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यू ना तुम हारो कौंतये

अर्जुन उतरा कुरुक्षेत्र में, धुरंधर वह गांडीवधारी,

लड़ने में वह अजयवीर, सर्वश्रेष्ठ वह धनुधारी,

देखा उसने जब रण क्षेत्र में, हुआ उसको मोह भारी कैसे युद्ध करें अपनों से, संसा और ग्लानि भारी

रखा एक तरफ धनुष बाण, बैठ गया रथ के पीछे शोकाकुल अर्जुन को जान, केशव आए रथ के नीचे पास गए कुंती पुत्र के, मुस्कुरा कर बोले मुरली धारी

ना डरो ना बंधो मोह मैं,ना बनो तुम धीर पार्थ यू रण क्षेत्र मैं ।

ना कोई है यहां अपना ना पराया है ,

धर्म और अधर्म ने यहां अपना खेल रचाया है।

यह कर्म क्षेत्र यह रण क्षेत्र सजा हुआ यह कुरूक्षेत्र, बिना कर्म के बिना रण के यू ना तुम हारो कौंतये

यू ना तुम हारो कौंतये

सतीष खडका

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