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केजरीवाल AAP के मुखिया हैं और पूरी पार्टी उन्हें इस रूप में स्वीकारती आई है, लेकिन अब इस दृष्टिकोण में बदलाव देखने को मिल सकता है।

चुनौतियां उदाहरण मिले हैं। अगर यही परंपरा दिल्ली में चली तो AAP और भी ज्यादा कमजोर हो जाएगी।

लीडरशिप क्राइसिस का सामना करना

केजरीवाल AAP के मुखिया हैं और पूरी पार्टी उन्हें इस रूप में स्वीकारती आई है, लेकिन अब इस दृष्टिकोण में बदलाव देखने को मिल सकता है।

केजरीवाल अपनी सीट बचाने में नाकाम रहे हैं, जबकि आतिशी जीत गई हैं। ऐसे में बड़ा कौन? जैसी प्रतियोगिता पार्टी में शुरू हो सकती है।

 

कानूनी लड़ाई लड़ना

केजरीवाल अब न तो दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं और न ही उनकी सरकार है। ऐसे में अब उन्हें तमाम तरह की कानूनी चुनौतियों का भी सामना करना होगा। उन्हें कोर्ट और ED के चक्कर लगाने होंगे। दिल्ली के कथित शराब नीति घोटाले में वह जमानत पर बाहर हैं।

 

अस्तित्व की चुनौती

केजरीवाल के सामने अब पार्टी का अस्तित्व बचाए रखने की भी चुनौती होगी।

 

AAP दिल्ली के अलावा केवल पंजाब की सत्ता में है। दिल्ली में हार के बाद पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर ले जाने के केजरीवाल के अभियान पर असर पड़ना लाजमी है। विपक्षी दलों के बीच अपने कद को बरकरार रखना भी उनके लिए मुश्किल हो जाएगा।

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