
सरकार के इतने प्रयासों के बाद भी आखिर कैसे बढ़ रहा भ्रष्टाचार
प्रतापगढ़
भ्रष्टाचार एक बीमारी की तरह फैल रहा है, भ्रष्टाचार एक ऐसा संक्रामक रोग है जिसकी चपेट में छोटे कर्मचारियों से लेकर जिले के जिम्मेदार अधिकारी आ चुके हैं।
जिससे भ्रष्टाचार जैसे संक्रामक रोग पर रोकथाम कर पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन सा हो गया है। जो भी व्यक्ति भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाता है उसे सरकारी कार्यालय के इतने चक्कर लगाने पड़ते हैं कि व्यक्ति चकराकर जमीन पर गिर जाता है।
सरकारी कार्यालय में बैठे भ्रष्टाचारी कर्मचारी एवं अधिकारी अपने द्वारा किए गए भ्रष्टाचार को छुपाने के लिए नई-नई युक्तियां भी निकालते रहते हैं और साथ में भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले व्यक्ति का उपहास भी लगातार करते रहते है। भ्रष्टाचार में लिप्त इन कर्मचारियों को इतनी हिम्मत जिले के जिम्मेदार अधिकारियों के सह पर ही मिलती है क्योंकि जिले के जिम्मेदार अधिकारी भ्रष्टाचारी कर्मचारियों पर कार्यवाही करने के बजाय उनकी पीठ थपथपाते हैं, तभी तो भ्रष्टाचार के खिलाफ दिए गए प्रार्थना पत्र पर बिना राजनीतिक दबाव के कोई कार्रवाई देखने को नहीं मिलती।
ताजा मामला चर्चित विकासखंड मांधाता का है जहां पर क्षेत्र पंचायत निधि में हुए भ्रष्टाचार की शिकायत पर जिला अधिकारी महोदय ने जांच टीम गठित की थी लेकिन आज तक जांच टीम ने कैसे जांच की, शिकायतकर्ता द्वारा लगाए गए आरोप सही भी थे या नहीं ,जांच हुई भी या नहीं, इसकी जानकारी किसी को भी नहीं।
जिला अधिकारी का आदेश कार्यवाही के लिए था या सिर्फ दिखावा इस पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं।
मांधाता विकास खंड की अगर हम बात करें तो मांधाता विकासखंड में भ्रष्टाचार की जड़े इतनी मजबूत हैं की भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले व्यक्ति के गले सूख जाते हैं लेकिन भ्रष्टाचारियों पर कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि जिले में बैठे जिम्मेदार अधिकारी भी मौन होकर इनके द्वारा किए गए भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहे हैं।
कई दिनों से ई-रिक्शा कूड़ा गाड़ी का मामला सुर्खियों में बना हुआ है, जिम्मेदार अधिकारी फोन पर इस भ्रष्टाचार के जांच की बात तो करते हैं लेकिन जमीन पर ना तो कोई टीम गठित की गई और ना ही कोई जांच अभी तक की गई है।
ऐसे में यह कहना कितना गलत होगा कि इन भ्रष्टाचारियो को बचाने के लिए जिले के जिम्मेदार अधिकारी खुद बैठे हुए हैं।
भ्रष्टाचार रूपी दीमक पूरे समाज को खोखला कर रहा है जनता के टैक्स का पैसा भले ही इन भ्रष्टाचारी कर्मचारियों के वेतन के लिए जाता है लेकिन जब तक यह भ्रष्टाचारी कर्मचारी भ्रष्टाचार का खेल न खेल ले इनके घर का तवा ही गम नहीं होता।
ऐसे में जनता की सहूलियत और जनता को सरकारी सुविधाओं से जोड़ने वाले कर्मचारी ही जब भ्रष्टाचार में लिप्त रहेंगे और जिम्मेदार अधिकारी मौन होकर गरीब जनता का शोषण होता देखते रहेंगे तो सरकार की नीतियां जमीन पर कैसे लागू होगी, आखिर सरकार के द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं का लाभ आम जनमानस को कैसे मिल पाएगा?