
जिला संवाददाता हरिओम । मैनपुरी कस्बा बेवर में इंजीनियर राज त्रिपाठी ने 4 जून को शहीद क्रांति योद्धा शहीद गुलाब गौस खां को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उन महान क्रांतिवीरों की कुर्बानी को, जिनकी लंबी कुर्बानी की बदौलत आज हम भारत की आज़ाद हवा में सांस ले रहे हैं उनकी कुर्बानी को याद करते हुए नमन किया।
4 जून के सभी शहीदों को विनम्र श्रद्धांजलि..नमन है
उन्हीं में से एक थे गुलाम गौस खान गुलाम गौस खान का जन्म उत्तरप्रदेश के शाहजहांपुर में हुआ था। वे वहीं के रहने वाले थे। रानी लक्ष्मीबाई जिन्होंने अपने देश एवं अपनी जन्मभूमि की रक्षा के लिए अंग्रेजों का सामना किया था। उसमें उनका साथ गुलाम गौस खान एवं खुदाबक्श जैसे मुसलमान योद्धाओ ने दिया था। रानी लक्ष्मीबाई के सेना प्रमुखों में गुलाम गौस खान के अलावा दोस्त खान, खुदाबक्श, सुंदर मुन्दर, काशी बाई, लाला भाऊ बक्शी, मोती बाई, दीवान रघुनाथ सिंह और दीवान जवाहर सिंह जैसे वीर योद्धा भी थे। जिन्होंने झाँसी की लड़ाई में रानी का पूरा समर्थन किया था। गुलाम गौस खान उसी सेना के एक प्रमुख तोपची एवं कमांडर थे। जिन्होंने अंग्रेजों को किले में घुसने से रोकने में अहम भूमिका निभाई थी । झाँसी की लड़ाई के दौरान अंग्रेजों को रोकने के लिए रानी की सेना लड़ती रही और सेना ने अंग्रेजों को 2 सप्ताह तक रोक कर रखा था। जिसमे तोपची गुलाम गौस खान प्रमुख थे। जिन्होंने तोपों से अंग्रेजों को परेशान कर दिया था। ती अंग्रेज अपने इरादों में नाकाम हो रहे थे. किन्तु जब अंग्रेजों ने के एक विद्रोही के साथ मिलकर किले में घुसपैठ करनी शुरू कर दी थी गुलाम गौस खान, खुदाबक्श एवं मोती बाई तीनों ने ही मिलकर उनका सामना किया और रानी को किले से बाहर निकालने में मदद की, तभी रानी सही सलामत ग्वालियर तक पहुंच पाई।गुलाम गौस खान, मोती बाई एवं खुदाबक्श तीनों ही लड़ाई के दौरान अंग्रेजों का सामना करते करते 4 जून 1858 को शहीद हो गए। झाँसी के किले के अंदर ही गुलाम गौस खान की कब्र बनाई गई, जहाँ लोग • आज भी उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर उन्हें याद करने के लिए जाते हैं।