
रियो डी जेनेरियो में 6-7 जुलाई को संपन्न हुआ 17वां ब्रिक्स शिखर सम्मेलन केवल एक वार्षिक राजनयिक सभा से कहीं बढ़कर था। यह वैश्विक पटल पर शक्ति संतुलन में आ रहे एक महत्वपूर्ण बदलाव का स्पष्ट संकेत है, जहाँ भारत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एक मुखर और निर्णायक भूमिका निभाते हुए उभर रहा है। यह सम्मेलन इस तथ्य का जीवंत प्रमाण है कि भारत अब केवल एक उभरती हुई अर्थव्यवस्था नहीं, बल्कि एक ऐसी शक्ति है जो वैश्विक विमर्श की दिशा और दशा तय करने की क्षमता रखती है, विशेषकर ‘ग्लोबल साउथ’ के लिए।
यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि इस विश्वस्तरीय शिखर सम्मेलन का केंद्र बिंदु भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा वैश्विक शासन की मौजूदा संरचनाओं में आमूलचूल परिवर्तन की मांग थी। उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद बनी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, विश्व बैंक और विश्व व्यापार संगठन जैसी संस्थाएं 21वीं सदी की भू-राजनीतिक वास्तविकताओं का प्रतिनिधित्व नहीं करतीं। यह केवल सुधार की मांग नहीं, बल्कि उस जड़ता पर प्रहार है जो वैश्विक निर्णयों को कुछ शक्तिशाली देशों तक सीमित रखती है। एक बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था, जहाँ शक्ति के अनेक केंद्र हों, तभी सार्थक हो सकती है जब इन संस्थाओं का लोकतंत्रीकरण हो। सुरक्षा परिषद में सुधार पर भारत का अडिग रहना यह दर्शाता है कि अब यथास्थिति को स्वीकार करने का समय समाप्त हो चुका है।
आतंकवाद के मुद्दे पर भारत ने यशस्वी प्रधानमंत्री मोदी के प्रभावी उद्बोधन द्वारा अपने दृढ़ और सैद्धांतिक रुख को एक बार फिर पूरे विश्व के समक्ष रखा। कश्मीर के पहलगाम में हुए नृशंस आतंकी हमले को मानवता पर हमला करार देते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने आतंकवाद के समर्थकों, संरक्षकों और वित्तपोषकों को कठोरतम तरीके से जवाबदेह ठहराने का आह्वान किया। हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अटूट लीडरशिप प्रभावी क्षमता और वर्चस्व का इसी से जग जाहिर है कि ब्रिक्स के सभी सदस्य देशों ने हाल ही में भारत में हुए आतंकवादी हमले की पुरजोर निंदा की। यह घटना आतंकवाद पर दोहरे मापदंडों को अस्वीकार करने और इसे एक साझा वैश्विक खतरे के रूप में स्वीकार करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक जीत है।भविष्य की चुनौतियों और अवसरों को देखते हुए, प्रधानमंत्री मोदी ने ब्रिक्स समूह को और अधिक प्रासंगिक बनाने के लिए एक व्यावहारिक चार-सूत्रीय रोडमैप प्रस्तुत किया। पहला, न्यू डेवलपमेंट बैंक को मांग-आधारित और टिकाऊ परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित करना होगा, जो सदस्य देशों की वास्तविक जरूरतों को पूरा करे। दूसरा, एक साझा विज्ञान और अनुसंधान भंडार की स्थापना, जो ‘ग्लोबल साउथ’ के देशों को तकनीकी रूप से सशक्त बनाएगी। तीसरा, महत्वपूर्ण खनिजों की आपूर्ति श्रृंखला को लचीला और सुरक्षित बनाना, जो भविष्य की अर्थव्यवस्था और ऊर्जा सुरक्षा के लिए नितांत आवश्यक है। और चौथा, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी परिवर्तनकारी तकनीक के लिए एक जिम्मेदार शासन ढांचा तैयार करना, ताकि नवाचार के साथ-साथ नैतिक मूल्यों की भी रक्षा हो सके।यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि रियो डी जेनेरियो में भारत का प्रदर्शन केवल एक देश की कूटनीतिक सफलता का अध्याय नहीं है, बल्कि यह उस न्यायसंगत और समतामूलक विश्व व्यवस्था की आशा का प्रतिबिंब है जिसकी आकांक्षा दुनिया के करोड़ों लोग कर रहे हैं। भारत ने यह सिद्ध कर दिया है कि वह केवल अपनी बातें रखने वाला देश नहीं, बल्कि समाधान प्रस्तुत करने वाला एक अग्रणी राष्ट्र है। शिखर सम्मेलन के अंत में अपनाई गई ‘रियो डी जेनेरियो घोषणा’ इसी सामूहिक संकल्प और एक नई दिशा की ओर बढ़ते कदमों का आधिकारिक दस्तावेज है, जिसे आकार देने में भारत ने अपनी केंद्रीय भूमिका निभाई है।
(लेखक डॉ. नयन प्रकाश गांधी कोटा शिक्षा नगरी राजस्थान के अंतराष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान मुंबई के एलुमनाई रहे है एवं भारत के प्रतिष्ठित युवा प्रबंधन विश्लेषक, लेखक ,स्तंभकार,सामाजिक विचारक,पब्लिक पॉलिसी ,कम्युनिटी डेवलेपमेंट एक्सपर्ट है ।यह उनके अपने विचार रखें।