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अवैध खनन से बदल सकती है राप्ती नदी की दिशा अफसर मौन

✍️अजीत मिश्रा✍️

अवैध खनन से बदल सकती है राप्ती नदी की दिशा अफसर मौन

कैम्पियरगंज-गोरखपुर-सिद्धार्थनगर

 कैम्पियरगंज फोरलेन निर्माण के नाम पर बाढ़ क्षेत्र में अवैध खनन कर विकास के नाम पर विनाश लीला लिखी जा रही है। बाढ़ क्षेत्र में जोरों पर अवैध खनन पर जिम्मेदार अधिकारी मौन साधे हुए हैं। राप्ती नदी की दिशा बदलने की आशंका का आम जनमानस में खौफ हो गया है। क्षेत्र के गायघाट, कोनी और बलुआ में राप्ती नदी और करमैनीघाट पनघटिया तटबंध के बीच सालों से फोरलेन निर्माण के नाम पर खनन का खेल चल रहा है। नदी के किनारे 15 से 18 फीट गहराई तक मिट्टी खनन हो रहा है, लेकिन ग्रामीणों के बार बार शिकायत के बाद भी जिम्मेदार अधिकारी मौके को देख तक नहीं रहे हैं, कार्रवाई की बात तो दूर है।

ओवरलोड डंफरों की ओवरस्पीड से बना रहता खतरा गोरखपुर-सोनौली राष्ट्रीय राजमार्ग के चौड़ीकारण में लगने वाली मिट्टी कैम्पियरगंज क्षेत्र के करमैनी पनघटियां बांध व राप्ती नदी के बीच से खनन कराई जा रही है। खनन कार्य में लगे तमाम डंपर पर नंबर प्लेट ही नहीं लगा है। वहीं, ओवरलोडिंग व ओवर स्पीड से लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। गायघाट गांव के एक व्यक्ति की बकरी सोमवार को बिना नंबर प्लेट वाले डंपर के चपेट में आ गई। गांव के लोगों ने डंपर वालों को घेरा तो मौके पर पहुंचे डंपर वालों के साथ ठीकेदार के लोगों ने नंबर बताने को कहा। जब बिना नंबर का डंपर बताया गया तो लोगों ने कहा कि इस तरह के कई डंपर हैं। डंपर के ओवर स्पीड चलने से लोगों को हमेशा हादसे का खतरा बना रहता है। वहीं कैम्पियरगंज नगर पंचायत का मुख्य गेट को डंपर ने एक महीने पहले तोड़कर गिरा दिया था। उड़ती धूल से ग्रामीणों का जीना दुश्वार वैसे तो बलुआ से लेकर कैम्पियरगंज तक डंफरों की मिट्टी ढुलाई से गांव, चौराहे, दुकानदार, राहगीर परेशान हैं। लेकिन गायघाट व कोनी गांव के लोगों का जीना हराम हो गया। उनके घरों में खाने पीने की सामग्री धूल से पट जा रही है। गायघाट गांव के जनार्दन, हरीराम आदि ने बताया कि दो साल से खाना सोना सब हराम हो गया। एलर्जी, दमा के लोग मरीज हो जा रहे है। अवैध खनन से गहरी खाई बनने के साथ बांध कमजोर हो गया। बरसात में नदी का जल स्तर बढ़ने पर नदी की धारा मुड़ने व बांध टूटने का अंदेशा बन रहा है। कई बार अवैध खनन के खिलाफ आवाज उठाया गया, लेकिन हम लोगों की आवाज दबा दी जाती है। विकास के नाम पर कछार वासियों के विनाश की पृष्ठभूमि तैयार की जा रही है।

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