
दिनांक : 11/03/2025
हिरे महाविद्यालय में ” वन नेशन वन इलेक्शन भारतीय लोकतंत्र का पूरक है” इस विषय पर आंतरमहाविद्यालयीन राष्ट्रीय वाद-विवाद प्रतियोगिता की शुरुवात हुई।
*वैचारिक संस्कृति को प्रवाहित रखने में वाद-विवाद एक महत्वपूर्ण तत्व है।*
*वाद-विवाद से वैचारिक संस्कृति का उदय होता है।*
*वाद-विवाद सच्चे वैचारिक संवाद का सेतु है*
– डॉ. नीरजा, सुप्रसिद्ध कवयित्री
नासिक (पंचवटी संवाददाता) : वाद-विवाद एक बहुत ही महत्वपूर्ण कारक है, क्योंकि वैचारिक संस्कृति बहस से उभरती है। इसलिए, संस्कृति को गतिशील बनाए रखने के लिए बहस और उससे उत्पन्न संवाद समय की मांग है। वाद-विवाद प्रतियोगिताओं से छात्रों में तर्कसंगत सोच विकसित होती है।
तर्क के माध्यम से संवाद स्थापित करना वाद-विवाद कहलाता है। उन्होंने खेद व्यक्त किया कि युवाओं की वर्तमान पीढ़ी बेचैन अवस्था में है, आज के छात्र सोशल मीडिया के अत्याधिक आधीन हो गए हैं और गलत दिशा में जा रहे हैं। छात्रों को जितना संभव हो सके उतना पढ़कर देश के इतिहास, भूगोल और संस्कृति के बारे में जानने की जरूरत है। उन्होंने यह भी कहा कि भावुक होकर आत्महत्या करने के बजाय उन्हें पीछे हट जाना चाहिए और दुश्मन के लिए उचित तैयारी करनी चाहिए तथा उससे लड़ना चाहिए। इसीलिए बहस करते समय भावनाएं महत्वपूर्ण नहीं होतीं, बल्कि विचारधारा को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
वन नेशन वन इलेक्शन भारतीय लोकतंत्र का पूरक है, जो प्रतियोगिता का एक बहुत ही ज्वलंत विषय है। मनुष्य होने के नाते हर किसी के मन में कई सवाल होते हैं। लेकिन हमें प्रश्न के दोनों पक्षों को समझना होगा, चाहे वह सही हो या गलत। वाद-विवाद में वैचारिक मतभेद होते हैं, लेकिन वाद-विवाद की शक्ति तभी बची रहती है जब उसे संवाद में बदल दिया जाए। सोशल मीडिया के युग में ऐसी प्रतियोगिताएं स्वस्थ और मजबूत छात्रों का निर्माण करने का काम करती हैं। वर्तमान में देश में शिक्षा और स्वास्थ्य पर खर्च कम हो रहा है। जो देश शिक्षा और स्वास्थ्य पर अधिक खर्च करते हैं वे विकासशील राष्ट्र हैं। “हमें अपने वित्तीय बजट की समीक्षा करनी चाहिए।” ऐसा प्रसिद्ध कवयित्री डॉ. नीरजा इन्होने उद्घाटन पर अपने विचार व्यक्त किए। वह महात्मा गांधी विद्यामंदिर द्वारा संचलित लोकनेते व्यंकटराव हिरे महाविद्यालय में कर्मवीर भाऊसाहेब हिरे अंतर महाविद्यालय राष्ट्रीय वाद-विवाद प्रतियोगिता के उद्घाटन अवसर पर बोल रहे थे।
महात्मा गांधी विद्यामंदिर संस्था के उपाध्यक्ष डॉ. हरीश आडके कार्यक्रम के अध्यक्ष थे | मुख्य अतिथि संस्था के विश्वस्त डॉ. संपदा प्रशांत हिरे, संयुक्त सचिव डॉ.व्ही.एस. मोरे, विश्वस्त श्री. राजेश शिंदे और प्राचार्य डॉ. बी. एस. जगदाळे इस अवसर पर उपस्थित थे।
इस कार्यक्रम के अवसर पर संस्था के विश्वस्त डॉ. संपदा प्रशांत हिरे इन्होने वाद-विवाद प्रतियोगिता की ५१ साल पुरानी परंपरा का जिक्र करते हुए अपने महाविद्यालय जीवन की कुछ यादें ताजा कीं। हर साल प्रतियोगिता का विषय दादा साहब के माध्यम से तय किया जाता है, जो भी उस समय का ज्वलंत विषय होता है, जिस पर कोई बात करने की हिम्मत नहीं करता। ५२ वर्षों से चल रही इस प्रतियोगिता के ज्ञानयज्ञ में दादा साहब एवं तत्कालीन प्राचार्य का श्रेय भी उजागर हुआ। उन्होंने कहा कि वाद-विवाद विचारों का मंथन है। इस विचार सागर मंथन से हमें निश्चित रूप से वैचारिक अमृत मिलेगा तथा नई अवधारणाएं और विचार सामने आएंगे। उन्होंने सभी प्रतियोगी छात्रों और महाविद्यालय को शुभकामनाएं दीं।
उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता महात्मा गांधी विद्यामंदिर के उपाध्यक्ष डॉ. हरीश आडके थे. अपने अध्यक्षीय भाषण में उन्होंने लोकतंत्र में विचारों के महत्व को समझाया तथा बताया कि किस प्रकार आज तक आयोजित चुनावों में समय के साथ बदलाव आया है। इसी प्रकार, उन्होंने फ्रेंच और रशियन क्रांतियों के इतिहास पर विचार किया और कहा कि इन आंदोलनों ने समानता की अवधारणा की वकालत की थी। उन्होंने प्रस्तावित के ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ पहल पर भी ध्यान केंद्रित किया और कहा कि इस पहल का उद्देश्य पूरे देश में चुनावी प्रक्रिया को सरल और एकरूप बनाना है।
इस कार्यक्रम के अवसर पर संस्था के विश्वस्त प्राचार्य डॉ. बी. एस. जगदाले इन्होने स्वागत और प्रास्ताविक किया तथा महाविद्यालय की प्रगति की समीक्षा की तथा दो शैक्षणिक संस्थाओं महात्मा गांधी विद्यामंदिर और आदिवासी सेवा समिति के विकास का विवरण दिया। उन्होंने आगे कहा कि इन संस्थानों की स्थापना जनता को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से की गई है। अपने भाषण में उन्होंने इस प्रतिष्ठित वाद-विवाद प्रतियोगिता के उद्देश्यों पर भी प्रकाश डाला।
वाद-विवाद प्रतियोगिता समन्वयक डॉ. राकेश पाटिल इन्होने प्रास्ताविक में वाद-विवाद प्रतियोगिता के नियमों, शर्तों और निबंधनों के बारे में जानकारी दी। कार्यक्रम का संचालन डॉ. मनीषा गायकवाड़ और प्रा. दीप्ती देवरे इन्होने किया। प्रतियोगिता के सह-समन्वयक डॉ. प्रकाश शेवाले इन्होने कार्यक्रम के लिए आभार व्यक्त किया। संस्था के समन्वयक और सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय के सिनेट सदस्य डॉ. अपूर्व हिरे और महाविद्यालय विकास समिति की अध्यक्षा डॉ. योगिता हिरे इन्होने मार्गदर्शन में वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। इस अवसर पर संस्था के विश्वस्त डॉ. प्रदीप जी.एल. विश्वस्त एवं कुलसचिव श्री. श्यामकांत भंडारी, प्राचार्य डॉ. संतोष तांबे. इस अवसर पर संस्था के पदाधिकारी, विभिन्न महाविद्यालयों के प्राचार्य, विभागप्रमुख, प्राध्यापक, पत्रकार, शिक्षक, शिक्षणेत्तर कर्मचारी एवं प्रतियोगी छात्र उपस्थित थे।
इस दो दिवसीय राष्ट्रीय स्तरीय वाद-विवाद प्रतियोगिता का समापन एवं पुरस्कार समारोह १२ मार्च २०२५ को होगा।