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अर्थशास्त्री युद्ध में उलझी दुनिया को लंबे समय तक बनी रहने वाली आर्थिक मंदी की चेतावनी दे रहे हैं। यूरेशिया से मध्य पूर्व पश्चिम एशिया बारूद की गंध रुकने का नाम नहीं ले रही है। सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों के पूर्व शीर्ष अधिकारी अभी भी हिज्बुल्ला, इराक-सीरिया की शिया मिलिशिया, हमास संगठन को लेकर सतर्क हैं। हिजबुल्ला ने कासिम नईम को अपना नया प्रमुख बना दिया है। इस्राइल में लंबे समय तक रह चुके सूत्र का कहना है कि तेल अवीव में शांति नहीं है। उन्हें अंदेशा है कि ईरान नए सिरे से पलटवार करेगा।
भारतीय रणनीतिकारों का अनुमान है कि मध्य पूर्व एशिया में खेल रही महाशक्तियां इस्राइल की नाक में दम करके अमेरिका की हवा निकालने की योजना पर काम कर रही हैं। अनिल शर्मा सामरिक, रणनीतिक मामलों के जानकार हैं। शर्मा का कहना है कि इस्राइल में ईरान के प्रॉक्सी वॉर ने बस दो डर बिठाए हैं। पहला यह कि इस्राइल के सुरक्षा घेरे को भेदने की उनमें क्षमता है। दूसरा, इस्राइल के पास कोई ऐसा स्थान नहीं है, जहां उनके ड्रोन, मिसाइलें या हथियार की पहुंच न हो। शर्मा का कहना है कि प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के आवास को निशाना बनाने का मकसद भी यही था।
अब रह-रहकर होते रहेंगे धमाके, जूझता रहेगा इस्राइल
इस्राइल से बदला लेने के लिए विश्व शिया मिलिशिया करीब-करीब एकजुट है। शिया मिलिशिया का सबसे बड़ा नेता ईरान है। ईरान का सबसे बड़ा और मजबूत प्रॉक्सी हिजबुल्ला है। हिजबुल्ला का नेटवर्क फिलिस्तीन के आतंकी संगठन हमास, यमन के हूती विद्रोही और इराक-शिया मिलिशिया के साथ तालमेल बनाता है। मध्य-पूर्व एशिया मामले से जुड़े सूत्र का कहना है कि यह सारी नेटवर्किंग ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह खामेनेई की देखरेख में और ईरान के रिवोल्यूशनरी गार्ड के पूर्व स्व. मेजर जनरल कासिम सुलेमानी ने खड़ी की थी। 1998 से कुद्स फोर्स के कमांडर जनरल सुलेमानी को 2020 में अमेरिका के विशेष दस्ते ने बगदाद(इराक) में ड्रोन हमले में मार गिराया था।
सुलेमानी के गुप्त आपरेशन से इस्राइल और अमेरिका पहले से ही काफी भयभीत थे। अमेरिका के अफगानिस्तान में ऑपरेशन के बाद वहां लंबे समय से भारतीय हितों की सुरक्षा में काम करने वाले एक अन्य सूत्र का कहना है कि ईरान ने यह डिजाइन अपनी भावी चुनौती को देखकर तैयार की थी। माना जा रहा है कि इस्राइल के घातक, भयानक नुकसान वाले हमले, उसकी तकनीकी दक्षता, खुफिया आपरेशन में महारत आदि के बाद भी प्रॉक्सी वॉर के लड़ाकों में वह डर नहीं बैठ सका है, जिसकी इस्राइल के रणनीतिकार उम्मीद कर रहे थे। वैसे भी अफगानिस्तान में अमेरिका की सैन्य वापसी ने प्रॉक्सी वॉर के योजनाकारों को नया बल दे दिया है। इसलिए संभावना इसकी अधिक है कि प्रॉक्सी वॉर के विभिन्न मॉडल रह-रहकर इस्राइल में धमाका या हमला करता रहेंगे और इस्राइल पूरी ताकत के साथ उसका जवाब देता रहेगा। इसका अर्थ यह भी हुआ कि यह लड़ाई कुछ समय के लिए चलेगी।
5 नवंबर का इंतजार: कौन बनेगा अमेरिका का राष्ट्रपति, मोदी जी को मिले शांति का नोबल
पूर्व विदेश सचिव शशांक कहते हैं कि अभी तो दुनिया में लड़ाई खत्म होने के कोई संकेत नहीं मिल रहे हैं। हां, दुनिया भर की हथियार लॉबी जरूर खुश है। उसका काम चल रहा है। हथियार बिक रहे हैं। पूरी दुनिया 5 नवंबर का इंतजार कर रही है। अमेरिका में 5 नवंबर को राष्ट्रपति पद के लिए मतदान होगा। मुकाबले में पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उप राष्ट्रपति कमला हैरिस हैं। हैरिस के चुनाव जीतने पर राष्ट्रपति जो बाइडेन की ही नीतियां थोड़े बहुत बदलाव के साथ चलेंगी। ट्रंप के प्रभावी होने पर कुछ बदलाव संभव है। यह यूरेशिया और मध्यपूर्व एशिया दोनों में हो सकता है।
ऐसा हो सकता है कि ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति हो तो वह कुछ नीतियों में बदलाव लाएं। यूक्रेन-रूस में युद्ध बंद हो। इसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भूमिका रही है और राष्ट्रपति ट्रंप, राष्ट्रपति पुतिन, राष्ट्रपति जेलेंस्की और प्रधानमंत्री मोदी को शांति की पहल के लिए नोबल पुरस्कार की घोषणा हो। पूर्व विदेश सचिव कहते हैं कि उन्होंने उच्च स्तर पर ऐसी चर्चा को सुना है। फिलहाल यह सब आने वाले समय की बात है। पूर्व विदेश सचिव इससे सहमत हैं कि कमला हैरिस ने राष्ट्रपति के उम्मीदवार की घोषणा होने के बाद पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप के मुकाबले बढ़त बनाई थी, लेकिन इधर उनका ग्राफ कुछ गिरा है। देखिए आगे क्या होता है?
ईरान, इस्राइल दोनों की केमिस्ट्री समझिए और दोनों पर दबाव भी
ईरान ने मध्य पूर्व एशिया में जिस प्रॉक्सी सिस्टम को खड़ा किया है, इस्राइल ने उस पर प्रहार करके काफी कमजोर कर दिया है। ईरान के सामने मजबूरी है कि उसके एक अक्टूबर के जवाबी हमले के बाद इस्राइल की 26 अक्टूबर की प्रतिक्रिया का जवाब दे। ईरान के ऐसा न करने पर शिया मिलिशिया के प्राक्सी उसका साथ छोड़ सकते हैं। दूसरे ईरान के रूस और चीन से सहयोगात्मक संबंध अब छिपे नहीं हैं। पूर्व विदेश सचिव शशांक कहते हैं कि इसलिए ईरान पर प्रक्रिया करने का दबाव है, लेकिन ईरान अपनी कमजोरी और ताकत दोनों भी समझता है। उसे पता है कि अपने आसमान को इस्राइल के हमले से बचाना मुश्किल है। यह रूस या चीन की मदद से ही संभव है। ईरान में तख्ता पलट की बाहरी ताकतों की कोशिश भी सफल नहीं हो पा रही है। इसलिए ईरान बहुत सोच-समझकर प्रतिक्रिया कर सकता है। प्रतिक्रिया में भी उसकी कोशिश एक बार फिर इस्राइल की जमीन पर अपनी मिसाइलों को सफलता पूर्व भेजने की रहेगी। ताकि इस्राइल का उसकी क्षमता को लेकर डर बना रहे।
अब इस्राइल की तरफ आते हैं। इस्राइल कभी नहीं चाहेगा कि अमेरिका उसका साथ छोड़े। अमेरिका के साथ छोड़ते ही इस्राइल पर बड़ा संकट आ जाएगा। इस्राइल को इस बहाने अमेरिका के थॉड जैसी संवेदनशील रक्षा प्रणाली मिलती रहेगी। मध्यपूर्व एशिया में अमेरिका के सैन्य बेड़े उसकी सुरक्षा में तैनात रहेंगे। जबकि अमेरिका की चिंता मध्य पूर्व एशिया और यूरेशिया में परमाणु हमले के खतरे पर टिकी है। ईरान का परमाणु कार्यक्रम भी उसकी चूक से आगे बढ़ा है। अभी परमाणु हमले का खतरा तीन देशों से सबसे ज्यादा है। पहला ईरान, दूसरे नंबर पर नार्थ कोरिया और अंत में रूस। रूस की स्थिति सबसे बाद में आती है। इसलिए अमेरिका सतर्क होकर चल रहा है। पूर्व विदेश सचिव शशांक कहते हैं कि अब इस्राइल को भी पता है कि ईरान और उसके प्रॉक्सी के साथ छिड़ा युद्ध इतनी आसानी बंद नहीं होने वाला है। उसे लंबी लड़ाई के लिए तैयारी करनी है। इस्राइल के रणनीतिकारों का एक भ्रम भी दूर हो गया। उन्हें एहसास हो गया है कि ईरान प्रॉक्सी हथियार उसकी सीमा में कहीं भी घुसकर धमाका कर सकता है। इसलिए ईरान और इस्राइल के बीच में बढ़े तनाव में महाशक्तियों की भूमिका प्रभावी होती जा रही है।