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बहराइच के बौंडी थाना क्षेत्र के कौड़हा ग्राम पंचायत के कारीपुरवा गांव में जहां जीवन की मधुर लय शहनाइयों की स्वरलहरी में बस दो दिन बाद गूंजने वाली थी, वहां नियति ने ऐसा क्रूर परिहास रचा कि सुख के स्वप्न रेत के महल-से ढह गए। वह छब्बीस बसंतों के यौवन वाला ओमकार सिंह जिसके हृदय में प्रेम की सौम्य लहरें उमड़ रही थीं और जिसके कानों में मंगल गीतों की मधुर तान गूंज रही थी एकाएक विद्युत की चपेट में आकर सदा के लिए चिरनिद्रा में लीन हो गया। ओमकार सिंह.. जिसके घर में बारात की उमंग थी, अब उस आंगन में मातम का सघन अंधकार छाया है।
बुधवार की सायं तक ओमकार के गृह-आंगन में हर्षोल्लास का सागर लहरा रहा था। रिश्तेदारों की चहल-पहल, मंगल गीतों की सुमधुर स्वरलहरी और मातृपूजन की पावन रस्में, सब कुछ उस आगामी विवाह के उल्लास में संनादित थीं। मां रामा देवी की आंखों में अपने लाडले की स्मित-रेखा चमक रही थी। पिता विक्रम के हृदय में पुत्र के सुखमय भविष्य की आकांक्षा सन्नहित थी। बड़े भाई भारत और धर्मवीर अपने अनुज के विवाह की तैयारियों में रमे, हंसी-मजाक में डूबे थे। किंतु, हे विधाता! तेरी लीला अपरंपार! एक क्षण में वह सारा उल्लास रुदन के सागर में विलीन हो गया।
गुरुवार के सूर्योदय के साथ ही वह सौम्य प्रभात जो मंगलमय होनी थी करुणा की काली छाया में डूब गई। घर का दुलारा, तीन भाइयों में सबसे छोटा, जिसके स्नेहिल स्वभाव ने गांव के प्रत्येक हृदय को जीत लिया था, उसने फ्रिज के तार को जोड़ने का प्रयास किया। किंतु विद्युत की वह प्रचंड शक्ति जो जीवन को सरल बनाती है, वही आज मृत्यु की दूत बनकर आई। एक तीक्ष्ण झटके ने ओमकार के प्राणों को छीन लिया। वह जिसके स्वप्नों में श्रावस्ती के मल्हीपुर से आने वाली दुल्हन की छवि बसी थी अब निःशब्द, निश्चल पड़ा था। मां रामा देवी की चीख ने आकाश को विदीर्ण कर दिया। वह बार-बार अपने लाल का नाम पुकारती, किंतु वह निद्रा इतनी गहन थी कि कोई पुकार उसे जगा न सकी।
परिजन आनन-फानन में उसे जिला चिकित्सालय ले गए। मगर नियति का लेख तो पहले ही लिखा जा चुका था। चिकित्सकों ने केवल यह कहकर सिर झुका लिया कि समय ने उन्हें छल लिया है। रामा देवी का आंचल अब अश्रुओं से तर-बतर था। वह बेसुध होकर अपने लाडले का नाम पुकार रही थी, मानो उसकी पुकार से वह पुनः लौट आए। पिता विक्रम की आंखों में सवालों का सागर उमड़ रहा था—क्यों? यह क्यों हुआ? बड़े भाई, भारत और धर्मवीर, जिनके कंधों पर ओमकार की हंसी का भार था, अब सिसकियों में टूट रहे थे। जिस आंगन में बारात की तैयारियां थीं, वहां से अर्थी सज कर उठी। रिश्तेदार, जो हंसी-खुशी में डूबे आए थे, अपने कंधों पर ओमकार की अंतिम यात्रा का भार उठाने को विवश हुए।
कारीपुरवा गांव जो कभी ओमकार की हंसी से गूंजता था, अब मातम की चादर में लिपट गया। प्रत्येक गली, प्रत्येक चौपाल, प्रत्येक हृदय में केवल शोक की सघन छाया है। वह मधुर स्वर, वह स्नेहिल मुस्कान, वह यौवन जो गांव का गौरव था, अब केवल स्मृतियों में सिमट गया। मां रामा देवी की आंखों में अब भी वह क्षण जीवित है, जब ओमकार ने अंतिम बार मुस्कुराकर उसे देखा था। पिता विक्रम का हृदय अब भी उस प्रश्न से जूझ रहा है कि नियति ने उनके साथ ऐसा क्रूर परिहास क्यों रचा।
गांव की गलियों में अब शहनाइयों की जगह सिसकियां गूंज रही हैं। वह घर जो उमंगों का आलम था, अब करुणा का कारागार बन गया।
उत्तर प्रदेश बहराइच से प्रखर तिवारी की रिपोर्ट