बीजापुर :- यह जो तस्वीर है यह अपने ही राज्य छत्तीसगढ़ राज्य के बीजापुर मुख्यालय से कुछ किलोमीटर दूर एक गांव है कन्हैयागुडा यह वही का मामला है ।जहां पुरा विश्व आदिवासी दिवस मना रहा था । वहा दोषियों, हत्यारों ने एक आदिवासी लड़की की साथ संघिन्य (बलात्कार) अपराध के साथ साथ बुरी तरह से उसकी हत्या कर दी गयी ।यह जो संटिक जानकारी है मेरे दोस्तों से पता चली तो आपके बीच रखना उचित समझा । ग्राउंड जीरो से यह मामला समझने का प्रयास करते हैं। यह बीजापुर कन्हैयागुडा गांव से लगा हुआ एक गांव कि है सरस्वती कडियाम कि जो आदिवासी हल्बा समाज की यह बेटी थी।जो रोज मर्रा के रोजी रोटी के लिए गांव में ही कार्य करती थी ,रोज की तरह 9अगस्त को यह रोपा लगाने गयी हुई थी। और सब लोग विश्व आदिवासी दिवस मना रहे थे।इसी मौके का फैदा उठाकर दोषियों ने यह वारदात को अंजाम दिया। खेत जंगलों से लगा था दोषियों ने लड़की को जंगलों में घसेटकर ले जाया गया,फिर उसके साथ दुष्कर्म (बलात्कार) किया गया। व पेड़ों से बांध दिया गया, इससे भी दोषियों का मन नहीं भरा शायद तो उसे जहां से पानी जाता है नाली उसे रस्सी से कोटली(लखडी)में बांध दिया गया।जिस दिन शेष पेज निचे है +शेष पेज – (वह लड़की रोपा लगाने के बाद यह बाजार गयी थी व बाजार से सब्जी लेकर घर लौट रही थी तभी लड़की को रोड़ पर अकेला देख दोषियों ने इसे अनजान दिया……)
तभी जिस दिन यह घटना घटी उस दिन बारिश भी ज्यादा हुई तो नाली में पानी का बहाव ज्यादा था और लड़की के शरीर में पुरी तरह पानी घुस गया था।और उसकी मौत भी घटना स्थल पर ही हो गयी थी। 9अगस्त को शाम को लड़की नहीं आयी तो परिजनों के साथ 10अगस्त को युवा प्रभाग की टीम ने पुलिस को सुचना दी व लड़की को ढुढ़ने निकल गये।और उन लोगों को यह लड़की की शरीर जंगलों में मिली बाजार के थैले सब्जी जंगलों में बिखरे मिले । लड़की को घसीटते ले जायें का निसान मिला, लड़की को पेड़ पर रस्सी से बांधने का निशान मिला तथा जो लड़की की बौडी है वो कोटली से बंधी नाली में मिली परन्तु अभी भी पुलिस इस मामला को ठंडा ही देख रही है व दोषियों को नहीं पकड़ी है ,इस तरह का घटना होने के बाद भी आदिवासी समाज चुप है । क्यों..?जिस तरह आप छत्तीसगढ़ से दुर कोलकाता में हुए दुष्कर्म के प्रति केंडल निकाल कर दोषियों को सजा फांसी मिले सरकार से लड़ते हैं उसी तरह आप छत्तीसगढ़ में अंदरूनी इलाकों पर इस आदिवासी लड़की के सहयोग में क्यों नहीं आते….? व सरकार से क्यों नहीं लड़ते..? (- अरुण नेताम धमतरी (छ.ग))
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