
व्यंग्य — अजीत मिश्रा (खोजी)
।। खादी प्रदर्शनी नहीं… ‘खामोशी दिखाओ अभियान’।।
😭 अयोध्या की मंडल स्तरीय खादी ग्रामोद्योग प्रदर्शनी ने इस बार इतिहास रच दिया— इतिहास भीड़ का नहीं… सन्नाटे का।
😇 लगता है आयोजकों ने इस बार थीम रखी थी— खाली स्टॉल, खाली दिमाग और भरा हुआ बजट।
08 दिसंबर 25, उत्तर प्रदेश।
जिस प्रदर्शनी का बजट 30 लाख, उसकी शोभा बस 30 लोग। शायद जिम्मेदारों ने सोचा होगा—“पब्लिक भला क्यों आए? हमारे लिए तो फाइल में ही प्रदर्शनी लग जाती है। ऊपर से दुकानदारों की हालत— जैसे किसी ने पिकनिक पर बुलाकर जंगल में छोड़ दिया हो।
मनोरंजन शून्य, कार्यक्रम शून्य, भीड़ शून्य… पूरा आयोजन ऐसा लग रहा था कि मानो मनोरंजन विभाग को ‘निलंबित’ कर दिया गया और जिम्मेदारी ‘भगवान भरोसे समिति’ को सौंप दी गई हो। जिम्मेदार अधिकारी भी प्रदर्शनी की तरह… गायब। दुकानदार दिन भर ग्राहक ढूंढते रहे, और अधिकारी दिन भर अपना चेहरा छुपाते रहे।* व्यापारियों ने सही कहा— यह प्रदर्शनी नहीं थी, यह 30 लाख का बिना भीड़ का बजट-यज्ञ था। खादी बेचने आए थे, लेकिन बेचारा ‘विश्वास’ बिक गया कश्मीर की शॉल, भागलपुर की सिल्क,कन्नौज की सुगंध, सब तैयार थीं… पर खरीदने वाला कोई नहीं! मानो आयोजन समिति ने शहर को संदेश भेज रखा हो— कृपया प्रदर्शनी में न आएं यह केवल संसाधनों की खपत के लिए है।”
और सबसे बड़ा मज़ाक… 80% दुकानदार तो *पहली बारिश की बूंद पर उड़ने वाली छतरी की तरह पांचवें दिन ही उखड़कर भाग गए। आख़िर और कितना सहें? ग्राहक नहीं, कार्यक्रम नहीं, प्रचार नहीं… सिर्फ लापरवाही की मोटी परत और बजट की गरमी। खादी की यह प्रदर्शनी कम, और लापरवाही की ‘लाइव प्रदर्शनी’ ज़्यादा थी।यहां खादी नहीं बिकी— प्रबंधन की पोल, भ्रष्टाचार की डोरी और जनता के पैसों का धागा खुलकर बिखर गया। अयोध्या की जनता पूछ रही है “खादी को बदनामी मिली… और नाम कमाने वाले कौन? जवाब वही देगा, जो यह 30 लाख के ‘सन्नाटे’ की महक को सूंघ पाएगा।




















