बलिया: भृगु क्षेत्र महात्म्य के अनुसार, ‘भृगु मुनि ने एक मेले की शुरुआत की, जिसका नाम अपने शिष्य दर्दर मुनि पर आधारित ददरी मेला रखा.’ यह मेला करीब 10 दिन पहले ही लग चुका है. चूंकि अभी मेले में नंदीग्राम के तहत पशुओं की खरीद-बिक्री हो रही है, 15 नवंबर यानी कार्तिक पूर्णिमा से यह मेला अपने भव्य रूप में आ जाएगा. यह न केवल ऐतिहासिक है बल्कि पौराणिक भी है. भृगु ने बलिया में सरयू, यानी जिसमें श्री राम ने समाधि ली थे, उसे गंगा से जोड़कर संगम कराया. इस दौरान ब्रह्मांड की सारी शक्तियां यहां विराजमान होती हैंइस बारे में प्रख्यात इतिहासकार डॉ. शिवकुमार सिंह कौशिकेय ने कहा कि, ‘भगवान श्री राम की जन्मभूमि अयोध्या धाम से महामुनि भृगु सरयू नदी को बलिया लेकर आए थे.’ पौराणिक काल में प्रवाहित पवित्र गंगा नदी का संरक्षण जनता के सहयोग से भृगु मुनि ने कराया था. लगभग 7000 ई.पू. महर्षि भृगु ने विमुक्त तीर्थ बलिया (इसी धरती पर भृगु मुनि को मोक्ष मिला था) के गंगा तट पर अपना आश्रम, गुरुकुल, ज्योतिष और खगोल का पठन-पाठन शुरू किया.कुलगुरु वशिष्ठ को पत्र लिख भृगु मुनि ने बलिया में कराया था संगम
इस दौरान भृगु मुनि को लगा कि कलियुग में गंगा की धारा इतनी क्षीण हो जाएगी कि यह गंगासागर तक नहीं बह पाएगी. महर्षि ने अपने शिष्यों और बलिया वासियों को गंगा और सरयू नदियों का संगम कराने के लिए योगदान यानी मेहनत करने के लिए तैयार किया. उस समय सरयू नदी अयोध्या तक ही बहती थी. महर्षि भृगु ने अयोध्या के कुलगुरु वशिष्ठ को पत्र लिखकर आज्ञा ली और सरयू की जलधारा को लाकर बलिया में संगम कराया.ऐसे हुआ नामकरण, श्री राम से है गहरा नाता…
इस संगम के दौरान पानी के बहाव से निकली आवाज दर्र-दर्र से अपने शिष्य का नाम दर्दर और घर्र-घर्र से सरयू का नाम घाघरा रखा गया. मान्यता यह भी है कि भगवान ने अपनी समाधि इसी सरयू नदी में ली थी जो बलिया के धरती पर भी प्रवाहित होती है. मान्यता है कि तीर्थराज प्रयाग भी यहां निवास करते हैं. बहुत दूर-दूर से लाखों की संख्या में भक्त इस पूर्णिमा को स्नान करते हैं और मेले में मशहूर गुड़ही जलेबी खाते हैं.
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