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सहारनपुर विकास प्राधिकरण (एसडीए) में महाघोटाला: रिश्वतखोरी की जड़ तक पहुँची जाँच, भ्रष्टाचार के ‘संरक्षकों’ पर अब तक की सबसे बड़ी गाज की तैयारी

सहारनपुर विकास प्राधिकरण (एसडीए) में दशकों से पनप रहे भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के एक बड़े खुलासे ने जिले के प्रशासनिक गलियारों में भूचाल ला दिया है।

सहारनपुर विकास प्राधिकरण (एसडीए) में महाघोटाला: रिश्वतखोरी की जड़ तक पहुँची जाँच, भ्रष्टाचार के ‘संरक्षकों’ पर अब तक की सबसे बड़ी गाज की तैयारी

 

सहारनपुर: सहारनपुर विकास प्राधिकरण (एसडीए) में दशकों से पनप रहे भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के एक बड़े खुलासे ने जिले के प्रशासनिक गलियारों में भूचाल ला दिया है। एंटी करप्शन टीम द्वारा हाल ही में 50 हजार रुपये की रिश्वत लेते रंगे हाथों गिरफ्तार किए गए एक जूनियर इंजीनियर (जेडई) के सनसनीखेज खुलासों ने यह साबित कर दिया है कि एसडीए की कुर्सी पर केवल कर्मचारी नहीं, बल्कि एक संगठित भ्रष्ट ‘सिस्टम’ बैठा हुआ था। इस खुलासे ने न केवल सहारनपुर के शहरी नियोजन को खतरे में डाला है, बल्कि अब कई उच्च पदस्थ अधिकारियों और ‘संरक्षकों’ का भविष्य भी दाँव पर लगा दिया है।

 

कैसे उजागर हुआ ‘सिस्टम’?

 

मामले की शुरुआत एक गुप्त शिकायत से हुई, जिसमें आरोप लगाया गया था कि एसडीए में निर्माण कार्य की अनुमति देने और अवैध निर्माणों पर कार्रवाई रोकने के एवज में मोटी रिश्वत ली जा रही है। एंटी करप्शन टीम ने जाल बिछाया और कुछ ही दिनों के भीतर एक जेडई को रंगे हाथों गिरफ्तार कर लिया। यह गिरफ्तारी हिमखंड की नोक मात्र थी।

गिरफ्तारी के बाद, आरोपी जेडई को जब रिमांड पर लिया गया, तो उसने पूछताछ में जो खुलासे किए, उसने जांच टीम को भी चौंका दिया। जेडई ने स्वीकार किया कि वह केवल एक मोहरा था। उसने खुलासा किया कि यह पैसा ऊपर तक जाता था, जिसमें विभिन्न विभागों के उच्च इंजीनियरों, तकनीकी स्टाफ और यहां तक कि प्रशासनिक विंग के वरिष्ठ अधिकारी भी शामिल थे। उसने कई बड़े नामों, लेनदेन के तरीकों और उस कोडवर्ड का भी खुलासा किया जिसका उपयोग इस अवैध वसूली नेटवर्क में किया जाता था।

 

भ्रष्टाचार का संगठित नेटवर्क और कार्यशैली

 

जेडई के खुलासों से यह स्पष्ट हो गया है कि एसडीए में भ्रष्टाचार कोई व्यक्तिगत घटना नहीं, बल्कि एक व्यवस्थित आपराधिक नेटवर्क था। इस नेटवर्क की कार्यशैली बेहद सुनियोजित थी:

  1. नियमों की जानबूझकर अनदेखी: बिल्डरों या स्थानीय लोगों द्वारा किए गए बड़े अवैध निर्माणों को पहले जानबूझकर अनदेखा किया जाता था।
  2. दबाव और धमकी का खेल: जब निर्माण कार्य काफी हद तक पूरा हो जाता था, तो टीम द्वारा ‘कार्रवाई’ के नाम पर नोटिस जारी किया जाता था।
  3. रेट फिक्सिंग: इसके बाद, जेडई या संबंधित क्लर्क शिकायतकर्ता से मिलता था और ‘मामला रफा-दफा’ करने के लिए एक मोटी ‘फीस’ तय करता था। यह ‘फीस’ निर्माण की लागत, स्थान और राजनीतिक पहुँच के आधार पर तय होती थी।
  4. ऊपरी हिस्सेदारी: जेडई ने कबूला कि वसूली गई राशि का एक निश्चित प्रतिशत (जिसे स्थानीय भाषा में ‘हिस्सा’ या ‘कट’ कहा जाता था) उसके वरिष्ठ अधिकारियों और उन लोगों को जाता था जो इस गोरखधंधे को वर्षों से ‘संरक्षण’ दे रहे थे।

इस तरह, बिना नक्शा पास कराए बहुमंजिला इमारतों का निर्माण होता रहा, जबकि शहर की सुरक्षा, अग्निशमन मानकों और सुनियोजित विकास की खुलेआम धज्जियाँ उड़ाई जाती रहीं। यह नेटवर्क वर्षों से सहारनपुर के सुनियोजित विकास के लिए एक दीमक की तरह काम कर रहा था।

 

जांच का दायरा: कौन-कौन हैं निशाने पर?

 

एंटी करप्शन टीम के अधिकारियों ने बताया कि आरोपी द्वारा दिए गए सुरागों के आधार पर अब जांच को कई दिशाओं में बढ़ाया जा रहा है। टीम ने निम्न पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया है:

  • दस्तावेजी प्रमाण: पिछले पाँच वर्षों में जारी किए गए और फिर वापस लिए गए सभी नोटिसों और सीलिंग आदेशों की समीक्षा की जा रही है। विशेषकर उन मामलों को खंगाला जा रहा है जहाँ नोटिस जारी होने के बाद कार्रवाई अचानक रोक दी गई।
  • वित्तीय ट्रेल: आरोपी और उसके सहयोगियों के बैंक खातों, बेनामी संपत्ति और संदिग्ध लेन-देन की विस्तृत जाँच की जा रही है। यह पता लगाया जा रहा है कि सरकारी वेतन के अलावा उनके पास आय के कौन से स्रोत थे।
  • आमना-सामना पूछताछ: उन सभी अधिकारियों और कर्मचारियों को सूचीबद्ध किया जा रहा है, जिनका नाम जेडई ने लिया है। उन्हें जल्द ही आमने-सामने बिठाकर पूछताछ की जाएगी ताकि कोई भी बच न पाए।

सूत्रों के मुताबिक, जांच की आंच एसडीए के मुख्य अभियंता, कुछ उप सचिव स्तर के अधिकारियों और कई पूर्व प्रशासनिक प्रमुखों तक पहुँच सकती है। माना जा रहा है कि कई अधिकारी जल्द ही पूछताछ के लिए तलब किए जा सकते हैं, और यह घोटाला सहारनपुर के इतिहास में एसडीए का सबसे बड़ा भ्रष्टाचार कांड साबित हो सकता है।

 

शहरी नियोजन पर गंभीर खतरा

 

यह घोटाला सिर्फ रिश्वतखोरी का नहीं है; यह सहारनपुर के भविष्य के लिए एक गंभीर खतरा है। अवैध निर्माणों को पैसे लेकर संरक्षण देने का मतलब है:

  1. आपदा का निमंत्रण: बिना इंजीनियरिंग मानकों के बनी इमारतें भूकंप या अन्य आपदाओं की स्थिति में बेहद खतरनाक साबित हो सकती हैं।
  2. ट्रैफिक जाम और अतिक्रमण: अवैध रूप से व्यावसायिक उपयोग के लिए बने निर्माण शहर के मास्टर प्लान को बिगाड़ते हैं, जिससे ट्रैफिक जाम और सार्वजनिक स्थानों पर अतिक्रमण की समस्या बढ़ती है।
  3. राजस्व की हानि: इस भ्रष्टाचार से सरकारी खजाने को भी करोड़ों रुपये के राजस्व का नुकसान हुआ है, जिसका उपयोग जनहित के कार्यों में किया जा सकता था।

 

जनता की अपेक्षाएं और आगे की राह

 

स्थानीय नागरिकों और समाजसेवी संगठनों ने इस साहसी कार्रवाई के लिए एंटी करप्शन टीम की सराहना की है। उनका कहना है कि लंबे समय से इस भ्रष्ट तंत्र के कारण आम जनता पिस रही थी। अब जनता की सबसे बड़ी अपेक्षा यह है कि इस जांच को बीच में न रोका जाए और दोषी चाहे कितना भी बड़ा क्यों न हो, उसे कठोरतम सजा मिले।

यह मामला राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन के लिए एक वेक-अप कॉल है। यह दिखाता है कि भ्रष्टाचार की जड़ें कितनी गहरी हैं और इसे उखाड़ फेंकने के लिए केवल एक जूनियर इंजीनियर की गिरफ्तारी काफी नहीं है, बल्कि पूरे ‘सिस्टम’ को साफ करने की जरूरत है। सहारनपुर की जनता अब निष्पक्ष, पारदर्शी और निर्णायक कार्रवाई की मांग कर रही है, ताकि भविष्य में कोई भी अधिकारी कानून और सार्वजनिक विश्वास को तोड़ने की हिम्मत न कर सके।


✍️ रिपोर्ट: एलिक सिंह

संपादक – समृद्ध भारत समाचार पत्र

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