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आजादी के बाद पहली बार होगी जाति जनगणना पीएम मोदी की अध्यक्षता में कैबिनेट कमेटी की बैठक में फैसला। अगले साल संभावित जनगणना के साथ ही होगी जातीय जनगणना। आखिरी बार 1931 में हुई थी जाति जनगणना

आजादी के बाद पहली बार होगी जाति जनगणना पीएम मोदी की अध्यक्षता में कैबिनेट कमेटी की बैठक में फैसला। अगले साल संभावित जनगणना के साथ ही होगी जातीय जनगणना। आखिरी बार 1931 में हुई थी जाति जनगणना

           प्रेस विज्ञप्ति 
           नई  दिल्ली 

आजादी के बाद पहली बार होगी जाति जनगणना
पीएम मोदी की अध्यक्षता में कैबिनेट कमेटी की बैठक में फैसला।
अगले साल संभावित जनगणना के साथ ही होगी जातीय जनगणना।
आखिरी बार 1931 में हुई थी जाति जनगणना

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। जाति जनगणना को लेकर पिछले कुछ वर्षों से तेज हुई राजनीति के बीच अब केंद्र सरकार ने भी इसकी घोषणा कर दी है। बुधवार को राजनीतिक मामलों की कैबिनेट कमिटी ने जनगणना के साथ जाति गणना को हरी झंडी दे दी है। आजादी के बाद यह पहली होगा क्योंकि अब तक कई बार जाति सर्वे तो हुए लेकिन पूरी गणना नहीं हुई।

आजादी के बाद पहली बार होगी जाति जनगणना

यही कारण है कि सरकार की ओर से फैसले की घोषणा के साथ फिर से राजनीतिक बयानबाजी तेज हो गई। कांग्रेस समेत कई विपक्षी दल जहां इसे अपनी जीत बता रहे हैं वहीं भाजपा की ओर इतिहास स्पष्ट किया गया और कहा गया कि जाति जनगणना पहली बार होने जा रही है। इस फैसले के बाद एकबारगी जहां देश का ध्यान पाकिस्तान से हटकर घरेलू राजनीति पर आया वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक झटके में विपक्षी का बड़ा चुनावी मुद्दा भी छीन लिया।

अक्टूबर-नवंबर में बिहार चुनाव है जहां विपक्षी महागठबंधन इसे ही सबसे बड़ा मुद्दा बनाने की तैयारी में था। अब चुनाव में श्रेय की होड़ छिड़ेगी जहां राजग की ओर से यह बताया जाएगा कि आजादी के बाद पहली बार जाति जनगणना होने जा रही है। फैसले की जानकारी देते हुए सूचना व प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने विभिन्न राज्यों में जाति जनगणना के नाम पर जाति सर्वे पर भी सवाल खड़ा किया। उन्होंने साफ किया कि संविधान के अनुच्छेद 246 की केंद्रीय सूची में जनगणना को रखा गया है, इसीलिए राज्यों ने जाति जनगणना कराने का अधिकार नहीं है।

  जातीय सर्वे पर विपक्ष ने भ्रम फैलाया

वैष्णव के अनुसार कई राज्यों ने सर्वे के माध्यम से जातियों की जनगणना का दावा किया, लेकिन उन पर राजनीतिक हित साधने और गैर पारदर्शी तरीके से सर्वे कराने के आरोप लगे। जाहिर है इस प्रकार के जातीय सर्वे ने समाज में भ्रांति फैलाने का काम किया। मनमोहन सिंह सरकार ने भी जाति जनगणना कराने की घोषणा की थी लेकिन सर्वे ही कराया। उसका नाम एसइसीसी था।

अश्विनी वैष्णव के अनुसार देश के सामाजिक ताने-बाने को राजनीतिक दबाव से दूर रखने के लिए कैबिनेट ने राज्यों के सर्वे की जगह जातियों की गणना को मूल जनगणना में शामिल करने का फैसला किया। जातियों की पारदर्शी तरीके गिनती से समाज के आर्थिक व सामाजिक रुप से मजबूत करने और देश का विकास सुनिश्चित करना संभव होगा। उन्होंने कहा कि इसके पहले सरकार ने 2019 में गरीब वर्गों के लिए 10 फीसदी आरक्षण देने का ऐतिहासिक फैसला किया था, जिसे समाज के सभी वर्गों ने स्वीकार किया था।

कांग्रेस करती रही है जाति जनगणना का विरोध

अश्विनी वैष्णव ने जाति जनगणना को प्रमुख राजनीतिक मुद्दा बनाने वाली कांग्रेस को आड़े हाथ लिया। उनके अनुसार हकीकत यही है कि कांग्रेस की सरकारों ने आज तक जाति जनगणना का विरोध किया है। इसका प्रमाण है कि आजादी के बाद सभी जनगणनाओं में जाति की गणना की ही नहीं गई। जाति जनगणना के मुद्दे को कांग्रेस व आइएनडीआइए गठबंधन दलों पर सिर्फ राजनीतिक लाभ के लिए उपयोग का आरोप लगाते हुए कहा कि मनमोहन सिंह सरकार ने 2010 में संसद में आश्वासन देने के बावजूद मनमोहन सिंह सरकार ने इसे नहीं कराया गया।

जाति जनगणना पर मंत्रीमंडल समूह की संस्तुति के बावजूद मनमोहन सिंह सरकार ने सामाजिक, आर्थिक, जातीय जनगणना के नाम सिर्फ सर्वे कराया। ध्यान देने की बात है कि जातीय जनगणना 1931 में जनगणना के साथ हुई थी। इसी जातीय जनगणना के आंकड़ों के आधार पर ओबीसी आरक्षण के लिए मंडल कमीशन ने 1980 में अपनी रिपोर्ट सौंपी थी और तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने 1991 में इसे लागू किया था। लेकिन पिछड़ी जातियों की मौजूदा जनसंख्या जानने और उसके अनुरूप में उनके उत्थान की नीतियां बनाने के लिए जातीय जनगणना कराने की मांग जोर पकड़ रही थी।

स्वरूप तय करने के लिए बन सकती है सर्वदलीय समिति
2011 के सामाजिक आर्थिक और जातीय जनगणना (एसईसीसी) से सीख लेते हुए सरकार इसका स्वरूप तय करने के लिये सर्वदलीय समिति का गठन कर सकती है। 2011 की एसईसीसी में 1931 के 4147 जातियों की तुलना में 46.80 लाख जातियां दर्ज की गई थी।

इस बार सरकार जनगणना के साथ-साथ जातीय जनगणना कराने का फुलप्रूफ माडल तैयार करना चाहती है। मुद्दे की संवेदनशीलता को देखते हुए सरकार इस पर आम राय बनाने की कोशिश कर सकती है और उसका सबसे अच्छा तरीका सर्वदलीय समिति का गठन है। जिसकी अनुसंशाओं के अनुरूप जातीय जनगणना कराई जाएगी।

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