
जब ग्रामीण भारत की बात आती है, तो सड़कें और पुल सिर्फ कंक्रीट और डामर के ढांचे नहीं होते। ये गांवों और गांव में बसने वाले आम लोगों की जीवनरेखा होते हैं। जो सपनों को हकीकत से जोड़ते हैं। लेकिन जब बात विकास की आती है तो जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती है। मिली जानकारी के अनुसार रामगढ़ प्रखंड के लतबेरवा पंचायत अंतर्गत ग्राम गरडीह तथा ग्राम मधुबन को जोड़ने के लिए मुरको नदी के ऊपर बीते वर्ष 25 वर्ष 2023 में ग्रामीण कार्य विभाग के द्वारा एक नए पुल के निर्माण कार्य का शिलान्यास किया गया। उसके पश्चात निर्माण कार्य भी शुरू हुआ। जिसे बीते वर्ष 2024 में दिसंबर के महीने पुल का निर्माण कार्य पूरा कर आम लोगो के आवाजाही के लिए चालू भी कर दिया गया लेकिन पुल के निर्माण कार्य के मात्र छः महीने बीतने के बाद ही पुल व पुल से जुड़ी सड़क में दरार आ गयी। जिसे देख यह साफ प्रतीत होता है कि यह पुल और यह सड़क अब भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुकी है। निर्माण के महज छह महीने के भीतर ही इस पुल और सड़क की असलियत सामने आ जाना कई सवालों को जन्म देती है। यह कहानी न सिर्फ एक पुल की है, बल्कि उस विश्वास की भी है। जिससे आम जनता को बार-बार ठगा जाता है। ग्रामीण कार्य विभाग ने जब इस पुल और सड़क के निर्माण की घोषणा की थी, तो गरडीह, मधुबन लतबेरवा तथा आस पास के कई पिछड़े ग्रामवासियों के चेहरों पर मुस्कान थी। सिर्फ इस एक पुल के निर्माण से आसपास के गयी गाँव एक साथ जुड़ चुके हैं। बच्चों को स्कूल, मरीजों को अस्पताल, और किसानों को बाजार तक पहुंचने की राह आसान हो चुकी है। लेकिन सवाल यहाँ यह खड़ा होता है कि जब महज़ छः माह के भीतर जब पुल के किनारे तथा साथ में बनी सड़क पर दरार आ गयी तो ऐसी स्थिति में इस पुल की आयु कितनी होगी। ग्रामीण क्षेत्रों में अक्सर ऐसा ही देखने को मिलता है जहां पर विभाग के भ्रष्टाचार की कीमत वहाँ के आम नागरिको को चुकाना पड़ता है। ऐसी स्थिति को देख कर यह कहना भी गलत नहीं होगा कि यह निर्माण कार्य कम और कागजी फाइलों में बजट लूटने का एक और नाटक ज्यादा था।
अब यहाँ सवाल यह नहीं कि दरारें क्यों आईं सवाल यहाँ यह है कि क्या इस परियोजना में गुणवत्ता की जांच कि गई थी। क्या ठेकेदारों ने मानक सामग्री का उपयोग किया था। या फिर रेत और सीमेंट के नाम पर मिट्टी और हवा मिलाई थी। क्या विभागीय इंजीनियरों ने निर्माण स्थल पर कदम भी रखा था। या फिर संबंधित विभाग के अधिकारियों द्वारा एयर कंडीशनर दफ्तरों में चाय की चुस्कियों के बीच फाइलों पर हस्ताक्षर कर दिए गए। ग्रामीण कार्य विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों को यह समझना होगा कि पुल तथा सड़क पर पड़े हर दरार सिर्फ कंक्रीट की नहीं। बल्कि जनता के भरोसे की भी है। इस पुल और सड़क के निर्माण लिए पैसा कहां से आया। यह पैसा उसी जनता के द्वारा भरे जाने वाले टैक्स के पैसे से आया जो दिन-रात मेहनत करके दो वक्त की रोटी जुटाते है। और किसी तरह अपना भरण पोषण करते हैं। क्या यह उचित है कि आम जनता की मेहनत की कमाई को भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ा दिया जाए। क्या यही है ग्रामीण विकास का मॉडल, जिसे गर्व से पेश किया जाता है। अगर संबंधित विभाग के अधिकारियों आंखें अब भी बंद हैं, तो उन्हें इन दरारों को देखना चाहिए। इस सड़क और पुल पर आई दरारें संबंधित विभाग की जवाबदेही और नाकामी की गवाही दे रही हैं। जिसे कभी भी नाकारा नहीं जा सकता। संबंधित विभाग के अधिकारी इस पुल और सड़क को चाहे जितना भी अनदेखा कर ले। लेकिन जमीनी हकीकत चीख चीख कर अपनी असलियत बयां करती रहेंगी जिसे कभी भी अनदेखा नहीं किया जा सकता।