*आखिर जल उपभोक्ता समितियों के सक्रिय होने में सिचाई विभाग क्यो बरत रहा है उदासीनता*
फतेहपुर, 10 मार्च। सरकार की सहभागिता के आधार की महत्वाकांक्षी योजना पिम के जरिये किसानों की आय में बढोत्तरी का जो सपना देखा गया है उसे सिंचाई विभाग की अफसरशाही धरातल में सफल होने देगी एक सवाल खडा करता है।इसे अधिकारियों की योजना के प्रति उपेक्षा इसे कहा जाए या उनकी खाऊकमाऊ नीति पर खतरा जिससे फतेहपुर जनपद का सिंचाई विभाग जल उपभोक्ता समितियों को क्रियाशील होने मे रोडा लगाए हैं।
पिछले वर्षों मे लखनऊ मे अंतर प्रांतीय साझा मंच में महाराष्ट्र व गुजरात की जल उपभोक्ता समितियों के प्रतिनिधि पदाधिकारियों ने वहाँ चल रही योजनाओं से रुबरु कराया और वहाँ के विभागीय अधिकारियों के सहयोग पर चर्चा किया तो यह बात खुलकर आई की उत्तर प्रदेश के अधिकारियों को सरकार की सिचाई विभाग की किसानों की सहभागिता से नहरों के जल प्रबंधन की बात रास नही आ रही है। यही वजह है कि सिचाई विभाग इसमें रुचि नही ले रहा है और योजना के साथ राहु केतु बन गया है। वही विभागीय उदासीनता का दूसरा कारण उसकी नहर प्रबंधन मे कमाई जाने का डर घर गया है। क्योंकि नहर के जल से सिचाई से होने वाली आय को सिल्ट सफाई, खांदी बंदी जैसे कामो खर्च करने ठेकेदारो से लम्बी कमाई होती थी। पिम योजना के तहत अब कुल सिचाई की आय का 40 प्रतिशत जल उपभोक्ता समितियों को जल प्रबंधन के लिए हस्तांतरित करना पडेगा जिससे नहर के प्रबंधन मे समितियों को भी विस्वास में लेना होगा और उन्हें भी हिस्सेदारी देनी पडेगी जो उनकी आय में सीधा असर डालेगा वही बिना समितियों को विस्वास में लिए चहेते ठेकेदारो की काम देना भी आसान नही रहेगा। नहरों की पटरियों मे खडे वृक्षों से होने वाली आय भी प्रभावित होगी। पिम योजना के तहत अतिरिक्त स्रोतों से जो आय होगी वह समितियों के खाते में जाएगी। जानकारी के मुताबिक नहर पटरियों में खडे पेडों को विभाग के कर्मचारी व अधिकरी स्वयं चोरी से बेंच देते हैं अगर कही पेंच लगता तो अज्ञात के नाम लकडी चोरी का इल्जाम लगाकर हजम कर जाते थे। अभी एक माह पूर्व करनपुर गोपालपुर अल्पिका की पटरी पर खड़े पेड को किसी ने चोरी से कटा लिया लेकिन विभाग की और से कोई कार्यवाही अमल में नही लाई गई। अगर इह अल्पिका मे समिति सक्रिय होती तो शायद कोई भी हेराफेरी नही होती। नहर विभाग में जनपद के विभिन्न स्थानों मे गेस्ट हाउस जिसे नहर कोठी भी बोलते है उनके परिसरों मे फलदार वृक्ष भी है फसलों में उनकी नीलामी से होने वाली आय मे जो हेराफेरी होती है उसमें भी समितियों के सक्रिय हो जाने से विभाग की अतिरिक्त कमाई प्रभावित होगी। विभागीय अधिकारियों व कर्मचारियों की सहभागिता से जो हर राजबहा और अल्पिकाओं मे अवैध रुप से कुलाबे लगवाए गए हैं और उन्हें अतिरिक्त कमाई का जरिया बनाया गया है उसकी भी पोल खुल जाएगी।
किसनों के सूत्रों से पता चलता है कि रबी और खरीफ की फसलों मे इन अवैध कुलाबो से सिचाई करने वाले कृषकों से धान व गेंहू की वसूली होती है जिसमें जिले के आला अधिकारियों की भी भागीदारी होती है। ऐसे ही तमाम अवैध कमाईयो पर समितियों के सक्रिय हो जाने पर अंकुश लग जाएगा।
जल उपभोक्ता समितियों को क्रियाशील न हो पाने से अभी विभाग मनमानी जो कर रहा है वो सक्रिय हो जाने पर नही कर पाएगा।
*नहर जल प्रबंधन में किसानों की होगी सहभागिता*
पिम योजना के तहत जल उपभोक्ता समितियों के जरिये किसानों की सीधे जल प्रबंधन और नहरों के रख रखाव मे सहभागिता हो जाने से जहाँ नहरों का कल्प होगा वही पानी का ठीक से सिचाई मे उपयोग किया जा सकेगा। ओसराबंदी के अनुसार आवश्यकता के अनुसार फसलों को पानी समय से मिल सकेगा। अवैध कुलाबो के जरिये सरकार को होने वाली क्षति से बचाया जा सकेगा। आए दिनो नहरों मे होने वाली खांदियो पर भी अंकुश लग सकेगा और खांदी होने की दशा में तत्काल प्रभाव से उसे ठीक भी किया जा सकेगा जिससे पानी की बर्बादी और धन के अपव्यय को रोका जा सकेगा।
*आखिर जल उपभोक्ता समितियों के सक्रिय होने में सिचाई विभाग क्यो बरत रहा है उदासीनता*
फतेहपुर, 10 मार्च। सरकार की सहभागिता के आधार की महत्वाकांक्षी योजना पिम के जरिये किसानों की आय में बढोत्तरी का जो सपना देखा गया है उसे सिंचाई विभाग की अफसरशाही धरातल में सफल होने देगी एक सवाल खडा करता है।इसे अधिकारियों की योजना के प्रति उपेक्षा इसे कहा जाए या उनकी खाऊकमाऊ नीति पर खतरा जिससे फतेहपुर जनपद का सिंचाई विभाग जल उपभोक्ता समितियों को क्रियाशील होने मे रोडा लगाए हैं।
पिछले वर्षों मे लखनऊ मे अंतर प्रांतीय साझा मंच में महाराष्ट्र व गुजरात की जल उपभोक्ता समितियों के प्रतिनिधि पदाधिकारियों ने वहाँ चल रही योजनाओं से रुबरु कराया और वहाँ के विभागीय अधिकारियों के सहयोग पर चर्चा किया तो यह बात खुलकर आई की उत्तर प्रदेश के अधिकारियों को सरकार की सिचाई विभाग की किसानों की सहभागिता से नहरों के जल प्रबंधन की बात रास नही आ रही है। यही वजह है कि सिचाई विभाग इसमें रुचि नही ले रहा है और योजना के साथ राहु केतु बन गया है। वही विभागीय उदासीनता का दूसरा कारण उसकी नहर प्रबंधन मे कमाई जाने का डर घर गया है। क्योंकि नहर के जल से सिचाई से होने वाली आय को सिल्ट सफाई, खांदी बंदी जैसे कामो खर्च करने ठेकेदारो से लम्बी कमाई होती थी। पिम योजना के तहत अब कुल सिचाई की आय का 40 प्रतिशत जल उपभोक्ता समितियों को जल प्रबंधन के लिए हस्तांतरित करना पडेगा जिससे नहर के प्रबंधन मे समितियों को भी विस्वास में लेना होगा और उन्हें भी हिस्सेदारी देनी पडेगी जो उनकी आय में सीधा असर डालेगा वही बिना समितियों को विस्वास में लिए चहेते ठेकेदारो की काम देना भी आसान नही रहेगा। नहरों की पटरियों मे खडे वृक्षों से होने वाली आय भी प्रभावित होगी। पिम योजना के तहत अतिरिक्त स्रोतों से जो आय होगी वह समितियों के खाते में जाएगी। जानकारी के मुताबिक नहर पटरियों में खडे पेडों को विभाग के कर्मचारी व अधिकरी स्वयं चोरी से बेंच देते हैं अगर कही पेंच लगता तो अज्ञात के नाम लकडी चोरी का इल्जाम लगाकर हजम कर जाते थे। अभी एक माह पूर्व करनपुर गोपालपुर अल्पिका की पटरी पर खड़े पेड को किसी ने चोरी से कटा लिया लेकिन विभाग की और से कोई कार्यवाही अमल में नही लाई गई। अगर इह अल्पिका मे समिति सक्रिय होती तो शायद कोई भी हेराफेरी नही होती। नहर विभाग में जनपद के विभिन्न स्थानों मे गेस्ट हाउस जिसे नहर कोठी भी बोलते है उनके परिसरों मे फलदार वृक्ष भी है फसलों में उनकी नीलामी से होने वाली आय मे जो हेराफेरी होती है उसमें भी समितियों के सक्रिय हो जाने से विभाग की अतिरिक्त कमाई प्रभावित होगी। विभागीय अधिकारियों व कर्मचारियों की सहभागिता से जो हर राजबहा और अल्पिकाओं मे अवैध रुप से कुलाबे लगवाए गए हैं और उन्हें अतिरिक्त कमाई का जरिया बनाया गया है उसकी भी पोल खुल जाएगी।
किसनों के सूत्रों से पता चलता है कि रबी और खरीफ की फसलों मे इन अवैध कुलाबो से सिचाई करने वाले कृषकों से धान व गेंहू की वसूली होती है जिसमें जिले के आला अधिकारियों की भी भागीदारी होती है। ऐसे ही तमाम अवैध कमाईयो पर समितियों के सक्रिय हो जाने पर अंकुश लग जाएगा।
जल उपभोक्ता समितियों को क्रियाशील न हो पाने से अभी विभाग मनमानी जो कर रहा है वो सक्रिय हो जाने पर नही कर पाएगा।
*नहर जल प्रबंधन में किसानों की होगी सहभागिता*
पिम योजना के तहत जल उपभोक्ता समितियों के जरिये किसानों की सीधे जल प्रबंधन और नहरों के रख रखाव मे सहभागिता हो जाने से जहाँ नहरों का कल्प होगा वही पानी का ठीक से सिचाई मे उपयोग किया जा सकेगा। ओसराबंदी के अनुसार आवश्यकता के अनुसार फसलों को पानी समय से मिल सकेगा। अवैध कुलाबो के जरिये सरकार को होने वाली क्षति से बचाया जा सकेगा। आए दिनो नहरों मे होने वाली खांदियो पर भी अंकुश लग सकेगा और खांदी होने की दशा में तत्काल प्रभाव से उसे ठीक भी किया जा सकेगा जिससे पानी की बर्बादी और धन के अपव्यय को रोका जा सकेगा।