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कार्तिक पूर्णिमा दीपदान और महत्व

दिपावली की तरह ही कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि पर भी दीप प्रज्वलित करके त्योहार मनाया जाता है। इस दिन देव दिवाली के नाम से भी जानते है। कार्तिक पूर्णिमा सबसे पवित्र तिथि माना जाता है। कार्तिक मास की पूर्णिमा दैवीय कृपा पाने और ऊर्जा से परिपूर्ण होती है। इस दिन किये गए स्नान और दान पुण्य का बहुत महत्व होता है। दिपावली की तरह ही इस दिन भी पूरे देशभर मे दिपक प्रज्वलित करके दिवाली मनाता है। इस बार कार्तिक पूर्णिमा तिथि 15 नवंबर शुक्रवार 2024 को मनाई जायेगी। पूर्णिमा तिथि के स्वामी चंद्रदेव है। इस दिन जल और वातावरण मे विशेष ऊर्जा आ जाती है। अतः इस दिन नदी या किसी सरोवर मे स्नान करना उत्तम होता है। कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि 15 नवंबर शुक्रवार 2024को सुबह के 06:20 मिनट पर प्रारंभ होकर 15 नवंबर को ही मध्य रात्रि मे 02:59 मिनट तक रहेगी। इस अनुसार कार्तिक पूर्णिमा का पर्व व्रत 15 नवंबर को मनाया जायेगा। कार्तिक पूर्णिमा के दिन सुबह ब्रम्ह मुहूर्त मे किसी पवित्र नदी या सरोवर मे संभव न हो तो फिर घर पर ही गंगाजल मिलाकर स्नान करना चाहिए। इसके बाद सूर्यदेव को जल अर्पित करना चाहिए। व्रत का संकल्प लेना चाहिए। संध्याकाल मे घर के मुख्य द्वार पर, तुलसी के पौधे के पास दिपक प्रज्वलित करना चाहिए। इस दिन दीपदान का विशेष महत्व होता है। इस दिन चंद्र दर्शन के बाद घर मे भगवान विष्णु जी प्रतिमा के सामने दीप प्रज्वलित कर उनके चरणों मे पीले पुष्प अर्पित करना चाहिए। तुलसी की पूजा भी की जाती है। विष्णु सहस्रनाम अथवा विष्णु जी के मंत्रों का जाप करना चाहिए। शिवलिंग का गंगाजल और दूध से अभिषेक कर बेलपत्र धतूरा सफेद पुष्प अर्पित कर शिवजी के मंत्रों का जाप करना चाहिए। कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन दान का अपना विशेष महत्व होता है। इस जरूरतमंदों को अन्न वस्त्र कंबल आदि का देना चाहिए। कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरी या त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नाम के राक्षस का वध किया था। जिससे राक्षस के अंत की खुशी मे देवताओ ने संपूर्ण स्वर्गलोक को दीपों से प्रकाशित किया था। जिससे इसे देव दिवाली का रूप दिया गया। इस दिन माता लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने के लिए चंद्रमा को अर्ध्य दिया जाता है। इस दिन पीपल वृक्ष की पूजा अर्चना भी की जाती है।

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