A2Z सभी खबर सभी जिले की
Trending

कूटनीति की परछाइयों में भारत की विदेश नीति – एक पराजित नैरेटिव

कूटनीति की परछाइयों में भारत की विदेश नीति – एक पराजित नैरेटिव

           प्रेस विज्ञप्ति 
         लखनऊ उत्तरप्रदेश 

कूटनीति की परछाइयों में भारत की विदेश नीति – एक पराजित नैरेटिव

भारत ने पिछले एक दशक में अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी उपस्थिति को प्रभावशाली बनाने के लिए भरसक प्रयास किए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नेतृत्व शैली ने “वसुधैव कुटुम्बकम्” को वैश्विक मंचों पर बार-बार दोहराया है, लेकिन हाल की कुछ घटनाएं यह दर्शाती हैं कि भारत की विदेश नीति आज पुनरावलोकन और आत्मचिंतन की मांग कर रही है। भूराजनीतिक समीकरण, रणनीतिक साझेदारियों की दिशा, कूटनीतिक संवादों का स्वरूप और soft power की साख — इन सभी स्तरों पर हालिया घटनाएं यह संकेत दे रही हैं कि भारत की स्थिति मजबूत नहीं, बल्कि असमंजसपूर्ण है।

  1. एडीबी और पाकिस्तान: भारत की विफल कूटनीति

जब एशियन डेवलपमेंट बैंक (ADB) ने पाकिस्तान को ₹668 करोड़ की आर्थिक सहायता दी, वह भी प्रधानमंत्री मोदी और एडीबी अध्यक्ष मसातो कांडा की मुलाकात के दो दिन बाद, तो यह सिर्फ एक वित्तीय निर्णय नहीं था — यह एक कूटनीतिक संदेश था। भारत ने यह प्रयास किया था कि पाकिस्तान को आर्थिक सहायता न दी जाए, जिसे वह आतंकवाद पोषण के लिए इस्तेमाल कर सकता है। लेकिन यह मांग न केवल अनसुनी रह गई, बल्कि इसके तुरंत बाद सहायता की घोषणा हुई।

क्या यह महज़ संयोग था, या भारत की अंतरराष्ट्रीय साख को लेकर संस्थाओं में असंवेदनशीलता? भारत की यह कोशिश कि ADB भारत के हितों को प्राथमिकता दे, असफल रही। इससे भारत की multilateral diplomacy की कमजोरी उजागर हुई।

  1. IMF और FATF: वैश्विक मंचों पर भारतीय दबाव की सीमाएं

IMF पहले ही पाकिस्तान को बेलआउट पैकेज दे चुका है। इसके बाद FATF ने पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट से बाहर कर दिया। इन दोनों निर्णयों में भारत की ओर से सक्रिय लॉबिंग थी — लेकिन नतीजा भारत के अनुकूल नहीं रहा।

FATF में पश्चिमी देशों और मुस्लिम बहुल देशों के ब्लॉक ने पाकिस्तान के “पर्याप्त सुधार” को स्वीकार किया। भारत के लिए यह केवल तकनीकी नहीं, राजनैतिक हार थी। इसका अर्थ यह था कि भारत आतंकवाद को वैश्विक मुद्दा बनाने में कुछ हद तक असफल रहा है, जबकि यह उसके विदेश नीति के केंद्रीय उद्देश्यों में से एक रहा है।

  1. प्रतिनिधिमंडलों की विदेश यात्राएं: रणनीति या प्रचारवाद?

33 देशों में भेजे गए भारतीय प्रतिनिधिमंडलों की यात्राएं एक महत्त्वाकांक्षी परंतु अव्यवस्थित प्रयास प्रतीत हुईं। नीति निर्माताओं से संवाद की जगह पूर्व अधिकारियों और थिंक टैंकों से अनौपचारिक बैठकें हुईं, जिनका नीतिगत प्रभाव नगण्य रहा।

इसके अलावा, कुछ प्रतिनिधियों के वायरल वीडियो — जैसे रेखा शर्मा का फिल्मी गाना गाना — न केवल कूटनीतिक शालीनता की कमी को उजागर करते हैं, बल्कि वैश्विक संकट की घड़ी में भारत की छवि को भी हास्यास्पद बनाते हैं। इससे यह सवाल उठता है कि क्या ये दौरे राजनीतिक छवि निर्माण के लिए थे या राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए?

  1. भारत बनाम पाकिस्तान: बदलते भूराजनीतिक समीकरण

भूराजनीतिक रूप से भारत एक “बैलेंसर” बनने की कोशिश कर रहा है, जो पश्चिम और पूर्व दोनों से संतुलन साधे। लेकिन पाकिस्तान अपने लिए रूस में जगह बना रहा है, पहले ही चीन और अमेरिका से उसके गहरे संबंध हैं। चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर (CPEC) इसका स्पष्ट उदाहरण है।

यदि रूस भी पाकिस्तान के साथ सहयोग बढ़ाता है, तो भारत की परंपरागत त्रिकोणीय संतुलन रणनीति (Russia–India–China) को गंभीर चुनौती मिलेगी। रूस, जो अब चीन की ओर झुका हुआ है, पाकिस्तान के साथ अपने संबंधों को बढ़ाकर भारत के लिए रणनीतिक असंतुलन पैदा कर सकता है।

  1. G-7 से बहिष्कार: क्या भारत की छवि धूमिल हो रही है?

2025 में जी-7 बैठक में भारत को आमंत्रित नहीं किया गया — 2019 के बाद यह पहली बार है जब भारत को बाहर रखा गया है। यह कनाडा के साथ बिगड़े संबंधों का नतीजा है, जहां प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने खालिस्तानी नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत की संलिप्तता का आरोप लगाया था।

भले ही भारत ने इस आरोप को खारिज किया हो, लेकिन किसी भी उच्चस्तरीय संयुक्त संवाद या मध्यस्थता की पहल अब तक नहीं दिखी। जबकि कनाडा में भारतीय मूल की विदेश मंत्री की नियुक्ति के बाद भारत को एक नया अवसर मिला था, लेकिन वह भी व्यर्थ गया।

क्या विदेश नीति जनसंपर्क बन चुकी है?

भारत की विदेश नीति आज दृश्यता (visibility) पर ज़्यादा केंद्रित दिखती है, प्रभाव (impact) पर कम। विदेश यात्राएं, मेगा इवेंट्स, और सोशल मीडिया पर सक्रियता एक चमकदार छवि तो बनाते हैं, लेकिन जब कूटनीतिक निर्णयों का समय आता है — जैसे IMF, ADB, FATF या G-7 — भारत कई बार प्रभाव छोड़ने में असफल साबित होता है।

यदि भारत को 21वीं सदी में वैश्विक शक्ति बनना है, तो उसे सिर्फ मोदी डिप्लोमेसी नहीं, बल्कि एक संस्थागत विदेश नीति रणनीति विकसित करनी होगी — जो शोर से नहीं, परिणामों से परिभाषित हो।

सुझाव :

  1. पेशेवर कूटनीतिक संवाद बढ़ाया जाए — राजनयिकों को राजनीतिक कार्यकर्ताओं से अलग रखा जाए।
  2. संस्थागत विदेश नीति थिंक टैंक को मज़बूत किया जाए।
  3. रणनीतिक साझेदारियों को पुनर्संतुलित किया जाए — रूस, यूरोप और खाड़ी देशों के साथ।
  4. भारत की साख की रक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय मीडिया रणनीति को सुदृढ़ बनाया जाए।

भारत का कूटनीतिक भविष्य आज के निर्णयों पर निर्भर है। अगर अभी आत्मनिरीक्षण नहीं किया गया, तो भविष्य में अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की उपेक्षा और बढ़ सकती है।

Vande Bharat live tv news,Nagpur 
            Editor 
Indian council of Press,Nagpur 
          Journalist 
Contact no.9422428110/9146095536
HEAD OFFICE Plot no.18/19,Flat 
no.201,Harmony emporise Payal - 
pallavi society new  Manish Nagar- 
Somalwada-440015
Back to top button
error: Content is protected !!