
सीधी। हर सरकार आदिवासी विकास की बात करती है लेकिन आदिवासियों के विकास की हकीकत यह है कि सीधी जिले के आदिवासी अंचल ग्राम पंचायत अमरोला में बिजली तो दूर की बात है आज तक बिजली के खंभे तक नहीं लगे हैं। भारत विकासशील देशों में शामिल है लेकिन विकास की हकीकत यह है कि ग्रामीण क्षेत्र मूलभूत सुविधाओं को तरस रहे हैं।
आदिवासी बाहुल्य विकासखंड क्षेत्र कुसमी के ग्राम पंचायत अमरोला जो कि सीधी जिले में शामिल है लेकिन सीधी जिले से इसकी दूरी लगभग 120 किलोमीटर है। सीधी जिला मुख्यालय से लगभग 90 किलोमीटर दूर भुईमाड से लगभग 25 किलोमीटर दूर दक्षिण दिशा में पडने वाले ग्राम पंचायत अमरोला मैं अमरोला सहित 10 गांव कुरचू, बेलगाव, हार्रई, बॅधाडोल, जवारीटोला, पुरइंनडोल, बैलाताल, क्योटी और अमराडॅडी आते हैं यहां की कुल आबादी है लगभग 2000 है जिसमें 710 पुरुष मतदाता और 695 महिला मतदाता शामिल है। इस ग्राम पंचायत की विडंबना यह है कि यह ना तो पूरी तरह से सीधी जिले में है और ना ही पूरी तरह से सिंगरौली जिले में है। गौरतलब है कि वर्ष 2008 में सिंगरौली जिले का गठन किया गया है तब गोपद नदी को सीधी और सिंगरौली जिले की सीमा रेखा घोषित किया गया है लेकिन विडंबना यह है कि गोपद नदी के दूसरी तरफ लगने वाले सिंगरौली जिले के करीब होते हुए भी ग्राम पंचायत गैवटा, सोनगढ़, भूईमाड, करैल, केशलार और अमरोला को सीधी जिले के कुसमी विकासखंड अंतर्गत रखा गया है लेकिन इससे भी बड़ी विडंबना तो यह है कि मध्य प्रदेश पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी लिमिटेड ने इन ग्राम पंचायतों को सिंगरौली जिले के विद्युत वितरण केंद्र सरई अंतर्गत रखा गया है। अमरोला ग्राम पंचायत एक ऐसी ग्राम पंचायत है जो कि छत्तीसगढ़ की सीमा से लगती है और इस ग्राम पंचायत में आज तक बिजली तो दूर की बात है बिजली के खंभे और तार तक नहीं लगे हैं जबकि हमारे राष्ट्राध्यक्ष यह बताते हुए नहीं थकते हैं कि हम विकसित राष्ट्रों में शामिल है और हमारी जीडीपी निरंतर ग्रोथ कर रही है। आदिवासी विकास की डॉन योजनाएं चल रही है फिर भी आदिवासी अंचल में मूलभूत सुविधाओं का अभाव है और यहां के लोग आज भी 18 वीं सदी में जीवन यापन कर रहे हैं। यह ग्राम पंचायत धौहनी विधानसभा क्षेत्र में आता है जहां से कुंवर सिंह टेकाम लगातार चौथी बार जीत हासिल कर विधानसभा पहुंचे हैं। इस संबंध में जब उनके प्रयासों और शासन की भावी योजनाओं को जानने के लिए जब हमने उनके मोबाइल पर संपर्क किया तो उन्होंने फोन रिसीव करने की जहमत नहीं उठाई , और ना ही मैसेज का कोई जवाब दिया जो यह बताता है कि श्री टेकाम जन समस्याओं को लेकर कितने गंभीर हैं और आम जनमानस से किस कदर जुड़े हुए हैं कि उन्हें किसी का फोन उठाने और बात सुनने तक की फुर्सत नहीं है। कहना गलत नहीं होगा कि जनप्रतिनिधियों ने जन समस्याओं से अपनी आंखें फेर रखी है और उन्हें समस्याओं की निराकरण में कोई दिलचस्पी नहीं है तभी तो आजादी का अमृत महोत्सव बीत जाने के बाद भी अमरोला के आदिवासी क्षेत्रों में बिजली के तार और खंभे तक नहीं पहुंचे हैं और हम चांद पर सफल लैंडिंग की बात कर रहे हैं।