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जगन्नाथ पुरी रथयात्रा 27 जून से होगी प्रारंभ, धूमधाम से निकाली जाती है रथयात्रा

सागर। वंदे भारत लाईव टीवी न्यूज रिपोर्टर सुशील द्विवेदी। भारत के सबसे प्रमुख और विशेष त्यौहारों में से एक मानी जाती है जगन्नाथ रथ यात्रा, जिसे रथ त्यौहार और श्री गुंडीचा यात्रा के नाम से भी जाना जाता है। हिन्दू पंचाग के अनुसार प्रतिवर्ष आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को उड़ीसा के पुरी शहर में जगन्नाथ रथ यात्रा बड़ी ही धूमधाम से निकाली जाती है। इस वर्ष जगन्नाथ रथ यात्रा 27 जून शुक्रवार से प्रारंभ होगी। यह यात्रा भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहिन सुभद्रा के भव्य रथों पर नगर भ्रमण की एक अद्भुत धार्मिक परम्परा है। इस दिन भगवान जगन्नाथ अपने मंदिर से बाहर निकलकर, अपनी मौसी के मंदिर ष्गुंडीचाष् की यात्रा करते हैं। इस यात्रा का उद्देश्य भक्तों को भगवान के दर्शन का अवसर देना है, विशेषकर उन भक्तों को, जो मंदिर के गर्भगृह में नहीं जा सकते।
पुरी का जगन्नाथ मंदिर चार धामों में से एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है। इस दौरान भगवान जगन्नाथ, अपने भाई बलभद्र और बहिन सुभद्रा के साथ रथ पर विराजते हैं। देश-विदेश से श्रद्धालु, इस पवित्र यात्रा में सम्मिलित होने के लिए पुरी शहर आते हैं। ऐसा माना जाता है कि भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा में शामिल होने से व रथ को खींचने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। हिन्दू पंचाग के अनुसार, इस वर्ष आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि 26 जून को दोपहर 1ः24 मिनिट पर प्रारंभ होगी और तिथि का समापन 27 जून को प्रातः 11ः19 मिनिट पर होगा। संपूर्ण जगन्नाथ यात्रा का समापन 05 जुलाई 2025 को होगा, यह यात्रा 9 दिनों तक चलती है।
भगवान के तीनों स्वरूपों के लिए अलग-अलग भव्य रथ बनाये जाते हैं। भगवान जगन्नाथ का रथ जिसका नाम नंदीघोष है, उसकी ऊँचाई 45 फीट और उसके 16 पहिये रहते हैं। भगवान बलभद्र का रथ जिसका नाम तालध्वज है, उसकी ऊँचाई 44 फीट और 16 पहिये रहते हैं। माँ सुभद्रा का रथ जिसका नाम दर्पदलन है, उसकी ऊँचाई 43 फीट और 12 पहिये रहते हैं। हजारों की संख्या में श्रद्धालु इन तीनों रथों को रस्सियों से खींचते हैं। मान्यता है कि रथ खींचने से पापों का नाश होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है। रथ यात्रा के पूर्व, स्नान पूर्णिमा और रथ निर्माण का कार्य होता है। सर्वप्रथम भगवान को शाही स्नान कराया जाता है और रथ निर्माण किया जाता है। इसके पश्चात् छेरा पहरा सेवा का कार्य होता है, जिसमें पुरी शहर के गजपति राजा, रथों की सफाई करते हैं, यह सेवा भगवान के प्रति विनम्रता का प्रतीक है। प्राचीनकाल से यह परम्परा चली आ रही है, इसके दौरान उड़ीसा के महाराज सोने की झाडू से रथ की सफाई करते हैं। इस प्रक्रिया को घेरा रस्म कहा जाता है और इसके पश्चात् ही रथ यात्रा का प्रारंभ होता है। 01 जुलाई को हेरा पंचमी की रस्म की जाएगी, 04 जुलाई को रथ यात्रा गुंडीचा मंदिर से वापिस भगवान जगन्नाथ के प्रमुख मंदिर जाएगी, जिसे बहूडा कहा जाता है। इसके पश्चात् 05 जुलाई को भगवान जगन्नाथ अपने मुख्य मंदिर लौट जायेंगे, जहाँ उनका भव्य स्वागत किया जाता है। रथ यात्रा पहले प्रथम दिन से गुंडीचा मंदिर के लिए प्रस्थान करते हैं, जहाँ वे सात दिन ठहरते हैं, वापसी यात्रा को बहूडा यात्रा कहा जाता है, जो नौवें दिन होती है।
स्कंदपुराण के अनुसार भगवान जगन्नाथ की बहिन सुभद्रा ने एक दिन नगर देखने की इच्छा व्यक्त की थी। तब भगवान जगन्नाथ और बलभद्र अपने बहिन को रथ पर बिठाकर नगर दिखाने निकले। इस यात्रा के दौरान वे अपनी मौसी गुंडीचा के घर गये और वहाँ सात दिनों तक रुके, उस दिन से जगन्नाथ यात्रा की परम्परा शुरू हुई है। रथ यात्रा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि सामाजिक एकता और सांस्कृतिक उत्सव का भी प्रतीक है। इस दिन जाति, धर्म और वर्ग के भेदभाव से ऊपर उठकर सभी लोग भगवान के दर्शन और सेवा में सम्मिलित होते हैं। यह त्यौहार श्रद्धा, भक्ति और समर्पण का अनूठा संगम प्रस्तुत करता है। जगन्नाथ पुरी की रथ यात्रा भारतीय सांस्कृतिक विरासत का एक उज्जवल उदाहरण है। यह यात्रा न केवल धार्मिक महत्व रखती है, वरन् यह भी सिखाती है कि ईश्वर सर्वव्यापी हैं। इसकी भव्यता, आस्था और उल्लास से भरे दृश्य विश्व भर के श्रद्धालुओं और पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। वास्तव में रथ एक जीवन्त परम्परा है, जो आत्मा को शुद्ध करने और समाज को जोड़ने का कार्य करता है।रथ यात्रा विनम्रता, एकता, सेवा और समर्पण का प्रतीक है। हर जाति, धर्म और प्रत्येक व्यक्ति मिलकर इस आयोजन में भाग लेते हैं, यही भारत की सच्ची सुंदरता है। रथ यात्रा केवल भगवान के दर्शन ही नहीं, बल्कि आत्मिक जागरूकता और सामाजिक समरसता की यात्रा भी है। हमें इस परम्परा से जुड़कर अपने जीवन को भी एक पवित्र दिशा देनी चाहिए।

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