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महाभारत काल से भी पुराना कुरुक्षेत्र का स्थाणु तीर्थ, भगवान ब्रह्मा ने यहां की थी शिवलिंग की स्थापना

मान्यता है कि सूर्य ग्रहण के दौरान सरोवर के पवित्र जल में डुबकी लगाना हजारों अश्वमेघ यज्ञ करने के पुण्य के बराबर माना जाता है..

हरियाणा का कुरुक्षेत्र जिला वही स्थान है जहां पर महाभारत का युद्ध हुआ था, इसलिए यह एक ऐतिहासिक नगर और तीर्थ स्थल भी है. कुरुक्षेत्र को ब्रह्माजी की यज्ञिय वेदी कहा जाता था. समय और घटनाओं के अनुसार इस क्षेत्र का नाम बदलता रहा और अंत में इस जिले का नाम कुरुक्षेत्र पड़ा. कुरुक्षेत्र के बहुत सी ऐसी जगह है जो पूरे विश्व में प्रसिद्ध है उनमें से एक जगह ब्रह्मसरोवर भी है. इस लेख में हम इस स्थान की उन विशेषताओं के बारे में जानने की कोशिश करेंगे जिसके लिए दुनियाभर से लोग यहां खींचे चले आते हैं.
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यू हुआ था ब्रह्म सरोवर का निर्माण
ब्रह्म सरोवर, जैसा कि नाम से पता चलता है, ब्रह्मांड के निर्माता भगवान ब्रह्मा से जुड़ा है. कुरुक्षेत्र को वैसे तो ब्रह्मा जी की यज्ञिय वेदी भी कहा जाता है लेकिन इस क्षेत्र के नाम का आधार कुरु वंश से जुड़ा हुआ है, जी हां कुरुक्षेत्र में स्थित ब्रह्मसरोवर का निर्माण कौरवों और पांडवों के पूर्वज राजा कुरु द्वारा करवाया गया था, कुरुक्षेत्र नाम ‘कुरु के क्षेत्र’ का प्रतीक है.

डुबकी लगाना है हजारों अश्वमेघ यज्ञ के बराबर
कुरुक्षेत्र के इस विश्व प्रसिद्ध सरोवर में स्नान करने के लिए देश ही नहीं बल्कि विदेश से भी लोग आते है. मान्यता है कि सूर्य ग्रहण के दौरान सरोवर के पवित्र जल में डुबकी लगाना हजारों अश्वमेघ यज्ञ करने के पुण्य के बराबर माना जाता है. यहां के स्थानीय लोगों में यह कथा प्रचलित है कि मुगल सम्राट अकबर के दरबारी अबुल-फजल ने सूर्यग्रहण के समय इसकी विशाल जल राशि को देखकर इस सरोवर की विशाल जल राशि को लघु सागर के समान बताया था.

यहां ब्रह्माजी ने की थी शिवलिंग की स्थापना
लौकिक कथाओं के अनुसार, यह कहा जाता है कि युधिष्ठिर ने महाभारत युद्ध में अपनी जीत के प्रतीक के रूप में सरोवर के मध्य स्थित द्वीप में एक मीनार बनवाई थी. उसी द्वीप परिसर में एक प्राचीन द्रौपदी कूप स्थित है. सरोवर के उत्तरी तट पर स्थित भगवान शिव के मंदिर को सर्वेश्वर महादेव कहा जाता है. परंपरा के अनुसार, यहां शिव लिंग की स्थापना स्वयं भगवान ब्रह्मा ने की थी.

धर्मनगरी कुरुक्षेत्र में महाभारत के हजारों साल बाद भी महा युद्ध की कई निशानियां आज भी मौजूद हैं. ज्योतिसर और ब्रह्मसरोवर के आसपास कई प्राचीन मंदिर हैं. इन्हीं में से एक है द्रौपदी कूप. यह प्राचीन मंदिर द्रौपदी की कहानी आज भी बताता है. इसी मंदिर के अंदर एक कुआं है, जिसे द्रौपदी कूप कहते हैं.

बताया जाता है कि द्रौपदी रोजाना इसी कुएं के जल से स्नान करती थी. महाभारत युद्ध में भीम द्वारा दुशासन को मारने के बाद द्रौपदी ने अपने खुले केश दुशासन के खून से रंगे थे और प्रतिज्ञा पूरी की थी. इसके बाद द्रौपदी ने अपने खुले केशों को इसी कूप में आकर धोया था. यही कारण है कि यह स्थान वर्तमान में द्रौपदी कूप के नाम से जाना जाता है

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प्राचीन कुआं भी है
कुरुक्षेत्र में महाभारत काल का प्राचीन कुआं आज भी देखा जा सकता है. माना जाता है कि इसी स्थान पर महाभारत युद्ध में द्रोणाचार्य ने चक्रव्यूह की रचना की थी और कर्ण ने यहीं पर अभिमन्यु को धोखे से मारा था, जिससे वह वीरगति को प्राप्त हुआ था. इसके बाद भीम ने इस कुएं का निर्माण किया, जहां द्रौपदी ने स्नान कर अभिमन्यु की मृत्यु का बदला लेने की शपथ अर्जुन को दिलाई थी.

सर्वेश्वर महादेव मंदिर, जिसे आमतौर पर ब्रह्मा सरोवर मंदिर के नाम से जाना जाता है, भगवान शिव को समर्पित है। पौराणिक कथाओं का कहना है कि इस मंदिर में भगवान ब्रह्मा भगवान शिव की पूजा करते थे। महाभारत के युद्ध के दौरान, मंदिर दिन के समय युद्ध से नष्ट हो जाता था और रात के समय, प्रतिदिन इसका पुनर्निर्माण किया जाता था। मुगल सम्राटों ने अपने वर्चस्व के दौरान इसे बर्बाद कर दिया और बाद में, हरि गिरि गोसाई जी ने १८ वीं शताब्दी में इसका जीर्णोद्धार किया। अधिकांश मंदिर का निर्माण कुछ हिस्सों में संगमरमर के साथ बफ़ बलुआ पत्थर से किया गया है। परिसर से मंदिर के तीन प्रवेश द्वार हैं जिनमें प्रत्येक दरवाजे पर नक्काशीदार पुष्प डिजाइन हैं। भक्त इस मंदिर में भगवान हनुमान और भगवान गरुड़ की पूजा भी करते हैं। यह ब्रह्मा सरोवर के जल पर स्थित एक अविश्वसनीय रूप से सुंदर मंदिर है। एक कंक्रीट का मेहराबदार पुल मंदिर को किनारे से जोड़ता है। सूर्यास्त के दौरान मंदिर को कृष्ण घाट से सबसे अच्छा देखा जाता है। डूबते सूरज का लाल सुनहरा रंग तालाब में प्रतिबिंबित होता है जिससे पानी में मंदिर की छवि संत जैसी दिखती है। यहां शाम की आरती के लिए कई लोग इकट्ठा होते हैं। मंदिर के चारों ओर घूमना और मंत्रों के मंत्रों को सुनना किसी की आत्मा को ठीक करने के लिए जाना जाता है। यह मंदिर ब्रह्मा सरोवर में आगंतुकों का पसंदीदा फोटो स्थल भी है।

ब्रह्म सरोवर का इतिहास” कई युगों पुराना है जिसका संबंध अलग घटनायों से रहा है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार ब्रह्म सरोवर ब्रह्मा को समर्पित है जिन्होंने कुरुक्षेत्र की भूमि में विशाल यज्ञ करने के बाद ब्रह्मांड का निर्माण किया था। प्राचीन काल में ब्रह्म सरोवर को रामहार्ड और सामंत पंचाका के रूप में जाना जाता था और इसे परशुराम के साथ जोड़ा जाता था जो भगवान विष्णु के अवतार थे। ब्रह्म सरोवर का उल्लेख ग्यारहवीं शताब्दी ईस्वी के अल बरुनी के संस्मरणों में भी किया गया है।

यह भी माना जाता है कि दुर्योधन ने महाभारत के युद्ध के अंतिम दिन में खुद को पानी के नीचे छिपाने के लिए इसी झील का इस्तेमाल किया था और युधिष्ठिर ने, महाभारत के युद्ध में अपनी जीत के प्रतीक के रूप में सरोवर के बीच में एक टॉवर भी बनबाया था। इनके अलावा सरोवर के उत्तरी तट पर भगवान शिव का मंदिर भी है, जिसके बारे में कहा जाता है कि इसे स्वयं भगवान ब्रह्मा ने स्थापित किया था।

ब्रह्म सरोवर की मान्यतायें –
ब्रह्म सरोवर भारत की सबसे पवित्र नदियों और सरोवर में से एक है, जो विशेषकर हिन्दूओं के बीच काफी महत्वपूर्ण स्थान रखता है। मान्यतायों की माने तो सूर्यग्रहण के दौरान सरोवर के पवित्र जल में डुबकी लगाना हजारों अश्वमेध यज्ञों को करने के गुण के बराबर माना जाता है। इसीलिए आम दिनों के साथ साथ सूर्यग्रहण और चन्द्रग्रहण के दौरान हजारों की संख्या में श्रद्धालु डुबकी लगाने के लिए इस पवित्र ब्रह्म सरोवर की यात्रा करते है।

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गीता जयंती पर होता खास वार्षिक समारोह
कुरुक्षेत्र के ब्रह्मसरोवर के तट पर हर साल नवंबर के अंतिम सप्ताह और दिसंबर की शुरुआत में गीता जयंती समारोह के दौरान कई श्रद्धालु इस तालाब की परिक्रमा स्नान करते हैं. इस वार्षिक उत्सव के दौरान पानी में तैरते दीपों का गहरा दान समारोह होता है और आरती की जाती है यह वही समय भी होता है जब दूर-दूर से प्रवासी पक्षी सरोवर में आते हैं. सिर्फ गीता जयंती को ही नहीं बल्कि प्रत्येक सूर्य ग्रहण के अवसर पर यहां विशाल मेले का आयोजन किया जाता है.नवंबर और दिसंबर में आयोजित होने वाला “गीता जयंती समारोह” ब्रह्म सरोवर में मनाया जाने वाला सबसे प्रसिद्ध उत्सव है जिसे बहुत ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। बता दे इस उत्सव के दौरान लोगो द्वारा ब्रह्म सरोवर के पवित्र जल में दीप दान किये जाते है औए एक भव्य आरती की जाती है। गीता जयंती समारोह लगभग एक सप्ताह तक चलता है जिसमे नाटक, नृत्य प्रदर्शन, सामाजिक अभियान, प्रदर्शनियां, पवित्र समारोह और प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है। इसके अलावा, कुछ प्रतिभाशाली कारीगर देश भर से ब्रह्म सरोवर की यात्रा करते हैं और सरोवर के चारों ओर अपने स्टॉल लगाते हैं।

वैसे तो बर्ष के किसी भी समय ब्रम्ह सरोवर की यात्रा की जा सकती है लेकिन यदि हम सबसे अच्छे समय की बात करें तो ब्रह्म सरोवर की यात्रा का आदर्श समय नवंबर और दिसंबर के दौरान होता है जब यहाँ गीता जयंती मनाई जाती है। यह सामरोह यहाँ बड़े ही धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है जिस दौरान बड़ी संख्या में पर्यटक शामिल होते है। इन महीनो का मौसम भी सुहावना होता है, जो कुरुक्षेत्र के अन्य प्रसिद्ध पर्यटक स्थल घूमने जाने के लिए भी परफेक्ट होता है।

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Vishal Leel

Sr Media person & Digital Creator
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