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कुरुक्षेत्र में स्थित है श्रीदेवी कूप भद्रकाली मंदिर हरियाणा का एकमात्र शक्तिपीठ . हर मनोकामना पूर्ण करती हैं माता..

मां दुर्गा के लिए 52 शक्ति पीठ पूरे विश्व में प्रसिद्ध है. इन्हीं शक्तिपीठ में से एक कुरुक्षेत्र में स्थित है, जिसे श्रीदेवी कूप भद्रकाली मंदिर के नाम से जाना जाता है..

कुरुक्षेत्र में झाँसा रोड पर स्थित यह शक्तिपीठ देश के 52 शक्तिपीठांे में से एक है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कनखल में राजा दक्ष की पुत्री सती ने राजा दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में अपने पति का अनादर देखकर यज्ञ कुण्ड़ में अपनी देह का त्याग किया। सती के बलिदान से क्षुब्ध होकर भगवान शिव सती की मृत देह को कंधे पर लेकर उन्मत्त भाव से तीनों लोकों में घूमने लगे। शिव की यह दशा देखकर भगवान विष्णु ने अपने चक्र से सती के शरीर को 52 टुकड़ों में विभाजित कर दिया। जहाँ-जहाँ भी सती की देह का अंश गिरा वह स्थान शक्तिपीठ के रूप में स्थापित हुआ। कहा जाता है कि कुरुक्षेत्र में सती का दायाँ गुल्फ (टखना) गिरा था। कुरुक्षेत्र के इस शक्तिपीठ की अधिष्ठात्री देवी सावित्री तथा उसके भैरव स्थाणु कहलाते हैं। प्रचलित मान्यताओं के अनुसार सती का दायाँ गुल्फ इस मन्दिर में स्थित देवीकूप में गिरा था।

कहा जाता है कि महाभारत युद्ध से पूर्व अर्जुन ने यहाँ भगवान श्रीकृष्ण के साथ भगवती जगदम्बा की पूजा-अर्चना की थी। भगवती का स्तुतिगान करते हुए अर्जुन ने इस अवसर पर सिद्ध सेनानी, मन्दर वासिनी, कुमारी, काली, कपाली, कृष्ण पिंगला, भद्रकाली, महाकाली, चण्डी, तारणी और वरवर्णिनी आदि नामों से भगवती का आह्वान किया था।
कहा जाता है कि महाभारत युद्ध में विजय के पश्चात पाण्डवों ने पुनः इस पीठ पर आकर भगवती जगदम्बा की आराधना कर अपने श्रेष्ठ अश्व माँ भद्रकाली को भेंट किये थे। आज भी अपनी मनोकामनाओं के पूर्ण होने पर भक्तजन यहाँ मिट्टी एवं धातु से बने हुए घोडे़ माँ भद्रकाली को अर्पित करते हंै।

हरियाणा का एकमात्र शक्तिपीठ श्रीदेवी कूप मां भद्रकाली मंदिर:

पौराणिक कथाओं में बताया गया है कि माता देवी सती के पिता दक्षेस्वर के द्वारा एक यज्ञ किया गया था, उस यज्ञ में माता सती के पिता ने सभी देवी देवताओं को आमंत्रित किया था लेकिन माता सती के पति और महादेव भोलेनाथ को इसमें आमंत्रित नहीं किया गया. माता सती अपने घर पहुंचीं और उन्होंने देखा कि यज्ञ में सभी आमंत्रित हैं, लेकिन उनके पति महादेव यहां आमंत्रित नहीं किए गए हैं. ऐसे में उन्होंने इस बात में अपने पति महादेव का अपमान समझा और माता सती ने उस यज्ञ कुंड में ही प्राण त्याग दिए थे. भगवान भोलेनाथ को जैसे ही इस बात की जानकारी मिली तो वह वहां पर पहुंचे और उन्होंने माता सती के मृत शरीर को लेकर क्रोध में आकर ब्रह्मांड के चक्कर लगाने शुरू कर दिए, जिससे पूरे ब्रह्मांड में उथल-पुथल मच गई. जब भगवान भोलेनाथ का गुस्सा शांत करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के 52 भाग कर दिए और माता सती के शरीर के 52 भाग जहां भी जाकर गिरे उसे शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता है.


कुरुक्षेत्र में गिरा था माता सती के दाएं पैर का टखना

जैसे ही भगवान विष्णु ने माता सती के शरीर के सुदर्शन चक्र से 52 भाग किए थे, उनके दाएं पैर का टखना कुरुक्षेत्र में आगे गिरा था. इसके बाद यहां पर शक्तिपीठ स्थापित हो गया, जो श्री देवी कूप मां भद्रकाली मंदिर के नाम से जाना जाता है. 52 शक्तिपीठ सभी माता सती के अलग-अलग नाम से जाने जाते हैं और प्रसिद्ध है. कुरुक्षेत्र का मां भद्रकाली शक्तिपीठ मंदिर महादेवी काली को समर्पित है. शक्तिपीठ मंदिर के अंदर मां काली की एक मूर्ति स्थापित है. वहीं, मंदिर के प्रवेश द्वार के अंदर जाते ही सामने एक बहुत कमल का फूल है. उस कमल के फूल पर मां सती के दाएं पैर का टखना स्थापित किया गया है. यह सफेद रंग के संगमरमर के पत्थर से बनाया गया है..


महाभारत काल से मन्नत पूरी होने पर घोड़े चढ़ाने की है प्रथा:

मंदिर के पीठाधीश पंडित रामपाल शर्मा ने बताया “इस मंदिर का इतिहास महाभारत काल से पहले का है. मां भद्रकाली मंदिर से महाभारत काल से जुड़े कहानी किस्से भी है. जब कुरुक्षेत्र की भूमि पर महाभारत का युद्ध हुआ था, उस समय भगवान श्री कृष्ण के कहने पर भगवान श्री कृष्ण के साथ पांडव माता रानी से इस युद्ध में विजय होने के लिए यहां पर मन्नत मांगने के लिए आए थे और जैसे ही उन्होंने महाभारत के युद्ध में विजय प्राप्त की उसके बाद उन्होंने यहां पर घोड़े का दान किया था. मान्यता है कि तब से ही एक प्रथा चली आ रही है कि जो भी माता रानी का भक्ति यहां पर मन्नत मांगने के लिए आता है और जब उसकी मन्नत पूरी होती है तो वह माता रानी को प्रसन्न करने के लिए यहां पर मिट्टी, पत्थर, सोना, चांदी कई प्रकार की धातुओं के घोड़े चढ़ाता है.”

भगवान श्री कृष्ण और बलराम का भद्रकाली शक्तिपीठ मंदिर में हुआ था मुंडन!:

मान्यताओं के अनुसार, भगवान श्री कृष्ण कुरुक्षेत्र की भूमि पर महाभारत का युद्ध होने से पहले ही कई बार आ चुके थे. मान्यताओं के अनुसार भगवान श्री कृष्ण और उनके भाई बलराम का मुंडन संस्कार मां भद्रकाली मंदिर में स्थित बरगद के पेड़ के नीचे किया गया था. महाभारत काल के समय के कई ऐसे वट वृक्ष आज भी कुरुक्षेत्र की भूमि पर मौजूद है. वहीं, मां भद्रकाली के मंदिर में जिस वटवृक्ष के नीचे भगवान श्री कृष्ण और बलराम का मुंडन हुआ था वह वृक्ष आज भी मंदिर के प्रांगण में है. मां भद्रकाली मंदिर की एक खास बात और यह है कि यह मंदिर सरस्वती नदी के तट पर स्थित है.कुरुक्षेत्र के इसी तीर्थ पर भगवान श्रीकृष्ण एवं बलराम का मुण्डन संस्कार उनके कुलगुरू गर्गाचार्य की उपस्थिति में सम्पन्न हुआ था। आज भी यह प्रथा निरन्तर जारी है। देश के अनेक भागों से आए अनेक श्रद्धालु आज भी इस पावन पीठ पर अपने बालकों के मुण्डन संस्कार सम्पन्न करवाते हैं। सरस्वती नदी के प्राचीन तट पर स्थित इस तीर्थ के निकट से कई पुरातात्त्विक संस्कृतियों के निक्षेप मिले हैं जिससे इस तीर्थ की प्राचीनता सिद्ध होती है।

देश के राष्ट्रपति और अन्य कई बड़े नेता भी आते हैं माता रानी के दर्शन करने: माता भद्रकाली मंदिर के पीठाधीश ने बताया कि यहां सिर्फ माता रानी के दर्शन करने के लिए आम लोग नहीं देश के खास लोग भी देश विदेश से माता रानी के दर्शन करने के लिए आते हैं. यहां पर कई पूर्व राष्ट्रपति माता रानी के दर्शन कर चुके हैं. मौजूदा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू भी दर्शन करने आ चुकी हैं. वहीं, देश के गृहमंत्री अमित शाह भी यहां पर माता रानी के दर्शन करने के लिए पहुंचे थे. माता रानी के दर्शन करने के लिए यहां पर देश-विदेश से श्रद्धालु आते हैं और अपने घर में सुख समृद्धि की मनोकामना मांगते हैं.

हर मनोकामना पूर्ण करती हैं माता:

एक अन्य श्रद्धालु अलका शर्मा ने कहा कि माता रानी के दरबार में वह पिछले काफी वर्षों से आ रही हैं, जिसके चलते उनके घर माता रानी की कृपा बनी रहती है और घर में सुख समृद्धि आती है. उन्होंने कहा कि माता रानी से जो भी मनोकामना मांगते हैं वह सभी पूरी होती है. वैसे तो 12 के 12 महीने माता रानी के दर्शन करने के लिए श्रद्धालु दूरदराज से आते हैं, लेकिन नवरात्रि के दिनों में और शनिवार के दिन पर विशेष तौर पर भारी संख्या में माता रानी के भक्त उसके दर्शन करने के लिए आते हैं. श्रद्धालुओं का मानना है कि यहां पर जो भी मन्नत मांगते हैं, वह सभी पूरी होती है साथ ही माता रानी की कृपा उन पर बनी रहती है.

परंपरा के तौर पर मंदिर में रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाता था,द्रौपदी ने भगवान श्री कृष्ण को अपना चीर बांधा

लेकिन पिछले 25-30 वर्षों से यह त्योहार सिर्फ मंदिर के सदस्यों तक ही सीमित था। इस बार भारत देश की, कुरुक्षेत्र वासियों की, समस्त भाईचारे व एकता बनाए रखने के लिए इस कार्यक्रम को सार्वजनिक रूप से, धार्मिक मान्यताओं को सम्मान देते हुए , लोगों की भागीदारी करके मनाया जाएगा। सभी भक्त मां भद्राकाली को रक्षा सूत्र बांध कर अपनी व परिवार की रक्षा का दायित्व मां भद्रकाली को सौपेंगे। पीठाध्यक्ष ने बताया कि कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार की जा चुकी है, जिसे कुछ दिनों में सार्वजनिक कर दिया जाएगा। उन्होंने बताया कि वैसे तो रक्षा बंधन की परंपरा सनातन काल से जारी है, लेकिन महाभारत काल में भी इसका एक विशेष वर्णन मिलता है, जब द्रौपदी ने भगवान श्री कृष्ण को अपना चीर बांधा था और इसी कारण कुरुक्षेत्र में इस त्योहार को मनाने का एक विशेष महत्व हो जाता है ।

पीठाध्यक्ष सतपाल शर्मा ने बताया कि रक्षाबंधन के शुभ पर्व का इतिहास देवासुर संग्राम के समय से महत्वपूर्ण रूप से देखा जा सकता है। वह समय जब सभी देवता और राक्षस स्वर्ग में अपना वर्चस्व स्थापित करने की योजना बना रहे थे। स्वर्गलोक पर असुरों का आक्रमण बहुत ही भयानक था और स्वर्ग में सभी देवताओं की हार के बाद, वे सभी भगवान शिव के पास गए और मदद की गुहार लगाई। यह श्रावण पूर्णिमा थी।

उस समय देवी पार्वती ने रक्षा सूत्र देवताओं को उनका मनोबल बढ़ाने व उनकी शक्तियों को जागृत करने के लिए बांधा था और विजयश्री का आशीर्वाद दिया। जिसके बाद सभी देवताओं ने विजय प्राप्त की थी। सभी देवता माता पार्वती को रक्षा धागा बांधने के लिए धन्यवाद देने के लिए गए। उस दिन घोषणा की गई की हर कोई पूर्णिमा दिवस को रक्षाबंधन के त्योहार के रूप में मनाएगा। इसीलिए रक्षाबंधन का त्योहार श्रावण माह की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। सार्वजनिक रक्षा बंधन का कार्यक्रम शक्तिपीठ जाएगा और मां भद्रकाली को रक्षासूत्र सौंप कर एक दूसरे के कल्याण एवं उन्नति की कामना की जाएगी।

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Vishal Leel

Sr Media person & Digital Creator

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