
प्रखंड क्षेत्र के धनौती पंचायत अंतर्गत सरसा गाँव में आयोजित ग्यारह दिवसीय श्री रूद्र महायज्ञ के नौवें दिन पूज्य दुर्गेश तिवारी के द्वारा कथा वाचन के दौरान श्रद्धालुओं की उमड़ी भीड़। बताते चलें कि ग्यारह दिवसीय श्री रूद्र महा यज्ञ के नौवें दिन की गुरूवार की रात्रि पूज्य दुर्गेश चौबे ने बताया कि जी महाराज ने उपस्थित श्रद्धालुओं को बताया कि, संसार के समस्त जीवो में मानव की श्रेष्ठता सर्वमान्य है।उन्होंने कहा कि यदि हमारे विचार श्रेष्ठ होंगे तो हम उन्नति के शिखर पर पहुंच सकते हैं परंतु यदि हमारे विचार सही नहीं होंगे तो पतन का रास्ता निश्चित है। कहा कि मनुष्य को अपने कर्मों के प्रति सदैव सावधान रहना चाहिए शुभ एवं पुण्य कर्मों में निरत रहना चाहिए। कहा कि जो जैसा करता है उसे वैसा ही फल प्राप्त होता है, इसलिए हम सभी को सत्कर्म करते हुए की प्रभु की आराधना करनी चाहिए। कथा वाचन के दौरान राम कथा का अमृत पान करने हेतु क्षेत्र के सैकड़ों श्रद्धालुगण उपस्थित हुए। इस दौरान पूरे कस्बे का माहौल भक्ति में हो गया, वहीं इस रुद्र महायज्ञ को लेकर यज्ञ स्थल पर श्रद्धालुओं की भीड़ को बढ़ने लगी है। सोमवार को रुद्र महायज्ञ के नौवें दिन पूजा अर्चना व यज्ञ मंडप की परिक्रमा करने के लिए भी भारी संख्या में श्रद्धालु उमड़े। श्रद्धालु जय शिव, जय हनुमान, जय श्रीराम, जय माता दी आदि के जयकारे लगाते हुए यज्ञ मंडप की परिक्रमा कर रहे थे। वहीं आचार्यों द्वारा वैदिक मंत्रोंच्चारण की गूंज से पूरा वातावरण भक्तिमय हो गया था।
मानव कल्याण के लिए रुद्र महायज्ञ का आयोजन जरूरी है। यज्ञ से मानव जीवन में लाभ मिलता है। यज्ञ हर तबके को आपस में जोड़ने का काम करता है। गांव, समाज, आपसी सद्भाव, आत्मा परमात्मा, दोस्त मित्र, हित कुटुंब सभी को एक सूत्र में पिरोने का कर्म ही यज्ञ होता है।उन्होंने कहा कि यज्ञ में पड़ने वाले आहूति से वातावरण शुद्ध होता है। यज्ञ से सामाजिक समरसता कायम होती है। द्वापर युग में सामाजिक समरसता बनाने के उद्देश्य से भगवान श्रीराम ने महायज्ञ किया था। उन्होंने कहा कि यज्ञ करने से वायुमंडल एवं पर्यावरण में शुद्धता आती है।यज्ञ को वेदों में मनुष्य के समस्त अभावों एवं बाधाओं को दूर करने वाला साधन माना गया है। यजुर्वेद में कहा गया है कि जो यज्ञ को त्यागता है, उसे परमात्मा त्याग देते हैं। यज्ञ के द्वारा ही साधारण मनुष्य देव योनि प्राप्त करते हैं और स्वर्ग के अधिकारी बनते हैं। यज्ञ में जलती अग्नि का मुख ईश्वर का मुख होता है। यज्ञ की आहुति भगवान का भोजन होता है, यज्ञ में जो कुछ भी आहुति दिया जाता है वह सीधे भगवान का मुख में चला जाता है ।