
अजीत मिश्रा (खोजी)
।। यूपी में सरकारी बाबुओं ने हड़पे करोड़ों रुपये, अल्पसंख्यक बच्चों की गटक गए छात्रवृति।।
बस्ती-यूपी।। सरकार ने हजारों अल्पसंख्यक बच्चों की पढ़ाई के लिए स्कॉलरशिप का प्रावधान शुरू किया था जिसे सरकारी बाबुओं ने लूट लिया है.सरकारी अफसरों ने मिलकर इस छात्रवृति को गोपनीय दान में बदल दिया।
गरीब और अल्पसंख्यक समाज के हजारों बच्चों के साथ सरकारी बाबुओं के द्वारा करोड़ों रुपए की लूट का मामला सामने आया है। जिसने न सिर्फ लाखों रुपये के सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचाया है, बल्कि उन हज़ारों मासूम बच्चों के सपनों और भविष्य को भी रौंद डाला है, जिन्हें हमारी सरकार अल्पसंख्यक छात्रवृत्ति के माध्यम से सहारा देना चाहती थी। हम बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश में हुए अल्पसंख्यक छात्रवृत्ति घोटाले की, जिसने पूरे शिक्षा व्यवस्था और कल्याणकारी योजनाओं पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
यह घोटाला कोई छोटा-मोटा मामला नहीं है। शैक्षिक सत्र 2021-22 में, जब पूरे देश में कोविड महामारी के बाद शिक्षा को पटरी पर लाने का प्रयास किया जा रहा था, तब उत्तर प्रदेश में कुछ ‘महात्मा’ ‘सबका पैसा, अपना विकास’ के मंत्र पर बड़ी शिद्दत से अमल कर रहे थे। अल्पसंख्यक वर्ग के गरीब और जरूरतमंद बच्चों के नाम पर मिलने वाली छात्रवृत्ति को चुपचाप ‘गोपनीय दान’ में बदल दिया गया. पूरे ₹1 करोड़ 46 लाख 37 हजार 604 रुपये (₹1,46,37,604) का यह ‘शैक्षणिक दान’ सीधे कुछ सरकारी बाबुओं की जेब में चला गया।
फर्जी छात्रों के नाम पर किया गया घोटाला
यह कितना बड़ा धोखा है, यह समझने के लिए आंकड़ों पर गौर कीजिए। यह घोटाला 1832 ‘फर्जी विद्यार्थियों’ के नाम पर किया गया. सोचिए, 1832 ऐसे नाम, ऐसी पहचानें जिनका शायद कोई अस्तित्व ही नहीं था, या जिनके नाम पर उनके असली हकदारों तक पहुंचने वाला पैसा कहीं और ही ठिकाने लगा दिया गया। यह दर्शाता है कि समाज के सबसे वंचित वर्ग को उनके हक से वंचित कर दिया।
इस पूरे घोटाले की भनक तब लगी जब जिला अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के सर्वेयर वक्फ निरीक्षक, मोहम्मद इफ्तिखार को कुछ गड़बड़ी का आभास हुआ। उनकी सजगता और ईमानदारी के कारण ही यह मामला पुलिस तक पहुंचा, वरना ये घोटालेबाज बाबू तो शायद इस ‘शैक्षणिक यज्ञ’ को यूं ही जारी रखते। पुलिस भी इस मामले में सक्रिय हुई। एसपी अभिनंदन ने बड़े ही जोर-शोर से बताया कि इस घोटाले में शामिल एनआईओ जीशान खान सहित गबन करने वाले 75 आरोपियों के खिलाफ सरकारी धन के हेराफेरी का संगीन केस दर्ज किया गया है।
कई प्रबंधक और प्रधानाचार्य शामिल
सबसे चिंताजनक बात यह है कि इन 75 घोटालेबाजों में शिक्षा विभाग से जुड़े कई प्रबंधक और प्रधानाचार्य भी शामिल हैं। यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या अब शिक्षा के साथ-साथ ‘गबन की डिग्री’ भी बांटना शुरू हो गया है? या शायद, यह उनके ‘प्रबंधकीय कौशल’ का ही एक हिस्सा है, जिसे उन्होंने ‘शिक्षा दान’ के नाम पर सरकारी धन के गबन में बखूबी इस्तेमाल किया। यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिन पर हमारे बच्चों के भविष्य को संवारने की जिम्मेदारी थी, वही उनके हक पर डाका डालने में लिप्त पाए गए।
केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय बड़ी नेक नीयत से गरीब बच्चों को छात्रवृत्ति प्रदान करता है, ताकि वे अपनी पढ़ाई जारी रख सकें और बेहतर भविष्य बना सकें। वित्तीय वर्ष 2021-22 और 2022-23 की छात्रवृत्ति पर जब थोड़ी बहुत ‘जांच का नाटक’ हुआ, तो जनपद के 50 शिक्षण संस्थानों पर संदेह की सुई घूमी. और फिर क्या, नामित जांच अधिकारी ने जो रिपोर्ट पेश की, वो तो ‘आंखें खोलने वाली’ नहीं, बल्कि ‘खोलकर रख देने वाली’ थी!
रिपोर्ट में हुआ फर्जीवाड़े का खुलासा
रिपोर्ट में साफ-साफ लिखा है कि 47 संस्थाओं के कुल 1832 छात्र-छात्राओं के आवेदन फर्जी पाए गए। यानी, न कोई वास्तविक विद्यार्थी था, न उनकी कोई पढ़ाई हो रही थी, बस उनके नाम पर ‘छात्रवृत्ति’ सीधे बैंक खातों में जा रही थी। और मज़े की बात तो ये है कि इन ‘भूतिया छात्रों’ को छात्रवृत्ति का भुगतान भी किया जा चुका था। कुछ संस्थानों के आईएनओ/एचओआई (संस्था के प्रमुख) ‘सही’ बताए जा रहे हैं, जबकि कुछ ‘फर्जी’. यानी ‘अंदर’ भी खेल चल रहा था और ‘बाहर’ भी. कुल मिलाकर, यह 1,46,37,604 रुपये की ‘प्रथम दृष्टया अनियमितता’ नहीं, बल्कि यह तो ‘पूर्ण दृष्टया महा-अनियमितता’ है! जिसने हमारे समाज के सबसे कमजोर वर्ग के बच्चों के अधिकारों को छीन लिया।
इस जांच रिपोर्ट को बड़ी विनम्रता से निदेशालय भेजा गया। और फिर निदेशालय ने भी बड़े ही ‘सख्त लहजे’ में कोतवाली में तहरीर देने का निर्देश दिया। अब देखना यह है कि जिन शिक्षण संस्थाओं के प्रबंधक और प्रधानाचार्य इस घोटाले के खेल में शामिल थे, जिनमें ज्यादातर वित्तीय सहायता प्राप्त इंटर कॉलेज हैं, उन पर क्या कार्रवाई होती है।