
सहारनपुर: भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करने वाले पर ही कार्रवाई? — जेई को पकड़वाने वाले मयंक प्रकाश पांडे के निर्माण स्थल पर एसडीए की दबिश ने खड़े किए गंभीर सवाल
✍️ रिपोर्ट : एलिक सिंह
संपादक – समृद्ध भारत समाचार पत्र
वंदे भारत लाइव टीवी न्यूज़
📞 8217554083
भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलना और रिश्वतखोर तंत्र का पर्दाफाश करना एक साहसिक कार्य है, लेकिन सहारनपुर में सामने आया ताज़ा मामला यह भी दिखाता है कि इस साहस की कीमत चुकानी पड़ सकती है। अवर अभियंता (जेई) रवींद्र श्रीवास्तव को एंटी करप्शन टीम से रंगे हाथ पकड़वाने वाले मयंक प्रकाश पांडे के निर्माण स्थल पर सहारनपुर विकास प्राधिकरण (एसडीए) के अधिकारियों का पूरा दलबल लेकर पहुंचना कई सवाल खड़े करता है। क्या यह एक संयोग मात्र है, या फिर भ्रष्टाचार को उजागर करने वाले को दबाव में लाने की कोशिश? कुछ दिन पहले ही सहारनपुर विकास प्राधिकरण के अवर अभियंता रवींद्र श्रीवास्तव को एंटी करप्शन विभाग ने 50 हजार रुपये की रिश्वत लेते हुए रंगे हाथ गिरफ्तार किया था। इस गिरफ्तारी के पीछे पीड़ित मयंक प्रकाश पांडे की शिकायत और सक्रियता थी। मयंक ने साहस दिखाते हुए भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाई और जेई को बेनकाब कर दिया। इस घटना ने एसडीए की कार्यप्रणाली और उसके भीतर फैले भ्रष्टाचार पर सवालिया निशान खड़े कर दिए। लेकिन चंद दिनों बाद ही हालात पलट गए। रविवार को मयंक के वर्धमान कॉलोनी स्थित निर्माण स्थल पर एसडीए के अधिकारी और कर्मचारी दलबल के साथ पहुंचे। यहां उन्होंने कार्रवाई का दबाव बनाया, जिससे मौके पर तनाव का माहौल हो गया। मयंक ने आरोप लगाया कि अधिकारी न सिर्फ उनके निर्माण को ध्वस्त करने पर आमादा हैं, बल्कि उनसे पैसे की भी मांग कर रहे हैं। मयंक प्रकाश पांडे का कहना है कि यह पूरा घटनाक्रम द्वेष भावना से प्रेरित है। “मैंने जेई को रिश्वत लेते रंगे हाथ पकड़वाया, और अब उसी विभाग के लोग मेरे पीछे पड़ गए। क्या यही ईमानदारी की सज़ा है? अगर शहर में अवैध निर्माण पर कार्रवाई करनी है तो पहले उन बड़े रसूखदारों पर कीजिए जिनके मकान और कॉम्प्लेक्स खुलेआम नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं। वहां कोई अफसर दलबल लेकर क्यों नहीं पहुंचता? केवल मुझे टारगेट करना साफ तौर पर प्रतिशोध है,” मयंक ने कहा। उनका आरोप है कि यह सब उन्हें डराने और चुप कराने की साज़िश है, ताकि भविष्य में कोई भी नागरिक भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने की हिम्मत न कर सके। स्थानीय लोगों और नागरिक संगठनों के बीच भी यह मुद्दा गरम है। लोग सवाल कर रहे हैं कि एसडीए की टीम जब वर्धमान कॉलोनी में इतनी सक्रियता दिखा सकती है, तो शहर के अन्य हिस्सों में हो रहे अवैध निर्माणों पर क्यों चुप रहती है? सहारनपुर में चौक-चौराहों, प्रमुख सड़कों और नई कॉलोनियों में अवैध निर्माण खुलेआम जारी हैं, कई जगह बिना नक्शा पास कराए बहुमंज़िला इमारतें खड़ी हो गई हैं, यहां तक कि ग्रीन बेल्ट और सार्वजनिक भूमि पर भी कब्ज़े कर लिए गए हैं, मगर उन पर एसडीए की कोई बड़ी कार्रवाई नहीं होती। रसूखदार बिल्डरों और राजनीतिक संरक्षण प्राप्त लोगों पर कार्रवाई न होने से यह धारणा बन गई है कि एसडीए केवल चुनिंदा लोगों को टारगेट करता है। यही वजह है कि मयंक के मामले को लोग व्यक्तिगत द्वेष से जोड़कर देख रहे हैं। कई लोग इसे तंत्र की दबाव बनाने की रणनीति मान रहे हैं। उनका कहना है कि जब आम आदमी भ्रष्टाचारियों को पकड़वाता है तो पूरा सिस्टम उसके खिलाफ खड़ा हो जाता है। यही वजह है कि अधिकांश लोग रिश्वतखोरी का विरोध करने से डरते हैं। भारत में व्हिसलब्लोअर प्रोटेक्शन एक्ट तो है, लेकिन इसकी प्रभावशीलता पर हमेशा सवाल उठते रहे हैं। सहारनपुर का यह मामला इसका जीता-जागता उदाहरण है। मयंक ने भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाई, लेकिन कुछ ही दिनों में खुद टारगेट बन गए। प्रशासनिक तंत्र में बैठे प्रभावशाली अधिकारी अक्सर अपनी पकड़ और नेटवर्क का इस्तेमाल करके शिकायतकर्ताओं पर दबाव बनाने लगते हैं। यह स्थिति लोकतंत्र और पारदर्शिता के लिए बेहद खतरनाक है। अगर भ्रष्टाचार का विरोध करने वाले लोग ही असुरक्षित महसूस करेंगे, तो ईमानदारी और कानून के शासन का सपना कैसे पूरा होगा? इस मामले ने योगी सरकार और स्थानीय प्रशासन दोनों के लिए परीक्षा की स्थिति पैदा कर दी है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ लगातार भ्रष्टाचार पर सख्ती की बात करते हैं और “जीरो टॉलरेंस” नीति की घोषणा कर चुके हैं। लेकिन जब ज़मीनी स्तर पर भ्रष्टाचार उजागर करने वाले व्यक्ति पर ही दबाव डाला जाने लगे तो यह नीति संदेह के घेरे में आ जाती है। जरूरत है कि उच्चस्तरीय जांच कर यह पता लगाया जाए कि एसडीए अधिकारियों का मयंक के निर्माण स्थल पर जाने का मकसद क्या था। क्या वास्तव में कोई तकनीकी या कानूनी खामी थी, या फिर यह महज़ प्रतिशोध की कार्रवाई थी? यह घटना हम सबके लिए भी चेतावनी है। लोकतंत्र में भ्रष्टाचार से लड़ना केवल सरकार या एजेंसियों का काम नहीं है, बल्कि हर नागरिक की जिम्मेदारी है। लेकिन जब नागरिक साहस दिखाते हैं तो उन्हें सुरक्षा और न्याय मिलना चाहिए, न कि प्रताड़ना। मयंक प्रकाश पांडे का मामला यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हम सच में भ्रष्टाचार मुक्त समाज की ओर बढ़ रहे हैं, या फिर भ्रष्टाचार के खिलाफ उठने वाली आवाज़ों को कुचलने का नया खेल खेला जा रहा है। सहारनपुर का यह प्रकरण केवल एक व्यक्ति का नहीं बल्कि पूरे सिस्टम की तस्वीर है। मयंक प्रकाश पांडे ने जो साहस दिखाया, वह सराहनीय है, लेकिन अब उन्हीं पर कार्रवाई करके यह संदेश दिया जा रहा है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलना आसान नहीं। सवाल साफ है—क्या भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले नागरिकों को सुरक्षा मिलेगी या उन्हें सिस्टम की सज़ा झेलनी होगी? यदि सरकार और प्रशासन सच में ईमानदारी का संदेश देना चाहते हैं तो इस मामले की निष्पक्ष जांच कर दोषियों पर कार्रवाई करनी होगी। वरना यह घटना उन सबके लिए एक चेतावनी बन जाएगी जो भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़े होने का साहस जुटाना चाहते हैं।