
मऊ/उत्तर प्रदेश:
मऊ की राजनीति कल्पनाथ राय के बिना अधूरी मानी जाती है। जिस नेता ने अपने संघर्ष, रणनीति और दूरदर्शी सोच से मऊ को जिले का दर्जा दिलाया, वही नेता बाद में देश के प्रधानमंत्री से बगावत कर जेल से चुनाव जीतने वाले चुनिंदा लोगों में शामिल हुआ।
बचपन से संघर्षों की छाया में रहे कल्पनाथ राय
कल्पनाथ राय का जन्म 4 जून 1944 को तत्कालीन आजमगढ़ जनपद के सेमरी जमालपुर गांव में हुआ था। मात्र पांच साल की उम्र में मां का साया और फिर जल्द ही पिता का सहारा भी उठ गया। यतीम हुए इस बच्चे ने जीवन को संघर्ष की पाठशाला बना लिया। शिक्षा और जनसेवा के बल पर उन्होंने खुद को राजनीति में स्थापित किया।
मऊ को दिलाया जिला, और वो भी ‘बर्थडे गिफ्ट’ में
कल्पनाथ राय का सपना था — मऊ को जिला बनाना। वर्ष 1988 में जब उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी दिल्ली में थे, तब कल्पनाथ राय रात 11:30 बजे उनसे मिलने पहुंचे।
मुख्यमंत्री एक मीटिंग में थे, इसलिए राय वहीं सोफे पर सो गए। रात करीब 2 बजे जब तिवारी लौटे, तो राय ने मुस्कुराकर उन्हें जन्मदिन की बधाई दी और कहा —
“मैं बधाई देने वाला पहला व्यक्ति हूं, और मुझे इसका रिटर्न गिफ्ट चाहिए — मऊ को जिला बना दीजिए।”
मुख्यमंत्री तिवारी ने उनकी मांग स्वीकार कर 19 नवंबर 1988 को मऊ को जिला घोषित कर दिया।
दूरदर्शी सोच: विकास की मजबूत नींव रखी
जिला बनने के बाद कल्पनाथ राय ने मऊ के विकास में कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने 1990 के दशक में ही मऊ को बिजली उत्पादन, औद्योगिक इकाइयों, कृषि अनुसंधान केंद्र और रेलवे नेटवर्क जैसी सुविधाएं दिलवाने की कोशिश की।
हालांकि उनकी मृत्यु के बाद कई योजनाएं अधूरी रह गईं — जैसे स्वदेशी कॉटन मिल, कृषि विश्वविद्यालय और मऊ एयरपोर्ट।
जब प्रधानमंत्री से बगावत की
साल 1996 में कल्पनाथ राय का तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव से मतभेद हो गया। कांग्रेस से टिकट न मिलने पर उन्होंने जेल से निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला लिया। उस समय मीडिया ने इसे “राय बनाम राव की जंग” बताया।
पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने भी उनके पक्ष में प्रचार किया।
मुख्तार अंसारी को चुनाव में दी शिकस्त
इसी चुनाव में मऊ में मुख्तार अंसारी ने भी अपनी ताकत दिखानी शुरू कर दी थी। कई गाड़ियों के काफिले में घूमने वाले मुख्तार की गाड़ियां कल्पनाथ राय ने खुद गृह सचिव को फोन कर सीज करवा दीं।
1996 के लोकसभा चुनाव में राय ने न केवल मुख्तार को हराया, बल्कि खुद अपनी जनता के बीच उतरकर जनता से समर्थन पाया।
इस जीत ने न सिर्फ मुख्तार अंसारी के बढ़ते राजनीतिक कद को झटका दिया, बल्कि नरसिम्हा राव को भी बड़ा सबक दिया।
अंतिम पड़ाव और अधूरे सपने
कल्पनाथ राय की मृत्यु 1999 में हुई। उनके निधन के साथ ही मऊ ने एक ऐसा नेता खो दिया, जिसने न सिर्फ मऊ का नक्शा बदला, बल्कि पूरे पूर्वांचल की राजनीति में अपनी अमिट छाप छोड़ी।
📌 निष्कर्ष:
कल्पनाथ राय सिर्फ एक नेता नहीं थे, वे एक सोच थे — एक आंदोलन थे। जिन्होंने राजनीति को सिर्फ सत्ता का जरिया नहीं, बल्कि जनता की सेवा का माध्यम समझा। मऊ जिला उनका सपना था, जिसे उन्होंने हकीकत में बदला — वो भी एक ‘बर्थडे विश’ में!