” उन्होंने सुभासपा पर परिवाद हावी होने का भी आरोप लगाया और कहा कि आज पार्टी में राजभर परिवार का वर्चस्व बढ़ गया है।

इजहार ने आरोप लगाया,

> “दोनों बेटे और बहुएं सिक्योरिटी में चलती हैं। पहले आपका जिंदाबाद किया, फिर बेटों का जिंदाबाद किया, अब पोते का जिंदाबाद करने की स्थिति आ गई है।”

उन्होंने अपना इस्तीफा शायराना अंदाज में लिखा और तंज कसते हुए कहा,

> “अगर आंधियों को जिद है बिजलियां गिरने की, तो हमें भी जिद है वहीं आशियाना बनाने की।”

सियासी सफर और पृष्ठभूमि

इजहार अली ने राजनीति की शुरुआत बसपा से की थी और वे मुलायम सिंह यादव को अपना राजनीतिक गुरु मानते हैं। बाद में वे सपा में भी रहे और 2021 में सुभासपा से जुड़े। महासचिव के साथ-साथ वे बिहार संगठन के प्रभारी भी थे और पार्टी में उनकी मजबूत पकड़ थी।

जब उनसे पूछा गया कि वे अब किस पार्टी में जाएंगे, तो उन्होंने कहा,

> “अभी कोई फैसला नहीं हुआ है। कार्यकर्ताओं से राय लेने के बाद ही आगे का कदम तय करेंगे।”

सुभासपा में पहले भी हो चुका है बड़ा इस्तीफा

इजहार अली के इस्तीफे से पहले, अप्रैल 2025 में सुभासपा के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के 200 से ज्यादा मुस्लिम पदाधिकारियों ने भी पार्टी छोड़ दी थी। उन पदाधिकारियों ने भी राजभर पर परिवारवाद का आरोप लगाते हुए पार्टी से दूरी बनाई थी।

राजनीतिक महत्व

इजहार अली का इस्तीफा ऐसे समय पर आया है जब 2027 के विधानसभा चुनाव की तैयारी में सभी दल अपनी रणनीति मजबूत कर रहे हैं। सुभासपा के लिए यह झटका खास इसलिए भी है क्योंकि इजहार अली का अल्पसंख्यक वोट बैंक पर मजबूत प्रभाव माना जाता था।
राजभर के खिलाफ इस्तीफे का राजनीतिक असर – विस्तृत विश्लेषण

इजहार अली का इस्तीफा सिर्फ एक संगठनात्मक घटना नहीं है, बल्कि यह उत्तर प्रदेश की जातीय-सियासत, मुस्लिम वोट बैंक और गठबंधन राजनीति को सीधा प्रभावित करने वाला कदम है। इसका असर कई स्तरों पर होगा।

✅ 1. मुस्लिम वोट बैंक पर सीधा असर

सुभासपा की मुस्लिम पकड़ खत्म: सुभासपा ने 2021 के बाद मुस्लिमों को जोड़ने के लिए कई प्रयास किए, जिसमें इजहार अली जैसे चेहरे को आगे किया गया।

उनके जाने के बाद मुस्लिम समुदाय में यह धारणा मजबूत होगी कि राजभर भाजपा की लाइन पर हैं और मुस्लिम विरोधी बयान देते हैं।

200 से ज्यादा अल्पसंख्यक पदाधिकारियों का पहले ही इस्तीफा + इजहार अली का जाना = मुस्लिम वोट का सुभासपा से पूरी तरह मोहभंग।

👉 नतीजा: मुस्लिम वोट अब सुभासपा से कटकर दो विकल्पों पर जाएगा – सपा या कांग्रेस।

✅ 2. यादव-मुस्लिम समीकरण का असर

इजहार अली ने साफ कहा कि “राजभर यादव-मुस्लिम वोट से जीते, पर अब उन्हीं को गाली दे रहे हैं।”

यह बयान सपा के लिए बड़ा मौका है क्योंकि वह पहले से ही Yadav-Muslim गठजोड़ पर टिकी है।

अगर सपा इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाती है, तो ओमप्रकाश राजभर का यादव वोट बैंक भी खिसक सकता है।

👉 नतीजा: पूर्वांचल में राजभर + भाजपा का समीकरण कमजोर होगा।

✅ 3. भाजपा-सुभासपा गठबंधन पर असर

भाजपा ने सुभासपा को इसलिए जोड़ा था ताकि राजभर वोट + कुछ ओबीसी और मुस्लिमों में सेंध लगाई जा सके।

अब मुस्लिमों में सुभासपा की पूरी साख खत्म हो गई है।

भाजपा को राजभर का राजनीतिक उपयोग अब सिर्फ राजभर जाति तक सीमित रह गया है।

इजहार अली जैसे मुस्लिम चेहरे के जाने से भाजपा को भी अल्पसंख्यक विरोधी छवि का नुकसान हो सकता है।

👉 नतीजा: भाजपा को 2027 में पूर्वांचल में नुकसान की भरपाई के लिए ब्राह्मण और गैर-यादव ओबीसी वोट पर ज्यादा फोकस करना होगा।

✅ 4. सपा और बसपा के लिए बड़ा मौका

सपा: मुस्लिम + यादव + राजभर असंतुष्ट नेताओं को जोड़ने की रणनीति बनाएगी।

अगर सपा इजहार अली को अपने साथ लाती है, तो यह पूर्वांचल में मुस्लिम वोट पूरी तरह सपा के पास जाने का रास्ता खोल देगा।

बसपा: मायावती भी इस मौके का फायदा उठा सकती हैं क्योंकि इजहार अली का शुरुआती सफर बसपा से जुड़ा रहा है।

✅ 5. इजहार अली का अगला कदम महत्वपूर्ण

अगर वे सपा में जाते हैं, तो यह राजभर विरोधी अल्पसंख्यक गठजोड़ को मजबूती देगा।

अगर बसपा में जाते हैं, तो दलित + मुस्लिम समीकरण को फिर से खड़ा करने की कोशिश होगी।

अगर कांग्रेस में जाते हैं, तो यह कांग्रेस के पुनर्जीवन के लिए बड़ी खबर होगी, खासकर पूर्वांचल में।

गाजीपुर/मऊ/बलिया। पूर्वांचल के गांवों में चुनावी चर्चाओं का रंग बदल गया है। चौपालों पर अब ओमप्रकाश राजभर के खिलाफ नाराजगी की खुली बातें हो रही हैं। वजह? सुभासपा के महासचिव इजहार अली का इस्तीफा।

गाजीपुर के एक गांव की चौपाल का नज़ारा:

चाय की दुकान पर बैठे जफर मियां कहते हैं –
“हमने समझा था राजभर साहब हमारी आवाज उठाएंगे, लेकिन अब तो मंत्री बनकर हमारी तरफ देखते भी नहीं।”

उनके बगल में बैठे रामजी यादव भी जोड़ते हैं –
“भाई साहब, यादव-मुसलमान के बिना कोई जीत नहीं सकता। लेकिन अब राजभर जी भाजपा में जाकर हमारा अपमान कर रहे हैं।”

मऊ जिले के एक मुस्लिम बहुल गांव में माहौल:

यहां लोग खुलकर कह रहे हैं –
“हमारे वोट से जीते और हमें ही गाली दी। अब वोट सपा को देंगे।”

विश्लेषण:

ग्राउंड पर साफ है कि सुभासपा का मुस्लिम वोट बैंक पूरी तरह खत्म हो चुका है। सपा के कार्यकर्ता गांव-गांव में बैठकों के जरिए इस मुद्दे को भुना रहे हैं।

🔍 निष्कर्ष (पॉलिटिकल गेम चेंजर)

सुभासपा मुस्लिम वोट बैंक से पूरी तरह बाहर।

राजभर की राजनीति अब सिर्फ अपनी जाति पर निर्भर।

सपा को सीधा फायदा, भाजपा को नुकसान।

इजहार अली का अगला कदम तय करेगा कि यह नुकसान कितना बड़ा होगा।

Jitendra Maurya

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