
इस सेमिनार को भागवान जी रेयानी ट्रस्टी,आशीष मेहता ट्रस्टी, राजेश चौधरी,प्रवीण पटेल ट्रस्टी, गीताश्री उरांव पूर्व शिक्षा मंत्री उमाशंकर सिंह,फरजाना फारुकी आदि आदि वक्ताओं ने संबोधित किया। वक्ताओं ने कहा न्यायिक देरी के कारण नागरिकों को समय पर न्याय नहीं मिलता है जो कि उनका मौलिक अधिकार है।न्यायिक सुधारो के लिए प्रणालीगत सुधारो की आवश्यकता है जैसे की न्यायिक क्षमता बढ़ाना,अदालती प्रक्रियाओं को आधुनिक बनाना एवं कानूनी प्रणाली की दक्षता बढ़ाना। निष्पक्षता,समानता और जवाबदेही के सिद्धांतों को बनाए रखने के लिए कुशल और समय पर न्याय महत्वपूर्ण है।न्याय में देरी से न केवल मुकदमेबाजों पर बोझ पड़ता है बल्कि मामलों का एक बड़ा हिस्सा भी लंबित हो जाता है जिससे समस्याएं और भी बढ़ जाती है।इससे उन लोगों में निराशा कानून प्रणाली में विश्वास की कमी और न्याय से वंचित होने की स्थिति पैदा हो जाती है जो अपने अधिकारों की रक्षा और विवादों को सुलझाने के लिए अदालतों पर निर्भर है। भारत सरकार ने अभी तक राष्ट्रीय मुकदमा नीति को लागू नहीं किया है जिसकी कल्पना पहली बार 2009 में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार ने की थी।इसके अलावा ग्राम न्यायालय अधिनियम 2008 को उनके मूल रूप से लागू न करने का मुद्दा भी है ताकि गांव स्तर पर छोटे-मोटे विवादों का निपटारा किया जा सके। जिसके लिए नेशनल फेडरेशन ऑफ सोसाइटीज फॉर फास्ट जस्टिस ने भारत के सर्वोच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की है।यह कॉर्पोरेट के हितों की तुलना में ग्रामीण आबादी के लिए प्राथमिकता की कमी को दर्शाता है जिनके लिए कॉर्पोरेट घरानों के विवादों को निपटारा करने के लिए लाल कालीन बिछाया जाता है। न्यायिक सुधारो को प्राथमिकता देकर और समय पर न्याय सुनिश्चित करके,भारत कानून के शासन को कायम रख सकता है और अपने नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा कर सकता है।इस कार्यक्रम का आयोजन दिया सेवा संस्थान ने किया।आज के कार्यक्रम को सफल बनाने में मुख्यरूप से डॉक्टर सीता,अधिवक्ता मीना कुमारी,छात्र क्लब ग्रुप के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिव किशोर शर्मा, संरक्षक रोहित कुमार,रेणुका तिवारी,शिवानी शर्मा आदि जा विशेष योगदान रहा।
डॉक्टर सीता,
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