वाराणसी में बनी दिमित्रियोस गैलानोस की कब्र होगी एथेंस यूनिवर्सिटी में रिसर्च का हिस्सा
चन्दौली प्रख्यात ग्रीस नागरिक दिमित्रियोस गैलानोस पर एथेंस विश्वविद्यालय में हो रहे शोध में वाराणसी भी योगदान करेगा। इसके लिए गत 04 जनवरी शनिवार को ग्रीस के चार नागरकि शनिवार दोपहर मकबूल आलम रोड स्थित कैथोलिक कब्रिस्तान पहुंचे थे। यहां दिमित्रियोस गैलानोस की कब्र की तस्वीरें लीं और साथ में अपनी फोटो खिंचाई। दिमित्रियोस गैलानोस ने चाणक्य नीति यूरोप तक पहुंचाई थी। उन्हें विश्व का पहला ग्रीक इंडोलॉजिस्ट यानी भारतविद कहा जाता है।ग्रीस के एथेंस शहर से 4 जनवरी को मारिया, हैरी, टीमोस और सीओडोर 10 दिन की भारत यात्रा पर आए हैं। सभी शनिवार को वाराणसी पहुंचे थे। वे मकबूल आलम रोड स्थित कैथोलिक कब्रिस्तान में ब्रिटिश शासन के समय की एक-एक कब्र पर पहुंचते और दिमित्रियोस गैलानोस के स्मृति स्तंभ को ढूंढते रहे। करीब 20 मिनट बाद किनारे स्थित दिमित्रियोस गैलानोस का स्मृति स्तंभ देख सभी की आंखें चमक उठीं।दिमित्रियोस गैलानोस पर लिखी एक पुस्तक वहां रखकर तस्वीर ली। साथ में अपनी भी तस्वीरें खिंचवाई। मारिया ने बताया कि उनकी दोस्त विलिस दिमित्रियोस गैलानोस पर शोध कर रही है। इसके लिए दिमित्रियोस गैलानोस की कब्र पर बने स्मृति स्तंभ की तस्वीरें चाहिए थी। इसीलिए सभी स्थानीय गाइड शिवपुर निवासी विनय गुप्ता के साथ यहां तक आए थे। रविवार सुबह वे दूसरे शहर निकल जाएंगे।दिमित्रियोस गैलानोस पहले दर्ज ग्रीक इंडोलॉजिस्ट थे। उन्होंने संस्कृत ग्रंथों का ग्रीक में अनुवाद किया। भारत के दार्शनिक और धार्मिक विचारों का ज्ञान यूरोपीय देशों तक पहुंचाया। उनकी ‘ऐफरिजम ऑफ चाणक्या’ यानी ‘चाणक्य सूक्ति’ एथेंस में प्रकाशित हुई थी। एथेंस में सन 1760 में उनका जन्म हुआ था। वह 47 साल तक भारत में रहे। पहले कोलकाता में रहे। वहां से 1793 में काशी आए। 40 साल तक यहां संस्कृत के प्रकांड विद्वानों के साथ रहे।अंतिम समय तक प्राचीन भारतीय लिपियों का ग्रीक में अनुवाद किया। उन्होंने संस्कृत के 9 हजार से अधिक शब्दों का अंग्रेजी और ग्रीक में अनुवाद कर संकलन भी किया। 3 मई 1833 को काशी में ही अंतिम सांस ली। मकबूल आलम रोड स्थित कैथोलिक कब्रिस्तान में दफनाए गए।। इस स्मृति स्तंभ पर दिमित्रियोस गैलानोस के बारे में दो लाइनें भी अरबी में हैं, जिसमें उन्हें उस सदी का प्लेटो बताया गया है।