मेरी कलम (रघुवीर सिंह पंवार ) हमारी पीढ़ी ने बीते कुछ दशकों में बदलाव की जो रफ्तार देखी है, वो शायद पहले किसी ने नहीं देखी थी और शायद आगे भी न देख पाए। हम वो आखिरी पीढ़ी हैं, जिसने बैलगाड़ी से लेकर बुलेट ट्रेन तक, साधारण ख़त से लेकर वीडियो चैटिंग तक का सफर देखा है।
हमारे बचपन में तकनीक का इतना हस्तक्षेप नहीं था। स्कूल जाने से पहले सिर पर सरसों का तेल लगाकर, साधारण कपड़ों में, हंसी-खुशी अपने दोस्तों के साथ खेलते हुए हम बड़े हुए हैं। बिजली का आना एक उत्सव जैसा होता था और लालटेन की रोशनी में पढ़ाई करना हमारा रोजमर्रा था। हम वही लोग हैं जिन्होंने चिमनी की धीमी रोशनी में अपने सपने बुनें और गर्मियों की रातों में छत पर लेटे-लेटे तारों की छांव में कहानियाँ सुनीं।
आज का युवा शायद इन सब बातों को किताबों में पढ़ता होगा, लेकिन वो हमारी पीढ़ी थी जिसने इन लम्हों को अपनी जिंदगी में जिया है। हमने खतों में अपने भावनाएं पिरोईं और उन्हें भेजने के बाद हफ्तों तक जवाब का इंतजार किया। इस इंतजार में भी एक अलग सी खुशी थी। आज जब एक ही क्लिक में संदेश भेजा जा सकता है, वो एहसास कहीं खो गया है।
बचपन में हमने विविध भारती, आल इंडिया रेडियो और बिनाका गीत माला जैसे कार्यक्रमों का आनंद लिया। रेडियो पर गानों का इंतजार, हर रविवार को नए गीत सुनने की उत्सुकता, और रात को हवा महल जैसे कार्यक्रमों की कहानियाँ सुनना हमारे बचपन का हिस्सा था। आज शायद ये बातें पुराने ज़माने की बातें लगें, पर हमारे लिए ये अनमोल यादें हैं।
हम वो आखिरी लोग हैं जिन्होंने जीवन की सादगी में खुशी खोजी। उस दौर में न तो इतनी तकनीक थी और न ही इतनी व्यस्तता। मोहल्ले के बुजुर्गों के प्रति हमारे दिल में एक अजीब सा आदर और डर था, और इस डर में ही हमने बड़ों की इज्जत सीखी। हम उस पीढ़ी के लोग हैं, जिन्होंने मिट्टी के घरों में परियों और राजाओं की कहानियाँ सुनीं और असल जिंदगी में कुछ पलों के लिए ही सही, खुद को भी राजकुमार मान लिया।
अब दुनिया डिजिटल हो गई है। पुराने वे रेडियो स्टेशन, खतों का इंतजार, वो सफर कहीं पीछे छूट चुके हैं। आज की पीढ़ी इंटरनेट और सोशल मीडिया की मदद से पूरी दुनिया से जुड़ी हुई है, और इसके अपने फायदे हैं। लेकिन हम, जो उस पुराने दौर के आखिरी गवाह हैं, जानते हैं कि सादगी में जो आनंद था, वो कहीं और नहीं मिल सकता।
हमारी यादों में वो पुराना दौर हमेशा जीवित रहेगा, और हम गर्व से कह सकते हैं कि हमने वो अनमोल दिन जिए हैं, जिनकी सिर्फ झलकें ही अब बाकी रह गई हैं।