। सागर। वंदे भारत लाइव टीवी न्यूज संवाददाता सुशील द्विवेदी।सागर से करीब 60 किलोमीटर दूर नरसिंहपुर मार्ग पर रहली स्थित प्रसिद्ध तीर्थ क्षेत्र रानगिर अपने आप में एक विशेषता समेटे हुए है। देहार नदी के तट पर स्थित इस प्राचीन मंदिर में विराजी मां हरसिद्धि की ख्याति दूर दूर तक फैली है। मां के दर पर आने वाले मे श्रद्धालुं की हर मनोकामना पूरी होती है। यहां पर हर दिन अनेक श्रद्धालुओं का आना होता है लेकिन साल की दोनो नवरात्रि पर हजारों श्रद्धालु मां के दर्शन कर प्रसाद, भेट चढ़ाते हैं तथा मां के दरबार में अनुष्ठान करते है।
श्रद्धालुओं का जनसैलाब तो नवरात्रि और सभी प्रमुख तीज त्यौहार पर उमड़ता है लकिन चौत्र माह की नवरात्रि पर यहां विशाल मेला लगता है जिसमें सागर जिला सहित पूरे मध्यप्रदेश और प्रदेश के बाहर तक के श्रद्धालु रानगिर आते हैं और मां के दरबार में मनौती मांगते है। कुछ श्रद्धालु जहां मनौती लेकर आते हैं वही कई श्रद्धालु मनौती पूरी होन पर मां के दरबार मे हाजिरी लगाते है। कहा जाता है कि सच्चे मन से मां हरसिद्धि के सामने जो भी कामना की जाती है वह पूरी हे जाती है और मां के भक्त इसी आशा और विश्वास से मां के दरबार में दौडे चले आते हैं और मां भी अपने भक्तो की मनोकामना पूरी करती हैं।
किवदंती के अनुसार देवी भगवती के 52 सिद्ध शक्ति पीठों में से एक शक्तिपीठ है सिद्ध क्षेत्र रानगिर है। पौराणिक कथा के अनुसार दक्ष प्रजापति के अपमान से दुखित हो सती ने योगबल से अपना शरीर त्याग दिया था भगवान शंकर ने सती के शव को लेकर विकराल तांडव किया तो सारे संसार में हाहाकार मच गया तब विष्णु के सुदर्शन चक्र ने सती के शव को कई अंगों वे बांट दिया। ये अंग जहां जहां भी गिरे वे सिद्ध क्षेत्र के नाम से जाने जाते हैं। कथानुसार सती की रान एवं दांत के अंश जहां गिरे वह स्थान सिद्ध क्षेत्र रानगिर एवं गौरी दांत नाम से विख्यात हुये। अन्य कथानक में यह भी कहा जाता है कि इस क्षेत्र की पहाड़ी कंदराओं में रावण ने घोर तपस्या की थी इस कारण इसका नाम रावणगिरी हुआ और कालांतर में परिवर्तित होता हुआ सूक्ष्म नाम रानगिर पड़ा। वैसे इस सिद्ध क्षेत्र के संबंध में अनेकानेक किवदंतियां हैं। कहा जाता है कि उक्त स्थान पर भगवान राम के वनवास काल में चरण कमल पड़े थे जिससे इसका नाम रामगिर पड़ा एवं परिवर्तित होते-होते रानगिर हो गया।
1732 मे सागर प्रदेश का रानगिर परगना मराठों की राजधानी था। जिसके शासक पंडित गोविंद राव थे। वर्तमान मंदिर पंडित गोविंदराव का निवास परकोटा था। 1760 मे पंडित गोविंद राव की मृत्यु के बाद यह स्थल खण्डहर मे बदल गया। इसी खण्डहर के बीच एक चबूतरा था कुछ सालों बाद इसी चबूतरे पर मां हरसिद्धि देवी जी की मूर्ति स्थापित की गई। बाद मे धीरे-धीरे श्रद्धालुओं ने इस खण्डहर को पुनजीर्वित कर विशाल मंदिर का रूप दिया। वर्तमान मंदिर का निर्माण करीब दो सौ साल पहले हुआ था। रहली के रानगिर में विराजी मां हरसिद्धि तीन रूप में दर्शन देती हैं। प्रातरू काल मे कन्या, दोपहर में युवा और सायंकाल प्रौढ़ रुप में माता के दर्शन होते है। जो सूर्य, चंद्र और अग्नि इन तीन शक्तियों के प्रकाशमय, तेजोमय तथा अमृतमय करने का संकेत है। रानगिर में विराजित मां की लीला अपरंपार है। दिन मे तीन प्रहरों मे मां तीन रूप में दर्शन देती हैं। सूर्य की प्रथम किरणों के समय मां बाल रूप में दर्शन देती हैं तो दोपहर बाद युवा रूप में एवं शाम के वृद्धा दर्शन देती हैं। परिवर्तित हेने वाले मां की छवि में श्रद्धालु अपने आस्था और श्रद्धा मां के चरणो मे समर्पित कर धन्य हो जाते हैं। मां महिमा अपरंपार हैं भक्त जो भी मनोकामना लेकर आते हैं मां उसे अवश्य ही पूर्ण करती हैं।मां की यह प्रतिमा अति प्राचीन है। प्रतिमा के साथ छोटी मूर्ति भी बनी हुई है जो किसी सेवक के लिए इंगित करती है। हरसिद्धि का भावार्थ पार्वती देवी ही है। हर का अर्थ महादेव और सिद्धि का अर्थ प्राप्ति होती है। रानगिर सिद्ध क्षेत्र में पर्यटन एवं श्रृद्धालुओं की सुविधा को देखते हुए आधुनिक झूला पुल का निर्माण कराया जा रहा है। यह पुल रहली और सुरखी को जोड़ेगा जिससे यहाँ अवागमन बढ़ेगा। रानगिर में शासन के द्वारा अनेक विकास कार्य किये जा रहे हैं जिसमें फोरलाईन से पक्की सड़क, मंदिर परिसर, सीसी रोड, देहार नदी पर नवीन पुल आदि प्रमुख निर्माण एवं जीर्णाेद्धार कार्य किये जा रहे हैं अपनी प्रसिद्धि एवं भक्तों के अटूट विश्वास के कारण रानगिर बुंदेलखंड का प्रसिद्ध तीर्थ क्षेत्र बन गया है।।माता के दरबार में पहुंचने के लिए देहार नदी के पूर्व तट पर घने जंगलों एवं सुरम्य वादियों के बीच स्थित हरसिद्धि माता के दरबार में पहुंचने के लिए जिला मुख्यालय सागर से दो तरफा मार्ग है। सागर, नरसिंहपुर नेशनल हाइवे पर सुरखी के आगे मार्ग से बायीं दिशा में आठ किलोमीटर अंदर तथा दूसरा मार्ग सागर-रहली मार्ग पर पांच मील नामक स्थान से दस किलोमीटर दाहिनी दिशा में रानगिर स्थित है। मेले के दिनों में सागर, रहली, गौरझामर, देवरी से कई स्पेशल बस दिन-रात चलती हैं। दोनों ओर से आने-जाने के लिए पक्की सड़कें हैं। निजी वाहनों से भी लोग पहुंचते हैं।
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