
मैं ही पाटलिपुत्र हूं, मैं ही आज का पटना भी हूं। मैं ही बिहार हूं। इसी पेशकश की पहली किस्त में आपको बताता हूं पाटलिपुत्र के पटना बनने की संपूर्ण कहानी। मैं बिहार हूं और ये मेरी कहानी है, सैकड़ों सालों तक इस भूमि ने अनगिनत राजाओं का शौर्य देखा है, क्रूर शासकों का अत्याचार भी सहा है और शिक्षा का भी सबसे बड़ा केंद्र रहा है। मैं किसी जमाने में दुनिया का सबसे बड़ा साम्राज्य हुआ करता था, अफगानिस्तान तक मेरी पहुंच थी, लेकिन समय के साथ, राजनीति की आग में, प्रकृति के विनाश ने मेरा स्वरूप बदल दिया और मैं सिमटता गया। मैं ही पाटलिपुत्र हूं, मैं ही आज का पटना भी हूं। मैं ही बिहार हूं। इसी पेशकश की पहली किस्त में आपको बताता हूं पाटलिपुत्र के पटना बनने की संपूर्ण कहानी।
उसने वृज पर हमला करने की ठानी और अपनी फौज को तैयार कर लिया। लेकिन एक चुनौती थी- मगध और वृज की दूरी। सेना कितनी भी ताकतवर हो, लेकिन अगर ज्यादा दूर जाना पड़े तो चुनौतियां भी बढ़ जाती हैं। अजातशत्रु की इसी जरूरत की उपज है पाटलिपुत्र। अजातशत्रु वैशाली पर हमला करने के लिए पहले अपने बेस को शिफ्ट करना चाहता था। उसने लंबे समय तक तलाश की, उसके अधिकारी लगे रहे, तब जाकर गंगा किनारे उन्हें एक ठिकाना मिला। उसी ठिकाने का आगे चलकर नाम पड़ा पाटलिपुत्र। पाटलिपुत्र से ही अजातशत्रु ने वैशाली पर कई हमले किए और बाद में वृज की सेना को हरा भी दिया। ऐसे में पाटलिपुत्र फिर मगध का ही शहर बन गया। अब शहर बना पाटलिपुत्र अपनी तकदीर में और विकास लाया था, उसे सिर्फ शहर तक सीमित नहीं रहना था बल्कि दुनिया की सबसे उन्नत राजधानी बनना था। ये काम अजातशत्रु के बेटे उदैन ने किया। उसने ना सिर्फ मगध को और विकसित किया बल्कि राजधानी को राजगृह से पाटलिपुत्र की तरफ शिफ्ट कर दिया। पाटलिपुत्र का भूगोल ही बताने के लिए काफी है कि राजाओं की नजर वहां जाकर क्यों थमती थी। असल में पाटलिपुत्र उस जमाने में तीन नदियों से घिरा हुआ था, ग्रीक इतिहासकार मेगस्थनीय ने तो उस जगह को जल दुर्ग तक बता दिया था। हर राजा के लिए पाटलिपुत्र रणीतिक तौर पर एक सुरक्षित जगह थी, उसका नदी से घिरे रहना दुश्मनों के लिए चुनौती होता। वहां तक पहुंचना ही कई के लिए मुश्किल हो जाता। इसी वजह से एक नहीं कई राजवंशों ने पाटलिपुत्र को ही अपनी राजधानी भी माना और इसका विस्तार भी किया। हरिवंश से लेकर शिशुनाग वंश, नंद वंश, मौर्य वंश, शुंग वंश और अंत में गुप्त वंश तक का यहां पर राज रहा। यहां भी मौर्य साम्राज्य के दौरान तो पाटलिपुत्र ने अपना स्वर्णिम काल भी देखा, ये वही दौर था जब महान सम्राट अशोक ने अपना शासन किया था।
मौर्य वंश का उदय समझने के लिए नंद वंश के आखिरी शासक की क्रूरता जानना जरूरी हो जाता है। नंद वंश का आखिरी शासक था धनानंद जिसने पाटलिपुत्र में अत्याचार की सारी सीमाएं लागं दी थी, उसका विकास हो रहा था, वो खुश था, लेकिन उसके शासन में जनता त्राहिमाम कर रही थी। उस काल में एक और विद्वान ने इसी धरती पर जन्म ले लिया था- नाम था चाणक्य जिन्हें कौटिल्य के नाम से भी जाना जाता है। धनानंद ने कभी भी चाणक्य का सम्मान नहीं किया, उसने उनके किसी सुझाव को कभी नहीं माना। जब अहंकार में चूर धनानंद ने चाणक्य को अपने दरबार से बाहर कर दिया, तब कौटिल्य ने प्रतिज्ञा ली कि नंद वंश का विनाश होकर रहेगा। यही से शुरुआत हुई एक नए युग की और पाटलिपुत्र के बदलते इतिहास की।
पाटलिपुत्र पर उस समय विदेशी आक्रमणों का दौर भी जारी था। 327 ईसा पूर्व में ग्रीस के योद्धा अलेक्जेंडर ने तेजी से भारत में अपना विस्तार किया, एक-एक कर हर साम्राज्य का वो खात्मा करता चला गया। महान राजा पोरस तक उस सेना के सामने नहीं टिक पाए। इस तरह के विदेशी हमलों ने चाणक्य को उस समय अहसास करवा दिया था कि इन आक्रमणों से तभी सुरक्षा मिल सकती है जब मगध से मदद मिले। इसी सोच के दम पर उन्होंने एक नए साम्राज्य का गठन किया और चंद्रगुप्त के जरिए सत्ता बदलने की कोशिश। कई प्रयासों के बाद चंद्रगुप्त ने भी मगध जीत लिया और वहां से शुरू हुआ मौर्य वंश का राज। चंद्रगुप्त के सामने एक ही चुनौती थी, अपने साम्राज्य का पूरे भारतवर्ष में विस्तार करना। ऐसा उन्होंने किया भी और एक-एक कर हर उस राज्य को अपने कब्जे में लिया जहां अलेक्जेंडर ने जबरदस्ती अपनी सेना के दम पर कब्जा किया था। इस तरह से चंद्रगुप्त के समय ही दुनिया का सबसे ताकतवर साम्राज्य भी बना। चंद्रगुप्त ने सबकुछ हासिल किया था, सिर्फ मध्य पूर्व का गणराज्य कलिंग को छोड़कर। इस कलिंग की टीस को चंद्रगुप्त के बेटे सम्राट अशोक ने दूर किया था।
चक्रवर्ती सम्राट का तमगा हासिल करने से पहले अशोक को भी कई युद्ध करने पड़े, भयंकर हिंसा का दौर चला, लोगों ने तब उन्हें चंडाल अशोक का नाम तक दे दिया। अपने शासन के आठवें साल में ही अशोक ने कलिंग पर विजय हासिल कर ली थी। उस युद्ध में इतना खून बहा कि पास से गुजरने वाली दया नदी भी लाल हो गई। लेकिन उसी युद्ध ने सम्राट अशोक पर भी गहरा प्रभाव छोड़ा और पाटलिपुत्र के विकास के दरवाजे खोल दिए। उस अप्रत्याशित हिंसा के बाद ही अशोक ने बौद्ध धर्म अपना लिया और शांति का संदेश पूरी दुनिया को दिया। अशोक के शासनकाल में बौद्ध धर्म का प्रसार तो हुआ ही, इसके साथ-साथ पाटलिपुत्र शिक्षा का सबसे बड़ा केंद्र बना। सम्राट अशोक के अलावा इसी पाटलिपुत्र की धरती से व्याकरण के महान विद्वान पाणिनी, कामसूत्र लिखने वाले वात्सायन का ताल्लुक भी रहा। शून्य की खोज करने वाले आर्य भट्ट पाटलिपुत्र से ही आए। लेकिन इसी पाटलिपुत्र के सितारे गर्दिश में जाने वाले थे। 12वीं सदी आते-आते अफगानियों का आक्रमण हिंदुस्तान पर तेज हो चुका था। मोहम्मद घोरी ने मुल्तान से लेकर दिल्ली तक को अपने कब्जे में ले लिया। उस आक्रमण के बाद से ही सत्ता का केंद्र पाटलिपुत्र से दिल्ली की तरफ चला गया। इसके बाद तो बस समय का चक्र ऐसा बदला कि पाटलिपुत्र दिल्ली सल्तनत का हिस्सा बन गया। ये वो समय था जब पाटलिपुत्र के इतिहास को भी नष्ट करने की सबसे बड़ी साजिश रची गई, शिक्षा के सबसे बड़े केंद्र नालंदा को बर्बाद किया गया, कई हमले हुए। इसके बाद 16वीं सदी में शेरशाह सूरी की जब दस्तक हुई, उन्होंने पाटलिपुत्र के ऊपर ही एक नए शहर का सपना देखा, आगे चलकर उसी का नाम पटना पड़ गया। इतिहास के पुराने पन्नें पलटने पर पता चलता है कि शेरशाह सूरी जब एक सैन्य अभियान से लौट रहे थे, उन्होंने गंगा नदी के पास एक शहर का सपना देखा। दिलचस्प बात यह है कि पटना का नाम औरंगजेब ने अजीमाबाद भी किया था, उसने अपने बेटे की जिद में आकर नाम बदल दिया था। लेकिन लोगों की पटना नाम के प्रति आस्था ऐसी रही कि उन्होंने खुद कभी पटना को अजीमाबाद नहीं कहा। वैसे जिस पाटलिपुत्र का समय के साथ पतन हुआ, जिस पाटलिपुत्र की जगह पटना ने ली, उसकी सबसे बड़ी और सटीक भविष्यवाणी गौतम बुद्ध ने की थी। उन्होंने कहा था कि पाटलिपुत्र को सिर्फ तीन चीजों से खतरा रहेगा- आग, पानी और आतंरिक कलह।
अब ऐसा कहा जाता है कि पाटलिपुत्र का विनाश दोनों तरह से हुआ, आग भी एक कारण रही और बाढ़ भी। इतिहासकार पहले तो कभी मानने को तैयार ही नहीं होते थे कि पाटलिपुत्र जैसी कोई जगह थी भी, लेकिन बाद में जब खुदाई हुई तो सम्राट अशोक के काल के ऐसे अवशेष मिल गए जिससे इस पावन भूमि की सारी सच्चाई पूरी दुनिया के सामने आ गई और सभी को मानना पड़ा पाटलिपुत्र ही आज का पटना है।