
सागर। वंदे भारत लाईव टीवी न्यूज रिपोर्टर सुशील द्विवेदी। सागर जिले के देवरी कला विकासखंड से 16 किलोमीटर दूर महाराजपुर पनारी के पास दो एकड़ में 5000 वर्ष पुराना बट वृक्ष में जहां ऑक्सीजन का अपार भंडार है और ऑक्सीजन प्राप्त होती है यहीं पर बना मां चौसठ योगिनी का दरबार आस्था का अहम केंद्र भी है। यहां दूर दराज गांवों के अलावा प्रदेश और देश के कोने-कोने से श्रद्धालु दर्शन करने आते है। दो एकड़ भूमि में फैले और लगभग पांच हजार वर्ष पुराने वट वृक्ष की छाया में मां चौसठ योगिनी का दरबार श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है। इतना बड़ा वट वृक्ष और अन्य जगह सरलता से देखने को नहीं मिलता और इसकी जटाएं भी भूमि को स्पर्श कर रही हैं। यहां दूर दराज गांवों के अलावा प्रदेश और देश के कोने-कोने से श्रद्धालु दर्शन करने के लिए आते हैं। देवरी से 16 किमी दूर पनारी गांव में बिराजित मां चौसठ योगिनी के मंदिर मैं आस्था का सैलाब उमड़ रहा है। बरगद के वृक्ष से यहां हजारों की संख्या में लटके घंटे मां के प्रति आस्था को व्यक्त करते हैं। मां चौसठ योगिनी के दरबार तक पहुंचने के लिए नेशनल हाइवे 44 पर सागर और नरसिंहपुर मार्ग के बीच पड़ने वाले महाराजपुर से दो किलोमीटर दूरी से रास्ता है। पनारी गांव में जिस बरगद के वृक्ष के नीचे मां चौसठ योगिनी का दरबार स्थापित है, वह बरगद का पेड़ दो एकड़ एरिया में फैला हुआ है। इस बरगद के विशाल वृक्ष की जटाओं व सभी दिशाओं में मां जगत जननी के विभिन्न स्वरूपों में चौसठ योगिनी की प्रतिमाएं विराजमान हैं।इस तीर्थ में हजारों साल पुराने विशाल बरगद की अदभुत उत्पत्ति, संरचना मध्यप्रदेश में अद्वितीय है। बरगद का यह एक वृक्ष फैलकर दो एकड़ भूमि में अपनी मनोहारी छटा बिखेरता है। एक वृक्ष से निकले तने से पूरे क्षेत्र में चार सौ से अधिक तने और अगिनत डालियां ही दिखाई देती हैं। पाषाण प्रतिमाएं वट वृक्ष की जड़ों में विराजी है। मां चौसठ योगिनी बरगद में से प्रगट हुईं और मां के विभिन्न स्वरूपों की पाषण प्रतिमाएं बरगद के बढ़ते स्वरूप के कारण जड़ों में जकड़ गई। 1960 में जनसहयोग से प्रतिमाओं को जीर्णशीर्ष अवस्था से निकालकर पुनर्स्थापित कराया गया। यह बरगद का वृक्ष पांच हजार साल पुराना बताया जाता है। जिसे चौसठ योगिनी का स्वरूप माना गया। तीर्थ स्थल के रूप में विकसित हो सकता है दरबार पनारी स्थित चौसठ योगिनी धाम प्रदेश में अनूठा तीर्थ स्थल है। यहां प्रदेश के अलावा देश के कोने-कोने से हजारों लोग दर्शन करने आते है। यह तीर्थस्थल नौरादेही अभयारण्य के पास है। यदि इसी विकसित किया जाए तो इसका लाभ अभयारण्य आने वाले सैलानियों को भी मिलेगा