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मंडला MP हेमंत नायक
- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मंडला सम्पर्क विभाग ने किया व्याख्यान कार्यक्रम का आयोजन
मण्डला न्यूज़- शनिवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मंडला सम्पर्क विभाग द्वारा व्याख्यान कार्यक्रम का आयोजन किया गया। सरदार पटैल कॉलेज डिंडौरी रोड खैरी में आयोजित इस कार्यक्रम में सर्वप्रथम भारत माता एवं देवी अहिल्याबाई होल्कर के तैल्यचित्र पर माल्यार्पण करते हुए नमन किया गया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में एचपी झारिया भा.व.से. सेवानिवृत्त वनमंडल अधिकारी एवं मुख्यवक्ता के रूप में डॉ. पवन स्थापक निदेशक देवजी नेत्रालय जबलपुर के साथ हीरानंद चन्द्रवंशी जिला संघचालक मंचासीन रहे। यहां पर रितेश अग्रवाल विभाग संपर्क प्रमुख द्वारा संघ के मुख्य उद्देश्य राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ राष्ट्र के सांस्कृतिक, सामाजिक, धार्मिक एवं आर्थिक पुनरूत्थान के बारे में बताया गया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि एचपी झारिया ने कहा कि अहिल्याबाई होल्कर साधारण से किसान के घर पैदा हुई एक महिला थी जिन्होंने सदैव अपने राज्य और वहां के लोगों के हित में ही कार्य किया। उनके कार्य की प्रणाली बहुत ही सुगम एवं सरल है अर्थात इन्होंने अपने राज्य के लोगों के साथ बड़े ही प्रेम पूर्वक एवं दया के साथ व्यवहार किया। अहिल्याबाई होल्कर के इतिहास के बारे में इस ब्लॉग में हम आपको उनके बारे में बताएंगे। उन्होंने कई युद्धों में अपनी सेना का नेतृत्व किया और हाथी पर सवार होकर वीरता के साथ लड़ीं। वे मालवा प्रांत की महारानी थी। अहिल्याबाई होल्कर ने समाज की सेवा के लिए अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया। मुख्य वक्ता डॉ. पवन स्थापक ने कहा कि महारानी अहिल्याबाई की पहचान एक विनम्र एवं उदार शासक के रुप में थी। उनके ह्रदय में जरूरमदों, गरीबों और असहाय व्यक्ति के लिए दया और परोपकार की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी। उन्होंने समाज सेवा के लिए खुद को पूरी तरह समर्पित कर दिया था।
अहिल्याबाई हमेशा अपनी प्रजा और गरीबों की भलाई के बारे में सोचती रहती थी इसके साथ ही वे गरीबों और निर्धनों की संभव मदद के लिए हमेशा तत्पर रहती थी। उन्होंने समाज में विधवा महिलाओं की स्थिति पर भी खासा काम किया और उनके लिए उस वक्त बनाए गए कानून में बदलाव भी किया था। दरअसल अहिल्याबाई के मराठा प्रांत का शासन संभालने से पहले यह कानून था कि अगर कोई महिला विधवा हो जाए और उसका पुत्र न हो तो उसकी पूरी संपत्ति सरकारी खजाना या फिर राजकोष में जमा कर दी जाती थी लेकिन अहिल्याबाई ने इस कानून को बदलकर विधवा महिला को अपनी पति की संपत्ति लेने का हकदार बनाया। इसके अलावा उन्होंने महिला शिक्षा पर भी खासा जोर दिया। अपने जीवन में तमाम परेशानियां झेलने के बाद जिस तरह महारानी अहिल्याबाई ने अपनी अदम्य नारी शक्ति का इस्तेमाल किया था वो काफी प्रशंसनीय है। अहिल्याबाई कई महिलाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं। अहिल्याबाई होल्कर का जन्म महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले के चौड़ी नामक गाँव में मनकोजी शिंदे के घर सन् 1725 ई। में हुआ था। साधारण शिक्षित अहिल्याबाई 10 वर्ष की अल्पायु में ही मालवा में इतिहासकार ई. मार्सडेन के अनुसार होल्कर वंशीय राज्य के संस्थापक मल्हारराव होल्कर के पुत्र खण्डेराव के साथ परिणय सूत्र में बंध गई थीं। अपनी कर्तव्यनिष्ठा से उन्होंने सास-ससुर, पति व अन्य सम्बन्धियों के हृदयों को जीत लिया। समयोपरांत एक पुत्र, एक पुत्री की माँ बनीं।अभी यौवनावस्था की दहलीज पर ही थीं।
कि उनकी 29 वर्ष की आयु में पति का देहांत हो गया।सन् 1766 ई. में वीरवर ससुर मल्हारराव भी चल बसे। अहिल्याबाई होल्कर के जीवन से एक महान साया उठ गया। शासन की बागडोर संभालनी पड़ी। वह एक सामान्य से किसान की पुत्री थी। उनके पिता मान्कोजी शिन्दे के एक सामान्य किसान थे। सादगी और घनिष्ठता के साथ जीवन व्यतीत करने वाले मनकोजी की अहिल्याबाई एकमात्र अर्थात इकलौती पुत्री थी। अहिल्याबाई बचपन के समय में सीधी साधी और सरल ग्रामीण कन्या थी। अहिल्याबाई होल्कर भगवान में विश्वास रखने वाली औरत थी और वह प्रतिदिन शिवजी के मंदिर पूजन आदि करने आती थी। इस कार्यक्रम का उद्देश्य अहिल्याबाई होल्कर के द्वारा उनके जीवन काल में किये गये बहु आयामी कार्यों को स्मरण करने के निमित्त व्याख्यान है। इस दौरान जिला सम्पर्क प्रमुख साजिश यादव ने कार्यक्रम के समापन पर आभार व्यक्त किया। तो वहीं नगर संपर्क प्रमुख डॉ. शेषमणी गौतम ने मंच का संचालन किया। वहीं सुश्री उर्वशी ने कार्यक्रम समापन पर वंदेमात्रम गीत गाया। इस दौरान नगर के प्रबुद्ध जन, व्यापारी, सामाजिक लोग बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।
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