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“वन स्टेट वन इलेक्शन”असैवधानिक, कांग्रेस

कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गोविंद टोडासरा ने कहा चुनाव टालना असैवधानिक हम सुप्रीम कोर्ट जायेंगे।सरपंच संघ ने किया कांग्रेस की इस बात का स्वागत।

टीटी

‘वन स्टेट वन इलेक्शन’ के लिए 49 स्थानीय निकायों में प्रशासक लगाने के बाद अब सरकार जनवरी में होने वाले 6 हजार 857 ग्राम पंचायत के चुनाव भी टालने के मूड में है। यहां भी प्रशासन लगाने की तैयारी है। उधर, एक साथ चुनाव करवाने का फॉर्मूला कानूनी अड़चनों में उलझता दिख रहा है।

हाल ही में पंजाब में चुनाव टालने पर सुप्रीम कोर्ट फटकार लगा चुका है। दूसरी तरफ कांग्रेस ने भी कोर्ट में चुनौती देने की तैयारी कर ली है। कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गोविंद डोटासरा ने कहा है कि चुनाव टालना संविधान विरोधी कदम है, हम चुप नहीं बैठेंगे, सुप्रीम कोर्ट तक जाएंगे। सरपंच संघ ने भी विरोध जताना शुरू कर दिया है।

कानूनी जानकारों का कहना है कि 73वें और 74वें संविधान संशोधन के बाद शहरी निकायों और पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव 5 साल में करवाया जाना अनिवार्य है। आपात स्थिति को छोड़कर चुनाव टालने का कोई प्रावधान नहीं है।

हालांकि पंचायतीराज विभाग और शहरी विकास व स्थानीय निकाय विभाग अपने स्तर पर कानूनी पहलुओं पर विचार कर रहा है। अगर कोर्ट में चुनौती दी तो क्या ‘वन स्टेट वन इलेक्शन’ अटक जाएगा? संविधान में हुए संशोधन क्या कहते हैं? राज्य सरकार के पास क्या-क्या शक्तियां हैं?

 

कुछ ऐसे ही सवालों के जवाब…

कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष बोले- चुनाव टालना संविधान विरोधी कदम

कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा  बात करते हुए कहा कि ‘वन स्टेट वन इलेक्शन’ के नाम पर सरकार पंचायती राज संस्थाओं और शहरी निकायों पर कब्जा करना चाहती है। हम प्रशासक लगाने के खिलाफ हैं। चुनाव टालना संविधान विरोधी कदम है, कांग्रेस चुप नहीं बैठेगी, हम सुप्रीम कोर्ट तक जाएंगे। हम हर मोर्चे पर कानूनी लड़ाई लड़ेंगे, सरकार को काबिज नहीं होने देंगे। राज्य निर्वाचन आयोग पंगु बना हुआ है, उसे चुनाव करवाने चाहिए, सरकार बिना कारण ही प्रशासक लगाकर चुनाव टाल रही है। पहले 49 निकायों में प्रशासक लगाए, अब पंचायतों की बारी है।

कानूनी जानकार बोले- 5 साल में चुनाव करवाने का संविधान का प्रावधान बड़ी चुनौती

पंचायती राज संस्थाओं और शहरी निकायों में एक साथ चुनाव करवाने में पहली बाधा संवैधानिक प्रावधान है। 73वें संविधान संशोधन में ही यह प्रावधान है कि पंचायती राज संस्थाओं के 5 साल में चुनाव कराने होंगे, विशेष परिस्थितियों के अलावा चुनाव टालने का प्रावधान नहीं है। संविधान के प्रावधान को राज्य सरकार बदल नहीं सकती, प्रशासक भी 6 महीने से ज्यादा नहीं लगा सकते, उसके लिए भी पुख्ता कारण चाहिए।

पंचायती राज अधिनियम 1994 की धारा 17 के अनुसार किसी भी पंचायती राज संस्था का कार्यकाल 5 साल होता है। 5 साल से पहले चुनाव कराना जरूरी होता है। पंचायती राज संस्था को बीच में भंग करने पर भी 6 महीने के भीतर चुनाव जरूरी हैं। जहां कार्यकाल छह महीने से कम है वहां चुनाव कराने जरूरी नहीं हैं।

सरकार के पास प्रशासक लगाने का अधिकार, लेकिन उसकी प्रक्रिया लंबी और जटिल

सरकार के पास पंचायती राज संस्थाओं को भंग करके प्रशासक लगाने का अधिकार है, लेकिन उसे कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। पंचायती राज अधिनियम 1994 की धारा 94 में पंचायती राज संस्थाओं को विघटित करने का अधिकार है। इसके मुताबिक राज्य सरकार को यह विश्वास हो

कानूनी जानकार बोले- 5 साल में चुनाव करवाने का संविधान का प्रावधान बड़ी चुनौती

पंचायती राज संस्थाओं और शहरी निकायों में एक साथ चुनाव करवाने में पहली बाधा संवैधानिक प्रावधान है। 73वें संविधान संशोधन में ही यह प्रावधान है कि पंचायती राज संस्थाओं के 5 साल में चुनाव कराने होंगे, विशेष परिस्थितियों के अलावा चुनाव टालने का प्रावधान नहीं है। संविधान के प्रावधान को राज्य सरकार बदल नहीं सकती, प्रशासक भी 6 महीने से ज्यादा नहीं लगा सकते, उसके लिए भी पुख्ता कारण चाहिए।

पंचायती राज अधिनियम 1994 की धारा 17 के अनुसार किसी भी पंचायती राज संस्था का कार्यकाल 5 साल होता है। 5 साल से पहले चुनाव कराना जरूरी होता है। पंचायती राज संस्था को बीच में भंग करने पर भी 6 महीने के भीतर चुनाव जरूरी हैं। जहां कार्यकाल छह महीने से कम है वहां चुनाव कराने जरूरी नहीं हैं।

सरकार के पास प्रशासक लगाने का अधिकार, लेकिन उसकी प्रक्रिया लंबी और जटिल

सरकार के पास पंचायती राज संस्थाओं को भंग करके प्रशासक लगाने का अधिकार है, लेकिन उसे कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। पंचायती राज अधिनियम 1994 की धारा 94 में पंचायती राज संस्थाओं को विघटित करने का अधिकार है। इसके मुताबिक राज्य सरकार को यह विश्वास हो जाता

है कि कोई पंचायती राज संस्था नियमों का पालन नहीं कर रही है और वह सुचारू रूप से चल नहीं पा रही है तो सरकार उसे विघटित कर सकती है। लेकिन इसके लिए पहले नोटिस जारी करके संस्था से उसका जवाब मांगना होगा। सुनवाई का अवसर देना होगा। नोटिस के जवाब और सुनवाई के बाद ही उसे भंग किया जा सकता है। सुनवाई का मौका दिए बिना भंग नहीं किया जा सकता।

किसी पंचायती राज संस्था के दो तिहाई मेंबर इस्तीफा दे देते हैं या बर्खास्तगी सहित किसी अन्य कारणों से पदों से हट जाते हैं तो भी संस्था में प्रशासक लगाया जा सकता है।

कानूनी जानकारों ने कहा- अभी ऐसी कोई आपात स्थिति नहीं है

निकाय और पंचायत राज चुनाव टालने को अगर कोर्ट में चुनौती दी जाती है तो ‘वन स्टेट वन इलेक्शन’ मुश्किल में पड़ सकता है। कानूनी जानकारों का कहना है कि अभी ऐसी कोई आपात स्थिति नहीं है। सरकार वार्डों के परिसीमन के अलावा चुनाव टालने के लिए दूसरी कोई आपात स्थिति बता भी नहीं सकती। कांग्रेस राज के दौरान कोरोना के समय महामारी का हवाला देकर चुनाव कुछ समय के लिए टाले गए थे, लेकिन सरकार के सामने अब आपात स्थिति नहीं है। ऐसे में अगर कोर्ट में चुनौती दी गई तो कानूनी तौर पर सरकार के तर्कों का ठहर पाना मुश्किल होगा।

पूर्व एएजी बोले- सरकार छह महीने से ज्यादा प्रशासक नहीं लगा सकती

पूर्व एएजी सत्येंद्र राघव के मुताबिक, निकायों और पंचायती राज संस्थाओं के बारे में संविधान में साफ प्रावधान किया गया है कि आपात स्थिति को छोड़कर उनके चुनाव किसी भी स्थिति में नहीं टाले जा सकते। सरकार ने प्रशासक भले लगा दिए, लेकिन सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट कई बार ऐसे निर्णयों को गलत साबित कर चुका है।

प्रशासक लगाने को भी कोर्ट में चुनौती दी गई तो सरकार के तर्क टिक नहीं पाएंगे। दूसरी तरफ वन स्टेट वन इलेक्शन करवाना इसलिए भी आसान नहीं है क्योंकि अगर सरकार वार्ड परिसीमन के आधार पर कुछ समय लेकर कुछ संस्थाओं के चुनाव करवाती है तो भी जिनका कार्यकाल एक से डेढ़ साल बचा हुआ है उन्हें समय से पहले भंग नहीं किया जा सकेगा।

जिन निकायों में और पंचायती राज संस्थाओं में प्रशासक लगाएंगे उन्हें भी कोर्ट में चुनौती देने पर सरकार को राहत नहीं मिलने वाली है। ज्यादा से ज्यादा वार्ड परिसीमन के लिए सरकार 2 से 4 महीने का समय ले सकती है लेकिन उसके बाद तो चुनाव करवाने ही होंगे।

सुप्रीम कोर्ट पंजाब सरकार को तो हाईकोर्ट गुजरात सरकार को दे चुका चुनाव करवाने के आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही पंजाब सरकार को पंचायती राज संस्थाओं और स्थानीय निकायों के चुनाव करवाने के आदेश दिए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने लंबे समय तक चुनाव को टालने पर नाराजगी भी जताई थी। सरकार को बिना किसी बहानेबाजी के तत्काल चुनाव करवाने का आदेश दिया था।

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का असर राजस्थान पर भी पड़ना तय माना जा रहा है क्योंकि अगर इसे चुनौती दी गई तो पंजाब की तरह राजस्थान सरकार को भी वही जवाब मिल सकता है।

स्थानीय निकायों के चुनाव टालने के मामले में गुजरात हाई कोर्ट भी आदेश दे चुका है। गुजरात हाई कोर्ट ने भी निकाय चुनाव को आगे खिसकने को गलत बताते हुए सरकार को चुनाव करवाने के आदेश दिए थे

11 हजार से ज्यादा पंचायतों और 213 शहरी निकायों के एक साथ चुनाव बड़ी चुनौती ?

राज्य में 213 शहरी निकाय हैं। इनके एक साथ चुनाव करवाने हैं। इनमें 11 नगर निगम, 33 नगर परिषद और 169 नगरपालिकाएं हैं। पंचायतीराज संस्थाओं में 11 हजार 341 ग्राम पंचायतों, 352 पंचायत समितियों और 33 जिला परिषदों के चुनाव एक साथ करवाने हैं।

2025 में जनवरी से लेकर अक्टूबर तक 11 हजार पंचायतों के चुनाव बाकी

अगले साल 2025 में जनवरी में 6975 ग्राम पंचायतों, मार्च में 704 ग्राम पंचायतों और अक्टूबर में 3847 ग्राम पंचायतों का पांच साल का कार्यकाल पूरा हो रहा है। इन सबके एक साथ चुनाव करवाने के लिए आधी पंचायतों के चुनाव आगे पीछे करने होंगे। दिसंबर 2025 में 21 जिला परिषदों, सितंबर-अक्टूबर 2026 में 8 जिला परिषदों और दिसंबर 2026 में 4 जिला परिषदों का कार्यकाल पूरा हो रहा है।

इसी तरह दिसंबर 2025 में 222 पंचायत समिति के मेंबर और प्रधानों का कार्यकाल पूरा होगा, सितंबर 2026 में 78, अक्टूबर 2026 में 22 और दिसंबर 2026 में 38 पंचायत समितियों का कार्यकाल पूरा हो रहा है।

कैबिनेट सब कमेटी बनाने का प्रस्ताव तीन महीने से सीएम के स्तर पर विचाराधीन

वन स्टेट वन इलेक्शन पर विचार के लिए कैबिनेट सब कमेटी बनाने का प्रस्ताव करीब तीन महीने से सीएमओ में लंबित है।

अब तक सीएम के स्तर पर मंजूरी मिलना बाकी है।

इसके अलावा ‘वन स्टेट वन इलेक्शन’ के लिए दो कानूनों में संशोधन करना पड़ेगा। राजस्थान पंचायतीराज अधिनियम 1994 और राजस्थान नगरपालिका अधिनियम की धाराओं में संशोधन करना होगा।

सरपंच संघ प्रशासक लगाने के विरोध में उतरा

राजस्थान सरपंच संघ ने भी जनवरी में कार्यकाल पूरा कर रही 6857 ग्राम पंचायतों में प्रशासक लगाने की तैयारी का विरोध किया है। सरपंच संघ ने ग्रामीण विकास मंत्री किरोड़ी लाल को ज्ञापन भी दिया है।

सरपंच संघ का तर्क है कि जिन ग्राम पंचायत का जनवरी में कार्यकाल पूरा हो रहा है, उनमें प्रशासक लगाने की बजाय उनका कार्यकाल बढ़ा दिया जाए और मौजूदा सरपंच और वार्ड पंचों को मिलाकर एक कमेटी बना दी जाए जो बचे हुए समय के लिए पंचायत के काम कर सके।

कानूनी अड़चनों के समाधान नहीं होने तक वेट एंड वॉच, कानून मंत्री बोले- संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन नहीं करेंगे

राज्य सरकार ने 49 स्थानीय निकायों में प्रशासक भले लगा दिए हों, लेकिन अभी तक वन स्टेट वन इलेक्शन को लेकर कोई फैसला इसलिए नहीं किया है ताकि पूरे कानूनी परीक्षण करने के बाद ही आगे बढ़ा जाए।

वन स्टेट वन इलेक्शन को लेकर कानूनी अड़चनों से पार पाने के लिए सरकार ने कानूनी विशेषज्ञों से राय भी मांगी है। निकायों और पंचायतों में 5 साल में चुनाव करवाने का संवैधानिक प्रावधान होने की वजह से सरकार फिलहाल इस पर वेट एंड वॉच की स्थिति में है।कानून मंत्री जोगाराम पटेल का कहना है जो भी प्रश्न और आशंकाएं हैं, उनका कानूनी विशेषज्ञों से परीक्षण करवा रहे हैं। पंचायतीराज और शहरी निकाय चुनाव पर संविधान के प्रावधान हैं। उनका उल्लंघन करने का हमारा कोई इरादा नहीं है, कानून सम्मत ही काम करेंगे।

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