
सागर। वंदे भारत लाईव टीवी न्यूज रिपोर्टर सुशील द्विवेदी ,8225072664- “गूगल से उत्तर मिल सकता है, पर राह केवल गुरु ही दिखाता है।” कभी गुरु शिष्य का पवित्र रिश्ता तपोवन या आश्रमों की मिट्टी में पलता था, आज वह टेक्नोलॉजी के टैबलेट पर साँस लेता है। पूर्व के जमाने में शिक्षक की बात पत्थर की लकीर मानी जाती थी, अब छात्र उसका स्रोत पूछते हैं। तो क्या अब छात्र और शिक्षक का रिश्ता उतना पवित्र नहीं रहा ? वह पवित्रता अब एक नई भाषा बोल रही है, एक नई आत्मा के साथ। आधुनिक युग में शिक्षक और छात्र का सम्बन्ध केवल “ज्ञान देने और ज्ञान प्राप्त करने” की प्रक्रिया नहीं रह गई है, बल्कि यह एक सहयोगी, संवादशील एवं संवेदनशील रिश्ता बन चुका है जहाँ दोनों ही सीखते हैं और सिखाते हैं। शिक्षक केवल पाठ नहीं पढ़ाता, वह जिंदगी की किताब खोलता है। कभी शिक्षक और छात्र के बीच का रिश्ता आदर और अनुशासन से भरा होता था -एक ऐसा रिश्ता जहाँ शिक्षक की हर बात शिष्य के लिए आदेश होती थी। आज भी वह सम्मान बरकरार है, लेकिन अब रिश्ते का एकमात्र आधार नहीं रहा। 21 वीं सदी में यह रिश्ता एक नये रूप, नई भाषा एवं नई जरूरतों के साथ हमारे सामने खड़ा है। आज का छात्र जानना चाहता है “क्यों, कैसे ?”
प्राचीन भारत में गुरु-शिष्य परम्परा एक आध्यात्मिक, अनुशासनात्मक एवं आत्मिक संबंध पर आधारित थी। विद्यार्थी गुरुकुल में निवास करते थे, अपने गुरु के सानिध्य में वे शिक्षा के साथ जीवन के आदर्श, मूल्य और व्यवहार भी सीखते थे। गुरु द्रोणाचार्य और एकलव्य, श्री राम और गुरु वशिष्ट इन रिश्तों में आस्था, समर्पण एवं त्याग की भावना थी। समय बदला, स्कूलों की दीवारें खड़ी हुई, किताबें छपी, ब्लेक बोर्ड आये, फिर स्मार्ट बोर्ड और अब मोबाईल के स्क्रीन पर क्लास चल रही है। गुरु भी बदल गये, शिष्य भी। लेकिन रिश्ता नहीं बदला-उसका स्वरूप बदल गया है। एक परम्परा जो बदल गयी है भारतीय संस्कृति में शिक्षक को “ब्रह्मा, विष्णु, – महेश” के रूप में पूजा गया है। किन्तु आज का छात्र उस युग का नहीं है, जहाँ ज्ञान को आँख मूँदकर स्वीकार किया जाता था। आज के छात्र स्मार्ट, नई पीढ़ी के है, जो प्रश्न पूछते हैं, सही उत्तर चाहते हैं, चुनौती देते है व तर्क करते हैं। इसलिए आज का शिक्षक केवल “सूचना” का भंडार नहीं है, बल्कि एक मार्गदर्शक, प्रेरक एवं मनोवैज्ञानिक सहारा बन चुका है। तकनीक का प्रभाव, ऑनलाइन क्लासेस, यूट्यूब ट्यूटोरियल, A.I. Tools ने छात्रों को वैकल्पिक ज्ञान का स्रोत दे रहे हैं। अ शिक्षक की भूमिका बदल गयी है वे ज्ञान देने वाले नहीं, बल्कि एक दिशा -निर्देशक बन चुके हैं। छात्रों की भी मानसिकता बदल गई है। आज का छात्र सिर्फ किताबें नहीं पढ़ता, वो जिंदगी को समझना चाहता है। उसे ऐसा शिक्षक चाहिए जो एक मित्र की तरह उसे सुने और माता-पिता की तरह राह दिखाये। शिक्षक की भूमिका में विस्तार आ गया है। अब शिक्षक सिर्फ “सिलेबस” नहीं पढ़ाते, वे मानसिक स्वास्थ्य, कैरियर काउंसलिंग एवं आत्म संवाद का माध्यम बन गये हैं। शिक्षक एक छात्र के लिए Mentor (मार्गदर्शक), काउंसलर, कोच व Motivator बन गये हैं। वे अब शिष्य के जीवन में उस समय साथ खड़े होते हैं जब बाकी दुनिया उनसे मुँह मोड़ लेती है और जरा सी मुश्किल में छात्र डिप्रेशन की राह पर चलने लगते हैं। डिजिटल शिक्षा ने जहाँ सुविधाएँ दी हैं, वहीं कई चुनौतियाँ भी सामने आई हैं। छात्र अब गूगल से उत्तर ढूँढ़ते हैं, शिक्षक से नहीं। यूट्यूब पर लेक्चर देख लेते है, क्लास में ध्यान नहीं देते। वीडियो क्लासेस में “कनेक्शन” है, लेकिन जुड़ाव नहीं है। यहीं पर एक शिक्षक की असली परीक्षा आरंभ होती है। आज के शिक्षक को अपने ज्ञान के साथ-साथ भावनात्मक बुद्धिमत्ता भी दिखानी पड़ती है। आज के छात्र चाहते हैं कि उन्हें सुना जाय, समझा जाय और डांट की जगह उन्हें संवेदनायें मिलें। वे चाहते हैं शिक्षक उन्हें प्रेरणा दें, सजा नहीं। पुराने जमाने में संवाद एकतरफा होता था, अब दोतरफा है। पहले अनुशासन बहुत सख्त था, अब लचीला और समझदारी का हो गया है। पहले शिक्षक की भूमिका पाठ्यपुस्तक तक सीमित थी, अब जीवन तक विस्तृत हो गई है। पहले शिक्षक और छात्र का संबंध भय एवं तनाव का होता था, अब वह विश्वास से जुड़ा है। शिक्षक, समाज में सकारात्मक समाज परिवर्तन लाने का कार्य भी करते हैं। एक शिक्षक केवल स्कूल या कॉलेज की चारदीवारी तक सीमित नहीं होता। समाज में नैतिकता, समानता, भाईचारा और सहिष्णुता जैसे मूल्यों को विकसित करने में भी शिक्षक की बड़ी भूमिका होती है। वे बच्चों को अच्छा नागरिक बनना भी सिखाते हैं, जिससे राष्ट्र का भविष्य उज्जवल बन सके। शिक्षा के माध्यम से शिक्षक, समाज में चेतना एवं जागरूकता लाते हैं। आज के छात्र राष्ट्र का भविष्य है एवं उनका सही मार्गदर्शन करना एक शिक्षक की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी होती है। शिक्षक छात्रों के लिए एक प्रेरणा स्रोत भी होते हैं। कई बार एक शिक्षक का एक वाक्य, एक सलाह या एक सकारात्मक प्रतिक्रिया किसी छात्र के जीवन की दिशा बदल सकती है। सच्चे अर्थों में, शिक्षक, समाज के शिल्पकार होते हैं जो कच्चे माटी को आकार देकर, भविष्य के मजबूत स्तम्भ तैयार -करते हैं। शिक्षक राष्ट्र निर्माता की भूमिका भी निभाते हैं, जो समाज को शिक्षित, सुसंस्कृत एवं सशक्त बनाते हैं।
शिक्षक दिवस के उपलक्ष्य पर विद्यार्थियों की भी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी यह है, कि वे अपने शिक्षकों के प्रति सम्मान एवं कृतज्ञता प्रकट करें। शिक्षक अपने पूर्ण जीवन भर छात्रों का मार्गदर्शन करते है, उन्हें सही-गलत का भेद सिखाते हैं एवं उन्हें सफल बनाते हैं। अतः, प्रत्येक छात्र को उनके योगदान को स्मरण करके उनकी सराहना करना चाहिए। शिक्षक दिवस, यह वह अवसर है जब विद्यार्थी अपने शिक्षकों को यह महसूस कराते हैं, कि उनका परिश्रम व्यर्थ नहीं गया। यह हमें याद दिलाता है कि हम जहाँ भी है, इसमें शिक्षकों का योगदान सबसे बड़ा है। इसलिये विद्यार्थियों की यह नैतिक एवं सामाजिक जिम्मेदारी बनती है, कि शिक्षकों को अपने व्यवहार और कार्य से स्नेह दें।
शिक्षक और छात्र का रिश्ता समय के साथ बदल रहा है पर उसकी -आत्मा वही है – ज्ञान, मार्गदर्शन एवं आत्मविकास। शायद आज का शिक्षक वह नहीं जो सिर्फ पाठ पढ़ाये, बल्कि वह है जो छात्र के असफल दिनों में उसका हाथ थामें और इस सफलता में उसके पीछे खड़े होकर कहे “यह जीत -तुम्हारी है, मैंने तो सिर्फ रास्ता दिखाया है।” गूगल उत्तर दे सकता है, पर सच्चा शिक्षक वही है, जो बिना पूछे सवाल पहचान लेते हैं। “शिष्य बदलते हैं, समय बदलता है – पर सच्चा शिक्षक हर युग में जरूरी होता है।
डॉ. नीलिमा पिम्पलापुरे लेखिका, समाजसेविका, सागर