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संतान सप्तमी का व्रत: इस व्रत को संतान की कुशलक्षेम के लिए किया जाता है

संतान सप्तमी की आप सभी को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं

मथुरा।हर  वर्ष संतान सप्तमी 10 सितंबर मंगलवार को है।इस व्रत को संतान की कुशलक्षेम के लिए किया जाता है।एक चौकी पर लाल या सफेद वस्त्र बिछाकर चावल से अष्टदल बनाएं उसके ऊपर जल से भरा हुआ हुआ कलश रखें।कलश में आम या अशोक के पत्ते लगाकर पानी वाला नारियल रखें।शिव और माता पार्वती जी का चित्रपट रखकर। कुमकुम,अक्षत,चन्दन,इत्र, सफेद वस्त्र,फूलमाला,पान सुपारी, धूपबत्ती, कलावा, लौंग इलायची,फल, नैवेद्य दूध दही पंचमेवा आदि से पूजन करें। गुड़ के मीठे पुआ का भोग लगाएं। शुद्ध देसी घी का दीपक जलाकर कथा को श्रवण करें और बाद में आरती उतारें। व्रत करने वाले को गुड़ से बने हुए पुआ ही खाने चाहिए। कहीं-कहीं खीर पूड़ी का भी खाने का प्रचलन है।और अपनी संतान की शुभ मंगल कामना के लिए भगवान शिव पार्वती जी से प्रार्थना करना चाहिए। भगवान शिव पार्वती के साथ साथ उनके पूरे परिवार का पूजन-अर्चन और ध्यान करना चाहिए क्योंकि भगवान शिव पार्वती जी जैसा परिवार और कहीं देखने को नहीं मिलता है ।शिव जी के मस्तक पर चन्द्रमा है और चन्द्रमा में अमृत होता है शिव जी के गले में विष है जो अमृत का विलोम है,शिव जी का वाहन नंदी है पार्वती जी का वाहन सिंह है दोनों एक-दूसरे के विरोधी हैं, गणेश जी का वाहन चूहा है शिव जी के गले में सर्प है दोनों एक-दूसरे के विरोधी हैं, कार्तिकेय जी का वाहन मोर है मोर और सर्प एक दूसरे के विरोधी हैं परन्तु आपस में विरोधी होते हुए भी सभी एक साथ आपसी वैर को भुलाकर बड़े प्रेम से रहते हैं।जो शिव परिवार की पूजा मन से, श्रद्धा से, विश्वास से करते हैं उनके परिवार में कभी क्लेश नहीं होता है सभी प्रेम से रहते हैं।

राजकुमार गुप्ता मथुरा

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