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नगरपालिका के चुनावी पिक्चर से स्थानीय मूलभूत सुविधाओं से जुड़े मुद्दे गायब

प्रदेश स्तरीय चुनावी घोषणा पत्र के सहारे राष्ट्रीय राजनीतिक दल के प्रत्याशी

नगरपालिका के चुनावी पिक्चर से स्थानीय मूलभूत सुविधाओं से जुड़े मुद्दे गायब

प्रदेश स्तरीय चुनावी घोषणा पत्र के सहारे राष्ट्रीय राजनीतिक दल के प्रत्याशी

महासमुन्द। नगरीय निकाय आम चुनाव के लिए 11 फरवरी को मतदान होगा। प्रत्याशियों की धड़कनें तेज हो गई दरअसल मतदान के साथ ही प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला इव्हीएम कैद हो जाएगा। इस चुनाव में दिलचस्प  बात यह है कि मतदाता खामोश है प्रत्याशी मतदाताओं के नब्ज़ को टटोलने की कोशिश में लग रहे लेकिन मतदाता खुलकर अपनी मशां जाहिर करने से बचते नजर आए। महासमुंद जिले के प्रतिष्ठापूर्ण सरायपाली नगर पालिका का चुनाव बेहद रोचक और दिलचस्प हो गया है। यहां तीन प्रत्याशी नगर पालिका अध्यक्ष के पद के लिए चुनाव मैदान में हैं। भाजपा से सरस्वती पटेल चुनाव मैदान में हैं जबकि कांग्रेस से वृंदा भोई मैदान में है। इधर निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर सुखविंदर रैना भी अपनी ताल ठोक रही है। मजेदार बात यह है कि सरायपाली नगर पालिका सामान्य महिला के लिए आरक्षित हुआ था लेकिन राष्ट्रीय राजनीतिक दल भाजपा और कांग्रेस ने किसी भी सामान्य प्रत्याशी को चुनाव मैदान में उतरने लायक नहीं समझा। और भाजपा ने तो पिछड़ा वर्ग से ताल्लुक रखने वाले परंपरागत प्रत्याशी को ही मैदान में उतार दिया जबकि कांग्रेस ने भी एक पूर्व पार्षद परिवार के सदस्य को मैदान में उतारा दिया। सामान्य महिला सीट के लिए आरक्षित होने से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर सामान्य वर्ग से ही सुखविंदर रैना मैदान में आ गई। लिहाजा चुनावी संघर्ष त्रिकोणीय हो गया है।

सरायपाली नगर पालिका क्षेत्र में दिलचस्प चर्चा का विषय यह बना रहा कि भाजपा कांग्रेस दोनों आखिरकार इतना वर्षों बाद भी सामान्य वर्ग से एक प्रत्याशी क्यों तैयार नहीं कर पाए। क्या यह सामान्य वर्ग की अपेक्षा नहीं है। ऐसे तमाम सारे सवाल सरायपाली की मतदाताओं के जेहन में घूम रहे हैं। जाहिर तौर पर इस चुनाव में हो रहे मतदान में मतदाताओं का रुख नोटा की ओर ज्यादा रह सकता है।
गौरतलब है कि नगरी निकाय के इस आम चुनाव में स्थानीय मुद्दे गायब हैं। सरायपाली की एक बड़ी आबादी वर्षों से पेयजल की समस्या से ग्रीष्म काल में उसे जाते आ रही है। स्थाई समाधान की दिशा में सिर्फ कोरा आश्वासन और योजनाएं बनती रही। सरायपाली नगर पालिका के इतिहास को देखा जाए तो विगत लगभग 15 वर्षों से एक ही भाजपा से ताल्लुक रखने वाले एक व्यक्ति विशेष का ही सत्ता पर कब्जा रहा है। ऐसा नहीं की विकास नहीं हुई लेकिन मूलभूत आवश्यकताओं से जुड़ी समस्याएं आज भी जस के तस बनी हुई हैं। सरायपाली नगर पालिका में ना तो पेयजल का स्थाई समाधान निकाला गया और ना ही गली मोहल्लों और चौक चौराहों का सौंदर्यीकरण किया गया। नगर पालिका क्षेत्र को देखा जाए तो स्थाई डैमेज सिस्टम भी डेवलप नहीं किया जा सका। सब्जी बाजार को भी व्यवस्थित करने में नगर पालिका प्रायः नाकाम साबित हुई है। सर्व सुविधायुक्त बस स्टैंड व्यवसायिक परिसर निर्माण सहित अन्य सुविधाएं विकसित करने में भी कोई खास काम पिछले डेढ़ दशक से नहीं हो पाया है। इस तरह से तमाम मूलभूत समस्याओं से जुड़े मुद्दे इस चुनाव में गायब दिखे। दोनों राष्ट्रीय राजनीतिक दल के प्रत्याशी प्रदेश स्तरीय चुनावी घोषणा पत्र पर मैदान में आए हुए हैं, लेकिन स्थानीय मुद्दे उनके घोषणा पत्र में काफूर है। ऐसे हालातो में मतदाता अब किसे वोट करेंगे यह तो समय बताएगा लेकिन मतदाताओं की खामोशी ने राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बन गया है वहीं राजनीतिक विश्लेषक भी दबी जुबान से राजनीतिक दलों के प्रत्याशी चयन को लेकर टीका टिप्पणी करते नजर आ रहे हैं। बहरहाल मतदाताओं के वोट इव्हीएम में कैद होने के बाद चुनावी ऊंट किस करवट बैठेगा यह आगामी 15 फरवरी को खुलकर सामने आएगा।

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