।।बदलाव हाइवे ढाबों में जितना आया है, उतना शायद किसी और चीज में नहीं आया होगा बीते 30-35 सालों में। आज हाइवे पर कोई ढाबा बचा नहीं।।

अब सब ढाबे के नाम पर आलीशान रेस्टोरेंट हैं। सबका खाना बनाने का तरीका एक फैक्ट्री नुमा है। सैकड़ों कर्मचारी, दासियों कुक, अकाउंट्स, मैनेजर और भी न जाने क्या क्या। मेनू कार्ड में सैकड़ों आइटम, एक ही आइटम के कई कई नाम। पनीर आइटम ही 20 हैं। दाल के नाम पर 10 दाल… रोटियां 20 किस्म की… आपस में कोई फर्क नहीं किसी आइटम में। प्याज ज्यादा तो पनीर दो प्याजा, लाल ग्रेवी तो शाही पनीर, कम ग्रेवी तो कढ़ाई पनीर। दाल तड़का, दाल हांडी, दाल फ्राई… कोई माई का लाल फर्क बता दे इनमें। 

सभी आइटम बेस्वाद, सभी आइटम बासी (गारंटी दे रहा हूं) सिर्फ हाफ कुक आइटम बनाकर रखी हैं। जिन्हें फैक्ट्री में एसेंबल किया जाता है। हम ऑलमोस्ट पैकेट वाली रेडी टू कुक आइटम जैसे खा रहे हैं इन रेस्टोरेंट में। 5 तरह की ग्रेवी तैयार है। ऑर्डर आया और आइटम एसेंबल कर दी। आप कुछ भी मंगवा लो, सभी का स्वाद टेक्सचर एक जैसा होता है। 

कीमत भी आजकल किसी स्टार क्लास होटल से कम नहीं। अमरीक सुखदेव जैसे ढाबे पर दाल मखनी 350 की है। रोटी 30, गार्लिक नान ले लिया तो 100 का है। जैसे न जाने क्या लग गया इसमें रोटी के मुकाबले। न स्वाद न क्वालिटी न क्वांटिटी। बस आप हाइवे पर हैं, और आजकल ट्रेंड है की बाहर निकलो तो खाना किसी बड़े ढाबे “रेस्टोरेंट” पर खाना है। 

वो चार आइटम वाले ढाबे, जिनपर दाल फ्राई, पालक पनीर, सरसों का साग, कड़ी पकोड़ा मिलता था और रोटी गर्म गर्म तंदूर से सिक कर आती थी। प्याज हरि मिर्च और ठंडा ताजा जग भर पानी। आज 70 की पानी बोतल जबरन लेनी पड़ती है… क्योंकि 20 वाली बोतल नहीं रखते। सिरके वाला बासा प्याज लो या ऑनियन सलाद अलग से 100 का लो। 

वो गमछा लगाकर एक सांस में 10 सब्जी बोलने वाले की जगह टाई पहने कैप्टन ने ले ली है। 4 लोगों के ढाबे के बिल में पूरा महीना एक गरीब पूरा महीना खाना खा ले। 

शहरों में अभी भी अच्छे ढाबे मिल जाएंगे। बस आग लगी है हाइवे पर… बेस्वाद, बासी, महंगा और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं ये भोजन। मै जो हमेशा ट्रेवल करता हूं, बहुत परेशान हूं इस व्यवस्था से।

Back to top button
error: Content is protected !!