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गुरु शिष्य का नाताआस्था और प्रेम का है – राष्ट्रीय संत स्वामी कमलदास जी बापू

राष्ट्रीय कथा वाचक राष्ट्रीय संत स्वामी कमलदास जी बापू ने अपने आश्रम में आज कहा है कि गुरु नानक साहेब ने एक दिन अजब वेश बनाया काले वस्त्र, हाथ में चिमटा, एकझोला, कुछ खूंखार कुत्ते, बिलकुल काल भैरव से बनकर करतारपुर नगर से बाहर की तरफ जाने लगे

अलवर: रामधाम आश्रम शिवरामपुर जिला चित्रकूट उत्तर प्रदेश निवासी श्री शिवमहा पुराण कथा के राष्ट्रीय कथा वाचक राष्ट्रीय संत स्वामी कमलदास जी बापू ने अपने आश्रम में आज कहा है कि गुरु नानक साहेब ने एक दिन अजब वेश बनाया काले वस्त्र, हाथ में चिमटा, एकझोला, कुछ खूंखार कुत्ते, बिलकुल काल भैरव से बनकर करतारपुर नगर से बाहर की तरफ जाने लगे।उनका अनुसरण करते हुए सारी_संगत भी साथ ही चल पड़ी। कुछ दूर चल कर गुरु नानक देव जी ने मुड़ कर देखा व अपने झोले में हाथ डाला और सोने_के_सिक्के निकाले और संगत की तरफ उछाल दिए और आगे बढ़ गए।कुछ लोग वो सिक्के इक्कठे करने लग गए और वहीं रुक गए। गुरु नानक आगे चले गए, फिर कुछ दूर जा कर झोले से हीरे निकाले और संगत की तरफ

फेंके। फिर कुछ आगे जा कर रत्न फेंके। फिर कुछ आगे जा कर पन्ने ।

हर बार कुछ ना कुछ लोग संगत से कम होते गए ।जब कुछ लोग ही गुरु साहब के पीछे रह गए तो महाराज ने उन पर खुंख़ार कुत्ते छोड़ दिए।अब सब लोग भाग गए बस दो सिख रह गए। भाई लहणा और बाबा बुढ़ा जी।अब गुरु नानक साहेब ने उनको चिमटे से पीटना शुरू कर दिया पर वो मौन रह कर मार खाते रहे। गुरु नानक आगे चल पड़े। दोनों फिर पीछे चल पड़े।

गुरु नानक साहब ने बाबा बुढ़ा जी को रुकने का इशारा किया तो वो वही हाथ जोड़ कर रुक गए।

गुरु नानक साहेब जी ने कहा – “लहणे देख सारे मुझे छोड़ कर चले गए मेरा सबसे बड़ा सेवक बुढ़ा भी रुक गया तूँ क्यों नही जाता ??”भाई लहणे ने कहा :- “सतगुरु जिनको आप से सन्तान के वर की आस थी वो मुरादे पा कर मुड़ गए, किनी ने सोने को चाह थी ले कर रूक गए, हीरे की चाह वाला हीरे लेके रुक गया, कोई आपकी रजा में छुपे भले को नही देख पाया और आप के दिए दुख से डर के चला गया, किसी को आप जी ने रुकने का इशारा कर दिया तो वो आप के हुक्म में रुक गया”। लेकिन दाता

मैं कहाँ जाऊँ ,,,

मेरा कुटम्ब भी तूँ ,,,

मेरी ओट भी तूँ ,,,

मेरा आसरा भी तूँ ,,,

मेरा बल भी तूँ ,,,

मेरी बुद्धि भी तूँ ,,,

मेरा धन भी तूँ ,,,

मैं तो आप के बिना अपने जीवन की कलपना भी नही कर सकता।गुरु नानक साहब नें जब ये सुना तो कहा – “लहणे जब तेरा सब कुछ मैं हूँ तो ठीक है ।वहां जो वो एक मुर्दा शरीर पड़ा है जा वो मुर्दा खा कर आ।

  • “भाई लहणे उठ कर उस मुर्दे के निकट गए और बैठ गए। गुरु नानक जी बोले – लहणे बैठा क्यों है मुर्दा खा। भाई लहणे ने हाथ जोड़ कर कहा:-“सतगुरु कहाँ से खाना शुरू करू पैर की तरफ से या सिर की तरफ से”हुकुम हुआ सिर की तरफ से खा.। भाई लहणे ने जब कफ़न हटाया तो वहाँ कोई मुर्दा था ही नही। गुरु नानक साहब दौड़ कर आए और भाई लहणे को गले से लगा लिया और कहा भाई लहणे तूने सतगुरु को अपना सब कुछ माना है! मैं तेरी सेवा से धन्य हुआ। आज तू मेरे अंग लग जा।
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