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ब्रेकिंग न्यूज़: घंसौर ब्लॉक में झोला छाप डॉक्टरों का आतंक, आदिवासी समुदाय के लिए बढ़ा खतरा

घंसौर, 31 जनवरी 2025: मध्यप्रदेश के घंसौर ब्लॉक में झोला छाप डॉक्टरों का प्रभाव तेजी से बढ़ रहा है, जिससे आदिवासी समुदाय के स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा हो गया है। ये डॉक्टर न केवल अवैध दवाओं का उपयोग कर रहे हैं, बल्कि उनके इलाज से लोगों की जिंदगी भी खतरे में पड़ रही है। स्वास्थ्य विभाग की उदासीनता का फायदा उठाकर ये डॉक्टर अपनी मनमानी कर रहे हैं, जिससे स्थानीय लोगों में डर और असुरक्षा का माहौल बन गया है।

स्थानीय नागरिकों के मुताबिक, घंसौर के आदिवासी इलाकों में जहां सरकारी अस्पतालों और स्वास्थ्य सेवाओं की भारी कमी है, वहां लोग इलाज के लिए झोला छाप डॉक्टरों पर निर्भर हो जाते हैं। इनमें से कई डॉक्टर बिना किसी मेडिकल प्रशिक्षण के लोगों को इलाज दे रहे हैं। कई मामलों में अवैध और खतरनाक दवाओं का इस्तेमाल किया जा रहा है, जिससे गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। आदिवासी समुदाय इस समस्या को लेकर गहरे संकट में है, क्योंकि इन झोला छाप डॉक्टरों के इलाज से उनकी हालत और भी बिगड़ रही है।

कुछ स्थानीय निवासी बताते हैं कि, “झोला छाप डॉक्टरों के इलाज के बाद हमें कई बार अपनी हालत और भी खराब होती हुई महसूस हुई। कई बार इलाज के दौरान दर्द और संक्रमण बढ़ गया, लेकिन हमें अस्पताल जाने का डर था, क्योंकि वहां भी सुविधाओं की भारी कमी है।” ऐसे में ये लोग मजबूर होकर इन डॉक्टरों के पास जाते हैं, जिनके पास इलाज के नाम पर कुछ नहीं होता, केवल धोखाधड़ी और जोखिम होता है।

स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने स्वीकार किया है कि घंसौर ब्लॉक में इस समस्या को लेकर कई बार शिकायतें आई हैं, लेकिन प्रशासनिक स्तर पर इस पर कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए। एक वरिष्ठ स्वास्थ्य अधिकारी ने बताया, “हम इस मुद्दे पर काम कर रहे हैं, लेकिन आदिवासी इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति सुधारने में कई चुनौतियाँ हैं। हमें अब इस समस्या का समाधान निकालने के लिए त्वरित कार्रवाई करनी होगी।”

हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि, झोला छाप डॉक्टरों के इलाज से न केवल स्थानीय लोगों की सेहत पर गंभीर असर पड़ रहा है, बल्कि यह पूरी स्वास्थ्य प्रणाली को भी नुकसान पहुंचा रहा है। अगर इन डॉक्टरों के खिलाफ सख्त कदम नहीं उठाए गए, तो यह स्वास्थ्य क्षेत्र की विश्वसनीयता को और भी कमजोर कर देगा। इसके अलावा, अवैध दवाओं के सेवन से कई गंभीर बीमारियां फैलने का खतरा भी बढ़ सकता है।

कुछ जागरूक स्थानीय निवासियों ने इस स्थिति के खिलाफ आवाज उठाई है, और वे चाहते हैं कि प्रशासन इस समस्या को गंभीरता से ले। एक आदिवासी नेता ने कहा, “हमारे लोग झोला छाप डॉक्टरों के इलाज पर निर्भर हैं, क्योंकि सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी है। हमें बेहतर इलाज के लिए उचित व्यवस्था की जरूरत है, ताकि हम झोला छाप डॉक्टरों के झांसे में न आएं।”

कई गैर सरकारी संगठनों और समाजसेवियों ने भी इस मुद्दे पर चिंता जताई है। वे चाहते हैं कि सरकार इस समस्या को प्राथमिकता दे और आदिवासी क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता को बेहतर बनाए। एक समाजसेवी ने कहा, “यह पूरी तरह से सरकार की जिम्मेदारी है कि आदिवासी इलाकों में उचित स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान की जाएं, ताकि लोग झोला छाप डॉक्टरों के चक्कर में न पड़ें।”

स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस मामले में जल्द कार्रवाई करने का वादा किया है। अधिकारियों का कहना है कि वे विशेष अभियान चलाकर झोला छाप डॉक्टरों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करेंगे। इसके साथ ही, आदिवासी समुदाय को जागरूक करने के लिए विशेष शिक्षा कार्यक्रम भी आयोजित किए जाएंगे, ताकि वे अपनी सेहत से खिलवाड़ न करें और सही इलाज के लिए स्वास्थ्य केंद्रों का रुख करें।

आदिवासी इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं को सुधारने के लिए कुछ तत्काल कदमों की आवश्यकता है, जैसे कि अधिक डॉक्टरों की नियुक्ति, उचित दवाओं की उपलब्धता और ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्रों की स्थिति में सुधार। इन उपायों से झोला छाप डॉक्टरों की बढ़ती हुई ताकत को नियंत्रित किया जा सकता है और आदिवासी समुदाय को सुरक्षित स्वास्थ्य सेवाएं मिल सकती हैं।

निष्कर्षत: यह मामला केवल स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ नहीं है, बल्कि यह आदिवासी समुदाय के अधिकारों से भी जुड़ा हुआ है। सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आदिवासी इलाकों में लोग सुरक्षित और गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा सेवाएं प्राप्त करें, ताकि वे झोला छाप डॉक्टरों के शिकार न हों। इस दिशा में ठोस कदम उठाकर ही हम इस समस्या का स्थायी समाधान पा सकते हैं।

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डिस्ट्रिक्ट रिपोर्टर: शिवम कुमार सोनी
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