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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आजम खान की याचिका को सह-आरोपियों की याचिका से जोड़ा, 3 जुलाई को अहम सुनवाई की तैयारी

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आजम खान की याचिका को सह-आरोपियों की याचिका से जोड़ा, 3 जुलाई को अहम सुनवाई की तैयारी

प्रयागराज।

वन्दे भारत लाइव टीवी न्यूज

25 जून 2025

उत्तर प्रदेश के पूर्व कैबिनेट मंत्री और पूर्व-सांसद मोहम्मद आजम खान को 2016 के चर्चित बलपूर्वक बेदखली प्रकरण में आज एक महत्वपूर्ण राहत मिली जब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उनकी ओर से दाखिल याचिका को पहले से लंबित सह-आरोपियों की याचिका से टैग कर दिया। अब यह मामला 3 जुलाई 2025 को एक निर्णायक सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है।

पूर्व-सांसद आजम खान की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता एन.आई. जाफरी, अधिवक्ता शाश्वत आनंद और शशांक तिवारी ने बहस की और याचिकाकर्ताओं के ख़िलाफ़ चल रहे पूरे मुकदमे पर रोक लगाने की मांग की, और यह तर्क़ दिया कि जब तक मुख्य गवाहों की दोबारा गवाही नहीं कराई जाती और केस से संबंधित महत्वपूर्ण वीडियो फुटेज रिकॉर्ड में नहीं लाई जाती, तब तक निष्पक्ष सुनवाई संभव नहीं है।

हालाँकि, न्यायमूर्ति समीत गोपाल की एकल पीठ ने आदेश पारित करते हुए स्पष्ट किया कि चूंकि सह-आरोपी की याचिका में पहले ही मुकदमे में अंतिम निर्णय पर रोक लगा दी गई है, अतः वर्तमान में 3 जुलाई तक कोई अन्य या अलग से अंतरिम राहत नहीं दी जा सकती। न्यायालय ने निर्देश दिया कि आजम खान और उनके सह-आरोपी वीरेन्द्र गोयल की याचिका को इसी लंबित याचिका से जोड़ दिया जाए, जिससे समग्र रूप से सभी याचिकाओं की एकसाथ सुनवाई हो सके।

पूर्व-सांसद आज़म ख़ान व उनके सहियोगी वीरेंद्र गोयल ने, अधिवक्ता शाश्वत आनंद के माध्यम से दायर अपनी याचिका में ट्रायल कोर्ट के 30 मई 2025 के आदेशों को चुनौती दी है, जिनमें उनकी उस मांग को अस्वीकार कर दिया गया था, जिसमें 12 एफआईआर (अब एकल वाद में समाहित) के सूचनादाताओं और मुख्य अभियोजन गवाहों, विशेष रूप से सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के चेयरमैन ज़फर अहमद फारूकी, को पुनः बुलाने की अपील की गई थी। याचिका के अनुसार जिस वीडियोग्राफी का उल्लेख खुद फारूकी ने किया है, वह याचिकाकर्ताओं की घटनास्थल पर अनुपस्थिति को साबित कर सकती है और अभियोजन के पूरे मामले को खोखला कर देती है।

यह मुकदमा एफआईआर सं. 528/2019 से 539/2019 और 556/2019 पर आधारित है, जो 2019-20 में कोतवाली थाना, रामपुर में दर्ज की गई थीं। इन मामलों में आजम खान और अन्य पर डकैती, गृह में अनधिकृत प्रवेश, और आपराधिक षड्यंत्र जैसे संगीन आरोप लगाए गए थे। बाद में इन्हें एक साथ मिलाकर 8 अगस्त 2024 को विशेष न्यायाधीश (एमपी/एमएलए), रामपुर द्वारा एकल वाद में परिवर्तित कर दिया गया।

याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि यह मुकदमा संविधान के अनुच्छेद 14, 19, 20 और 21 का घोर उल्लंघन है और एक राजनीतिक द्वेष प्रेरित कार्रवाई है। उन्होंने पूरे मुकदमे को रद्द करने की मांग भी की है।

पृष्ठभूमि-

इससे पहले, 11 जून 2025 को सह-आरोपी मो. इस्लाम उर्फ इस्लाम ठेकेदार द्वारा दाखिल धारा 528 बीएनएसएस याचिका संख्या 21084/2025 पर सुनवाई करते हुए, न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट को 3 जुलाई तक कोई अंतिम फैसला देने से रोक दिया था। वरिष्ठ अधिवक्ता एस.एफ.ए. नक़वी द्वारा उस याचिका में दलील दी गई थी कि ट्रायल कोर्ट जून के अंत तक जबरन फैसला सुनाने की दिशा में अग्रसर है।

अब जबकि मामला 3 जुलाई को निर्णायक सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है, कानूनी विश्लेषकों की नजर इस बात पर है कि क्या ट्रायल कोर्ट द्वारा गवाहों की पुनः पेशी से इंकार और जरूरी साक्ष्यों को रिकॉर्ड पर न लाना न्यायिक प्रक्रिया का उल्लंघन है। साथ ही इस बहुचर्चित मामले में निष्पक्षता और अभियोजन की वैधता पर भी गहन मंथन होगा।

मोहम्मद आजम खान, जो न केवल एक वरिष्ठ राजनीतिज्ञ हैं बल्कि मो. अली जौहर विश्वविद्यालय के संस्थापक भी हैं, इस समय न्यायिक प्रक्रिया के केंद्र में हैं। यह सुनवाई सिर्फ कानूनी दृष्टि से ही नहीं, बल्कि प्रदेश की राजनीति के परिप्रेक्ष्य में भी अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जा रही है।

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