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**आज है देव उठावनी एकादशी, चातुर्मास के बाद योग निद्रा से जागेंगे भगवान श्री विष्णु**

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मंडला MP हेमंत नायक

भारतीय संस्कृति और धार्मिक परंपराओं में देवउठनी एकादशी का विशेष महत्व है। यह कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है, और इसे “प्रबोधिनी एकादशी” या “देवोत्थान एकादशी” भी कहते हैं। इस दिन भगवान श्री विष्णु, जो कि चातुर्मास के दौरान योग निद्रा में होते हैं, पुनः जाग्रत होते हैं। चार महीनों तक चलने वाली उनकी यह निद्रा आषाढ़ शुक्ल एकादशी से प्रारंभ होती है और कार्तिक शुक्ल एकादशी को समाप्त होती है। देवउठनी एकादशी से ही शुभ कार्यों की शुरुआत मानी जाती है और विवाह, गृह प्रवेश, नामकरण संस्कार जैसे मांगलिक कार्यों के लिए यही दिन शुभ माना जाता है।

  • देवउठनी एकादशी का महत्व

देवउठनी एकादशी का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है। मान्यता है कि भगवान विष्णु के निद्रा से उठने के बाद ही धरती पर सभी मांगलिक कार्यों का आरंभ होता है। इसी दिन से चार्तुमास का समापन होता है, जिसके बाद विवाह और अन्य शुभ कार्य फिर से शुरू हो जाते हैं। भक्तों का विश्वास है कि इस दिन व्रत रखने और भगवान विष्णु की पूजा करने से जीवन में सुख, समृद्धि और शांति प्राप्त होती है। विशेष रूप से इस दिन तुलसी विवाह का आयोजन होता है, जिसे भगवान विष्णु और माता तुलसी का विवाह माना जाता है।

  • देवउठनी एकादशी की कथा

इस व्रत के पीछे एक पौराणिक कथा है। एक बार भगवान विष्णु ने अपने भक्तों को वरदान देने के लिए योग निद्रा में जाने का निश्चय किया ताकि उनके भक्तों के दुःख-कष्ट समाप्त हो सकें। चार महीनों की यह निद्रा देवताओं के लिए संकट का कारण बनी, क्योंकि राक्षसों का आतंक बढ़ गया था। तब सभी देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की कि वे जागृत हों और उन्हें संरक्षण प्रदान करें। कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन भगवान विष्णु ने योग निद्रा से जाग्रत होकर देवताओं की प्रार्थना सुनी और उनके संकटों को दूर किया। इसी दिन से यह मान्यता प्रचलित हुई कि देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु जागते हैं और उनके जाग्रत होते ही सारे शुभ कार्य आरंभ हो जाते हैं।

  • पूजा विधि और व्रत का महत्व

देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करने का विशेष महत्व है। इस दिन भक्त स्नान करके व्रत का संकल्प लेते हैं और पूरे दिन भगवान की आराधना करते हैं। पूजा में भगवान विष्णु के समक्ष दीपक जलाया जाता है, तुलसी के पत्ते, फूल, फल और मिठाई अर्पित की जाती है। तुलसी विवाह का आयोजन भी किया जाता है। भक्त इस दिन “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करते हैं और भगवान की आरती गाते हैं।

इस दिन उपवास करने से शरीर और मन को शुद्धि मिलती है, और यह मानसिक शांति एवं आत्म-कल्याण का मार्ग प्रशस्त करता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, जो भी भक्त इस दिन व्रत रखता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है और उसके सभी पाप समाप्त हो जाते हैं।

  • तुलसी विवाह का महत्व

देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह का विशेष महत्व है। पौराणिक कथा के अनुसार, तुलसी माता का विवाह भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप से किया जाता है। इस दिन तुलसी के पौधे को सजाया जाता है और उसका भगवान विष्णु के साथ विवाह संपन्न किया जाता है। इसे भगवान विष्णु के प्रति भक्ति का प्रतीक माना जाता है और यह विवाह धार्मिक रीति-रिवाजों के अनुसार धूमधाम से मनाया जाता है। तुलसी विवाह के साथ ही विवाह और अन्य मांगलिक कार्यों का सिलसिला पुनः शुरू होता है।

  • देवउठनी एकादशी का संदेश

देवउठनी एकादशी हमें जीवन में अनुशासन, भक्ति और नियमों का पालन करने की प्रेरणा देती है। यह हमें सिखाती है कि जब हम किसी काम को पूर्ण निष्ठा और समर्पण के साथ करते हैं, तो जीवन में आने वाली कठिनाइयाँ भी दूर हो जाती हैं। भगवान विष्णु के जाग्रत होने के इस पर्व से यह सीख मिलती है कि ईश्वर के प्रति सच्ची श्रद्धा और आस्था ही जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त कर सकती है।

इस प्रकार, देवउठनी एकादशी का व्रत और पूजा हमें ईश्वर के प्रति भक्ति और समर्पण का भाव प्रदान करती है। यह पर्व भगवान विष्णु के जागरण का प्रतीक है, जो हमारे जीवन में नई ऊर्जा और शुभता का संचार करता है।

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