उत्तर प्रदेशबस्ती

अधिकारीयों की मनमानी पंचायत भवन से पंचायत सहायक व उपकरण गायब, दिखवा बना पंचायत भवन

अजीत मिश्रा (खोजी)

।।अधिकारीयों की मनमानी पंचायत भवन से पंचायत सहायक व उपकरण गायब, दिखवा बना पंचायत भवन।।

-लाखों खर्च होने के बावजूद भी बेमतलब की है मुस्कान।

बस्ती, उत्तर प्रदेश — लाखों रुपये की लागत से बने पंचायत भवन अब सिर्फ नाम के लिए रह गए हैं। सरकार की मंशा पंचायतों को डिजिटल और जवाबदेह बनाने की थी, लेकिन ज़मीनी हकीकत यह है कि न तो वहाँ कोई कार्य प्रणाली बची है और न ही जरूरी उपकरण। कंप्यूटर, प्रिंटर और इंटरनेट जैसी सुविधाएं या तो लापता हैं या अधिकारियों और प्रधानों के घरों में निजी उपयोग में लाई जा रही हैं।

ग्रामीणों का कहना है कि पंचायत सहायकों से ₹6000 प्रतिमाह पर महीनेभर का काम लिया जा रहा है, लेकिन संसाधनों के बिना वे काम करने में असमर्थ हैं। दूसरी तरफ कई स्थानों पर तो सहायकों की उपस्थिति भी नाममात्र की है, लेकिन रिकॉर्ड में पूरी हाजिरी और वेतन दर्शाया जा रहा है। पंचायत भवन में अब कंप्यूटर ही नहीं है। जो सहायक कभी-कभार आता है, वह भी खाली हाथ बैठता है। आखिर पंचायत भवन की उपयोगिता क्या रह गई है?”एक ग्रामीण, नाम न बताने की शर्त पर।

।।सरकारी नीति बनाम जमीनी हकीकत।।

उत्तर प्रदेश सरकार की “डिजिटल ग्राम पंचायत” और “जीरो टॉलरेंस” की नीति के अंतर्गत इन भवनों को ग्रामीण जनता के लिए सूचना केंद्र और जनसेवा सुविधाओं का माध्यम बनाना था। लेकिन अब हालात ऐसे हैं कि अधिकांश पंचायत भवनों के ताले जंग खा रहे हैं और भीतर की व्यवस्थाएं गायब हो चुकी हैं।

जवाबदेही किसकी?

इस स्थिति के लिए सबसे बड़ा प्रश्न यह उठता है — जिम्मेदार कौन है?

क्या पंचायती राज विभाग निगरानी में विफल रहा है? क्या खंड विकास अधिकारियों और जिला प्रशासन ने अपनी जिम्मेदारी से मुँह मोड़ लिया है? या फिर जनप्रतिनिधियों की मिलीभगत से ये हालात बने हैं?

।।ग्रामीणों की मांग ऑडिट और सख्त कार्रवाई।।

सभी पंचायत भवनों का सामग्री ऑडिट कराया जाए। गायब उपकरणों की स्थलीय जांच हो।दोषी प्रधानों, अधिकारियों और लाभार्थियों पर कानूनी कार्रवाई की जाए।पंचायत सहायकों को उचित संसाधन और वेतन दिया जाए, जिससे वे सेवा दे सकें।

।।डीएम साहब, जरा एक बार जाकर देखिए।।

ग्रामीणों ने जिलाधिकारी रवीश गुप्ता से अपील की है कि वे खुद पंचायत भवनों का औचक निरीक्षण करें और यह देखें कि लाखों की लागत से बना भवन किस हाल में है। यदि “जीरो टॉलरेंस” नीति को ज़मीन पर उतारना है, तो इन मामलों में सख्त और त्वरित कार्रवाई अब अनिवार्य हो चुकी है।

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